अब समझ आता है घर सिर्फ दीवारें नहीं, एक एहसास होता है।
जब ज़िंदगी की असल पढ़ाई शुरू होती है, तब माँ-बाप के हर त्याग का मतलब समझ आता है।
इस कविता के माध्यम से मैंने उन अनकहे जज़्बातों को शब्द देने की कोशिश की है, जो हम तब समझते हैं जब खुद ज़िम्मेदारियों से गुज़रते हैं।
पढ़िए, महसूस कीजिए और अगर आप भी ऐसा कुछ जी चुके हैं -तो एक बार माँ-बाप को कॉल ज़रूर कीजिए।
▲ Jyoti - एक बेटी, जो अब बेटियों के दिल की आवाज़ बनना चाहती है...
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