धर्म का प्राचीन स्वरूप
जब वेद, उपनिषद, तंत्र और योग की परंपरा जीवित थी, तब धर्म और आध्यात्मिकता ही असली विज्ञान थे।
ऋषियों ने चेतना, ऊर्जा, ब्रह्मांड और तत्वों को अनुभव से जाना।
उस समय आधुनिक विज्ञान जैसी भौतिक खोज अलग से नहीं थी, क्योंकि जीवन ही प्रयोगशाला था और ध्यान ही उपकरण।
2. आधुनिक विज्ञान का उदय
समय बीतने पर जब धर्म में पाखंड, कर्मकांड और अंधविश्वास बढ़े, तब सत्य की खोज चेतना से हटकर भौतिक जगत की ओर चली गई।
गैलीलियो, न्यूटन, आइंस्टीन जैसे लोगों ने बाहर की दुनिया के नियम खोजे।
आधुनिक विज्ञान ने बाहरी जगत को जीत लिया, लेकिन भीतर का शून्य खाली रह गया।
3. आज की स्थिति
आज आधुनिक विज्ञान अपने शिखर पर पहुँचकर दोहरी शक्ल दिखा रहा है—
एक ओर अद्भुत आविष्कार, तकनीक और सुख-सुविधा।
दूसरी ओर परमाणु बम, पर्यावरण विनाश और मनुष्य की आत्मा का खो जाना।
4. आगे क्या होगा?
इतिहास का नियम है कि जब भी विज्ञान विनाशक बनती है, तब मनुष्य चेतना की ओर लौटता है।
जैसे बम, युद्ध और प्रदूषण हमें झकझोरेंगे, वैसे ही हम फिर भीतर झांकने को मजबूर होंगे।
तब धर्म अपनी असली शक्ल में लौटेगा—एक शुद्ध विज्ञान के रूप में, जो बाहर नहीं बल्कि भीतर की सत्ता को जानता है।
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✨ निष्कर्ष:
धर्म और विज्ञान कभी अलग नहीं थे।
जब धर्म शुद्ध था, वही विज्ञान था।
जब धर्म खो गया, विज्ञान ने बाहर की खोज की।
अब जब विज्ञान विनाश की कगार पर है, तो नया धर्म—आध्यात्मिक शुद्ध विज्ञान—जन्म लेगा।