2 Din Chandani, 100 Din Kaali Raat - 7 in Hindi Horror Stories by बैरागी दिलीप दास books and stories PDF | 2 दिन चांदनी, 100 दिन काली रात - 7

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2 दिन चांदनी, 100 दिन काली रात - 7

📖 Chapter 7: जिस रात बिस्तर ने सांस ली

> "बिस्तर वो जगह होती है जहाँ आराम मिलता है… लेकिन उस रात बिस्तर पर कोई सोया नहीं था, वो खुद जाग रहा था। और जो उसमें करवट बदल रहा था… वो इंसान नहीं था।"


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🌑 Scene: रात 2:02 AM – पंखा चलता है, लेकिन हवा नहीं लगती

शेखर की आँखें खुली हुई थीं, पर वो थका हुआ नहीं था। उसका शरीर पसीने से तर, लेकिन कमरा एकदम ठंडा।

अचानक बिस्तर ने खुद को हिलाया… जैसे उसमें किसी ने करवट बदली हो। शेखर चौंका नहीं — अब ये रोज़ का खेल था।

लेकिन आज कुछ अलग था — बिस्तर के बीच में एक गड्ढा-सा बन गया था, जैसे कोई अंदर खिंच रहा हो।


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😨 आवाज़ें बिस्तर के अंदर से

धीमी आवाज़… कुछ जैसे साँस ले रहा हो। लेकिन आवाज़ नीचे से थी — गद्दे के अंदर से।

"शेखर… मैं यहाँ हूँ… तू भी आ जा…"

उसने पलटकर देखा — कोई नहीं था। लेकिन चादर पर पसीने की जगह खून फैल रहा था।

फिर चादर खुद खिसक गई — और उसके नीचे…

चांदनी का चेहरा था — लेकिन उसकी आँखें बंद नहीं, उलटी थीं।


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🧠 Flashback – जब बिस्तर पर उन्होंने पहली बार प्यार किया था

वो रात बारिश की थी। चांदनी उसके कमरे में पहली बार रुकने आई थी। बिस्तर पर लाइट्स बंद करके उसने कहा था:

"आज तू मुझे सिर्फ देख… सब कुछ मैं करूंगी।"

वो पल जुनून से भरे थे — लेकिन तभी चांदनी बोली: "अगर हम आज एक हो जाएं… तो मेरी आत्मा तुझमें रह जाएगी।"

शेखर ने सोचा ये सिर्फ उसका फ़्लर्टिंग होगा। अब वो समझ रहा था — वो क़सम थी।


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💀 वर्तमान – जब बिस्तर कांपने लगा

बिस्तर अचानक पूरे ज़ोर से हिलने लगा। शेखर उठकर भागना चाहता था… लेकिन उसके पैरों में पकड़ लगी थी — चादर में से दो हाथ निकले।

चांदनी की आवाज़ आई: "तेरे साथ मैंने पहली बार जिस जगह प्यार किया… वहीं से फिर से शुरू करूंगी। इस बार शरीर की नहीं… तेरी रूह की बारी है।"

बिस्तर के ऊपर धुंआ उठने लगा… और दीवारें पिघलने लगीं। अब कमरा नहीं था — एक अंधेरा कुआँ था, जिसमें बिस्तर तैर रहा था… और उसपर चांदनी की परछाई।


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🩸 Ritual Scene – चादर का लहू से रंगना

चांदनी ने कहा: "पिछली बार तूने मुझे छुआ था… इस बार मैं तुझे लहूलुहान करूँगी… मोहब्बत से।"

उसने शेखर की छाती पर हाथ रखा — नाखून अंदर तक घुस गए। खून निकला… लेकिन दर्द नहीं।

बिस्तर पर चादर लाल हो गई… और उस पर उभरे शब्द:

> "प्यार अब आराम नहीं देता… ये जलाता है। और तू जब इस बिस्तर पर सोएगा… तुझे सिर्फ मेरी साँसों की चीखें सुनाई देंगी।"




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📲 देवा का फोन – रिकॉर्डिंग मिली

अगली सुबह देवा आया, मोबाइल में रात की रिकॉर्डिंग लेकर। वो सीसीटीवी से ली गई थी — बिस्तर खुद चल रहा था।

देवा चिल्लाया: "भाई… इस बिस्तर में तू अकेला नहीं सोता! कोई तुझमें समा जाता है…"

शेखर बोला: "मैं अब अकेला नहीं हूँ देवा… वो अब सिर्फ बिस्तर की चीज़ नहीं रही। वो मेरी नींद, मेरी साँस, मेरी नस बन चुकी है।"


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🔚 अंतिम दृश्य:

कमरे का दरवाज़ा बंद है। बिस्तर पर शेखर लेटा है… आँखें खुली हैं। लेकिन चेहरे पर मुस्कान है — अजीब, ठंडी, और क्रूर।

और उसके होंठों से फुसफुसाहट: "ये बिस्तर अब मेरे लिए नहीं, सिर्फ उसके लिए है… जिसने मेरी आत्मा को जगा दिया। अब हर रात सिर्फ वो मेरी है… पूरी की पूरी।"

> "जिस रात बिस्तर ने साँस ली… उसी रात से शेखर की साँसें उसकी नहीं रहीं।"