1. बचपन (दूध के दाँत)
**निर्मलता, नयापन, अस्थिरता**
मन कोमल होता है, अनुभव शून्य।
हर चीज़ पहली बार होती है।
परिवर्तन ही स्थायी है।
2. जवानी (पक्के दाँत)
**शक्ति, स्थिरता, सौंदर्य, अहंकार**
तन-मन में जोश होता है।
निर्णय दृढ़ होते हैं।
सुंदरता का गर्व और स्वयं पर भरोसा चरम पर होता है।
पर साथ ही, अहं भी जन्म लेता है।
3. युवावस्था (अकल दाँत)
**विवेक, पीड़ा के साथ प्रगति**
अनुभवों से समझ आती है।
सीख अक्सर दर्द देकर मिलती है।
यह समय आत्मबोध का होता है, पर संघर्ष के साथ।
4. बुढ़ापा (गिरे हुए दाँत)
**विरक्ति, अनुभव, त्याग, मुक्ति**
भोग की इच्छा क्षीण हो जाती है।
जीवन को देखने की दृष्टि बदल जाती है।
संग्रह से संन्यास की ओर झुकाव होता है।
यही अवस्था आत्ममुक्ति की राह होती है।