चुप्पी
हज़ारों लफ़्ज़ उमड़ते हैं,
पर होंठों तक आते ही ठहर जाते हैं,
दिल की गलियों में गूंजते सुर,
दुनिया के शोर में खो जाते हैं।
नज़रों में चमक, चेहरे पे हंसी,
पर भीतर कहीं तूफ़ान छिपा होता है,
जो कह न सका, वही बोझ बनकर,
रातों की नींद चुरा लेता है।
कितनी बार चाहा बोल पड़ें,
कितनी बार चाहा हाथ थाम लें,
पर डर है—कहीं ठुकरा दिए गए तो?
यही सोचकर फिर से चुप रह लें।
लोग समझते हैं—ये खामोश हैं,
पर ये खामोशी भी एक कहानी है,
दिल की गहराई से निकली पुकार,
जो कभी किसी तक नहीं पहुँच पाती है।
यूँ ही हज़ारों चेहरे के बीच,
अपना ही साया बनकर रह जाते हैं,
जो कह न सके दिल की बातें,
वो ज़िंदगी भर चुपचाप जी जाते हैं।
पर एक सच ये भी है—
जो दिल की बात कहने का साहस कर लेता है,
वो अपने अकेलेपन को तोड़ देता है।
हर खामोशी के पीछे एक रिश्ता छिपा होता है,
बस ज़रूरत है पहला शब्द कह देने की।
क्योंकि अक्सर सामने वाला भी
यही सोचता रह जाता है—
काश… वो कह देता!
DB-ARYMOULIK