तेरे सिवा कोई भाता ही नहीं तुम बिन दिन गुजरता ही नहीं आंखों को आदत लगवाई है तूने अपनी तू ना दिखे तो शिकायत है इन्हें नज़रे मिले तो अश्क भर आते हैं आंखों आंखों में इज़हार इश्क का कर जाते हैं कैसा यह दिल का हाल है लफ्ज़ बाय ही नहीं कर पाते हैं अल्फाज़ दिल के दरमियान ही ठहर जाते हैं तेरी परवाह इतनी करते हैं कि खुद की परवाह करना भूल जाते हैं सब कुछ खोकर सबको भूल कर बस तुझको याद रख पाते हैं यह जिद्दी नादान बेचैन दिल और क्या क्या करवाएगा हमसे लाख कोशिशें के बाद भी दिल की बात ना का पता है तुमसे राज़ तो इतना ही है कि यह चाहता है तुम्हें कसम से....