Hindi Quote in Book-Review by Agyat Agyani Vedanta philosophy

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हरी मिले — तो मोती भी कंकड़

वेदान्त 2.0

मनुष्य सोचता है—
आध्यात्मिक जीवन मतलब
कुछ नया बनना।
कुछ विशेष शक्ति पाना।
कोई देवत्व सिद्ध कर लेना।

लेकिन बनना क्या?
जहाँ “पाना” शुरू होता है—
वहाँ मक्खी जन्म लेती है।
पाने की भूख, नीचे ले जाती है।
गंदगी भी
खजाना लगने लगती है।

जब पाना और बनना छोड़ दिया—
तभी सामने आती है
अनंत का खुला आकाश।

जहाँ न रेखा,
न दीवार,
न लक्ष्य—
केवल असीम संभावना।

> बाहर साधु, भीतर भूख —
यही मनुष्य का पाखंड है।

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सीता माता ने
हनुमानजी को
मोती की माला भेंट दी।

हनुमान ने क्या किया?
मोती तोड़ दिए।

क्योंकि
वे पाना नहीं चाहते थे,
वे राम को पहचानते थे।

> जहाँ राम नहीं — वहाँ मूल्य नहीं।

मोती
कचरा है
जब तक उसमें
राम की झलक न मिले।

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योग
यदि जो भीतर है
वही प्रकट हो जाए—
तो उसे मुक्ति कहते हैं।

> तुम्हारे भीतर का अमृत —
पहले से मौजूद है।

पर मनुष्य ने
योग को भी
बाज़ार बना दिया—

सिद्धि

शक्ति

सम्मान

चमत्कार

गुरु-पद

भीड़

भाव वही नीच
बस पोशाक साधु की।

और मक्खी सोचती है—
“अब मैं आध्यात्मिक मक्खी हूँ!”
पर उड़ती वही गंदगी पर है।

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✧ हनुमान का संदेश ✧

> जहाँ प्रेम — वहाँ ईश्वर।
जहाँ अहंकार — वहाँ मक्खी।

हनुमान खोजते हैं—
राम
सत्य
प्रेम
समर्पण

शरीर नहीं बदलता —
पहचान बदलती है।

जब हनुमान बचपन में सूर्य को फल समझ उड़ पड़े—
वह संभावना का विज्ञान था।
जब पवन रुका—
वह ऊर्जा का विज्ञान था।

रोक में भी संकेत
उड़ान में भी संकेत
सब राम का खेल

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🧠 अंतिम सूत्र

> योग = भीतर छिपे राम को ढूँढ लेना
बाकी सब — बाहरी मोती हैं।

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🔥 सार —

> जो मिले सो हरि —
यदि भीतर राम हो।

जो मिले सो नरक —
यदि भीतर मक्खी हो।

अज्ञात अज्ञानी

Hindi Book-Review by Agyat Agyani Vedanta philosophy : 112007560
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