बड़े शहर के छोटे लोग
ऊँची-ऊँची इमारतें हैं,
उससे भी ऊँचा लालच है।
चारों दिशाओं में पक्की सड़के हैं,
रोशनी में तर-बतर,
और टूटी-फूटी सबकी मानस है।
बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ हैं,
उससे भी बड़ा आलस है।
किस काम की वो शोहरतें,
किस काम की वह तरक्की,
जहाँ पैदल चलना भी आफ़त है।
चमकती ये रंगीन बस्तियाँ,
विज्ञान और विकास की बदौलत,
ये उच्च कोटि की आबादियाँ।
आविष्कार और विलासिता की मूरत हैं,
इंसानियत और कुदरत के मुख़ालिफ़त।
कैसे बड़े लोग हैं?
हर चीज़ को स्वार्थ के तराजू से नापते है।