हिन्दी न भाषा है, न कोई व्याकरण का विधान,
ये तो आत्मा की धड़कन है, ये तो है पहचान।
हर शब्द में बसी है धरती की महक निराली,
हिन्दी है तो साँसों में गूँजती भारत की लाली।
ये मात्र बोल नहीं, ये तो हृदय की जुबान है,
इसमें झलकता हर रंग, हर ऋतु का गान है।
माँ की लोरी से लेकर वेदों का उच्चार,
हिन्दी है तो संस्कृति का है सजीव संसार।
गंगा की धार सी पवित्र, हिमालय सा अटल,
हर अक्षर है अमर ज्योति, हर स्वर है निर्मल।
सत्य, साहस, और प्रेम की ये धरोहर प्यारी,
हिन्दी है तो हिंदुस्तान की रूह हमारी।
कभी कविता की धुन है, कभी गीतों की तान,
कभी वीरों की हुंकार, कभी संतों का ज्ञान।
शब्द-शब्द में रचती है अपनापन का रंग,
हिन्दी का हर आभूषण है जैसे जीवन अंग।
ये किसान की बोली है, मज़दूर का है गान,
राजा की आज्ञा भी है, संतों का वरदान।
गाँव-गाँव में खिलती है अपनत्व की कली,
हिन्दी में झलकती है जन-जन की ख़ुशहाली।
हिन्दी है तो हम हैं, हिन्दुस्तान हमारा,
ये जोड़ती दिलों को, देती साथ सहारा।
विश्व मंच पर चमके जब इसकी मधुर वाणी,
भारत की शान बने, हिन्दी हमारी रानी।
तो आओ प्रण करें हम सब इस पावन दिवस पर,
हिन्दी को अपनाएँ हर भाव, हर रस पर।
जग में गूँजे स्वर अपना, ऊँची हो पहचान,
हिन्दी है तो हिन्दुस्तान है, यही है सम्मान।
— जतिन त्यागी