जब भी अध्यात्म की बातें करता हूँ,
सच के दीपक जलाने की कोशिश करता हूँ।
पर लोग हँसते हैं, मुँह मोड़ लेते हैं,
जैसे कोई दर्पण से आँखें फेर लेते हैं।
उन्हें लगता है ये बोझिल कहानी है,
पर मेरे लिए ये जीवन की निशानी है।
मैं जो कहता हूँ वो आत्मा की पुकार है,
ना कोई ढोंग, ना दिखावा, बस सच्चा विचार है।
कभी तो समझेंगे ये भीड़ के लोग,
मन का अंधेरा मिटाता है योग।
आज भले ही कटते हैं सब मुझसे,
कल पूछेंगे — “क्यों न सुना था तुझसे?”
अध्यात्म की राह अकेली सही,
पर यही तो सच्चाई की मंज़िल रही।
कट जाना उनकी मजबूरी है,
सच को अपनाना भी तो ज़रूरी है। ✨