दैनिक शाखा जाने से क्या होगा, यह प्रश्न मन में आता है,
उत्तर हर कदम पर मिलता है, जब स्वयं से सामना होता है।
अमर बनेगा जीवन अपना, चरित्र जब गढ़ जाता है,
राष्ट्र प्रथम की भावना से, हर स्वार्थ बिखर जाता है।।
गौरवशाली देश बनेगा, जब नागरिक सजग होंगे,
श्रम, अनुशासन, सेवा में, हर दिन हम तत्पर होंगे।
शाखाओं का तंत्र बढ़ेगा, विचारों का विस्तार होगा,
व्यक्ति से समाज बनेगा, यही सच्चा संस्कार होगा।।
त्यागमय परिवेश बनेगा, जब अहं को त्यागेंगे,
अपना समय, अपना सुख, राष्ट्रहित में बाँटेंगे।
मैं नहीं, हम की भावना, मन-मस्तिष्क में छाएगी,
तभी सशक्त भारत की नींव, सच में रखी जाएगी।।
जन-जन तक हम पहुँचेंगे, यह केवल नारा नहीं,
आचरण से, व्यवहार से, बनना है हमें सही।
सुंदर सा संदेश बनेगा, कर्मों की भाषा बोले,
जहाँ शब्द कम पड़ जाएँ, वहाँ जीवन स्वयं डोले।।
इसी तथ्य को विश्व पटल पर, पहुँचाने का सरल ढंग,
न दिखावा, न आडंबर, बस जीवन में राष्ट्र-रंग।
सेवा, समर्पण, संस्कार, जब हर घर में आएँगे,
भारत के विचार स्वयं ही, विश्व को राह दिखाएँगे।।
यही संघ, यही संघ है, हम सब इसका मान हैं,
पीढ़ी-पीढ़ी जो जले, वही विचारों की शान हैं।
हम सब इसके अमर अंग हैं, यह गर्व नहीं वरदान,
कर्तव्य का बोध यही है, यही हमारा अभियान।।
मैंने देखा, मैंने जाना, शाखा केवल स्थल नहीं,
यह जीवन गढ़ने की पाठशाला, इससे बढ़कर कुछ पल नहीं।
जो इसे जी लेता है, वह इतिहास रच जाता है,
साधारण सा व्यक्ति भी, मुझ जैसा, राष्ट्रदीप बन जाता है।।
— ©️ जतिन त्यागी (राष्ट्रदीप)