सबसे कठिन होता है स्वयं से लड़ना। अपनी ही कमजोरियों, भ्रमों, टूटे सपनों और अधूरी उम्मीदों से निरंतर सामना करना। हर सुबह जब सूरज निकलता है, तो दिल करता है कि आज कुछ बदले, आज दर्द कम हो जाए। मगर अक्सर ऐसा नहीं होता, और स्वयं को संभालते-संभालते थकान हावी हो जाती है।
फिर भी, जीवन यहीं नहीं रुकता। मन की गहराइयों के सागर में लहरें उठती-गिरती रहती हैं। उलझा मन उम्मीद और चिंता के बीच झूलता रहता है। उदासी जब बहुत गहरी हो जाती है, तब वही पीड़ा हमें मजबूत बनाते हुए धीरे-धीरे बदलने लगती है। खैर.. हर दर्द की अपनी कहानी होती है और हर कहानी का एक अंत होता है।