लिखने के लिए कुछ भी मत लिखो
लिखने के लिए कुछ भी मत लिखो,
क्योंकि शब्द अब थक चुके हैं,
हर अल्फ़ाज़ अपनी परिभाषा खो चुका है,
हर कविता अब सुकून नहीं- सबूत बन चुकी है।
मत लिखो,
क्योंकि स्याही अब दिल से नहीं, डर से बहती है,
हर पंक्ति में कोई तर्क खोजता है,
हर भावना में कोई साज़िश देखता है।
मत लिखो,
क्योंकि सच अब शोर में दब चुका है,
और झूठ ने सीख लिया है- छंद में गूंजना।
कविता अब दिल की नहीं, दिखावे की रेखा बन गई है।
अगर लिखो भी,
तो हवा पर, पानी पर, या किसी बूढ़ी आँख के आँसू में लिखो,
जहाँ कोई पढ़ न सके, पर महसूस करे।
जहाँ शब्द नहीं- मौन बोले।
लिखने के लिए कुछ भी मत लिखो,
बस जी लो एक अनकही कहानी,
जो किसी किताब में नहीं मिलेगी-
पर तुम्हारे होने में लिखी जाएगी।
आर्यमौलिक