the most serious problem in Hindi Philosophy by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | सबसे विकराल समस्या

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सबसे विकराल समस्या

भारत की सबसे विकराल समस्या: बढ़ती आबादीलेखक: विजय शर्मा ऐरी, अजनाला, अमृतसरप्रस्तावना:

भारत आज एक उभरती हुई महाशक्ति है। विज्ञान, तकनीक, शिक्षा, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य, रक्षा—हर क्षेत्र में भारत ने अपने कदम मजबूती से रखे हैं। लेकिन इन सभी प्रगतियों के बीच कुछ ऐसी समस्याएं भी हैं, जो देश को भीतर से खोखला कर रही हैं। जब हम महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, दुश्मन पड़ोसी, धार्मिक असहिष्णुता जैसी समस्याओं की चर्चा करते हैं, तो एक ऐसी जड़ दिखाई देती है जो इन सब समस्याओं की जननी है—बढ़ती हुई जनसंख्या।

भारत में बढ़ती हुई आबादी एक ऐसा संकट बन चुकी है, जिसे अगर समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह देश को अराजकता, गरीबी, भुखमरी और पर्यावरणीय विनाश की तरफ ले जाएगी।1. भारत की जनसंख्या: एक भयावह आंकड़ा

भारत की कुल जनसंख्या अब लगभग 145 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है और इसमें हर साल करोड़ों की बढ़ोतरी हो रही है। 2023 में भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया। लेकिन क्या यह गर्व की बात है?

निश्चित ही नहीं।

जैसे ही जनसंख्या बढ़ती है, देश की सीमित संसाधनों पर बोझ बढ़ता है। जल, बिजली, खाना, रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा जैसी बुनियादी सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ती है लेकिन आपूर्ति सीमित ही रहती है।2. महंगाई और जनसंख्या

हर साल लाखों लोगों का जन्म, और हर व्यक्ति की आवश्यकताएं—रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, इलाज—इन सभी की मांग अत्यधिक बढ़ जाती है। मांग जितनी ज़्यादा, आपूर्ति उतनी ही कम, और यही कारण है कि आज प्याज 100 रुपये किलो, दूध 70-80 रुपये लीटर, गैस सिलेंडर 1200 रुपये, और घरों के किराए आसमान छूने लगे हैं।

यह सिर्फ महंगाई की कहानी नहीं है, यह जनसंख्या विस्फोट की मारक पीड़ा है।3. बेरोजगारी की जड़

भारत में हर साल लाखों छात्र स्कूल और कॉलेज से निकलते हैं, लेकिन नौकरियों की संख्या उतनी नहीं बढ़ती। जितनी आबादी बढ़ेगी, उतने ही ज्यादा हाथ काम मांगेंगे।

आज के युवा डिग्रियां लेकर भी "योग्य बेरोजगार" कहलाते हैं। कई लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें नौकरी नहीं मिलती। यह समस्या इसलिए गंभीर है क्योंकि हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है, और यह प्रतिस्पर्धा जन्म लेती है अत्यधिक जनसंख्या से।4. शिक्षा व्यवस्था पर बोझ

सरकारी स्कूलों में एक शिक्षक पर 100-150 छात्रों का भार, निजी स्कूलों की भारी फीस, और शिक्षा की गिरती गुणवत्ता—यह सब बढ़ती हुई जनसंख्या का ही परिणाम है।

छात्रों को न तो सही समय पर पाठ्यपुस्तकें मिल पाती हैं, न ही प्रयोगशालाओं की सुविधा। कॉलेजों में सीटों की संख्या सीमित है, जिससे मेधावी छात्र भी बाहर रह जाते हैं।5. चिकित्सा व्यवस्था की दशा

सरकारी अस्पतालों में मरीजों की लाइनें—यह किसी भी दिन देखी जा सकती हैं। डॉक्टरों की कमी, दवाइयों का अभाव, और मरीजों की भीड़... सब बढ़ती आबादी की देन है।

एक डॉक्टर पर औसतन 1500 मरीज, एक बेड पर दो-दो मरीज—यह किसी भी देश की चिकित्सा स्थिति की भयावह तस्वीर है।6. पर्यावरण पर प्रभाव

जितनी ज़्यादा आबादी, उतनी ज़्यादा ज़मीन की ज़रूरत। जंगल कटते हैं, शहर फैलते हैं, खेत खलिहान घटते हैं। नदियां सूख रही हैं, भूजल स्तर गिर रहा है, वायु और जल प्रदूषण बढ़ रहा है।

जनसंख्या का सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है। यह न केवल मानव जीवन के लिए, बल्कि पृथ्वी के समस्त जीव-जंतुओं के लिए भी खतरे की घंटी है।7. सामाजिक असमानता

बढ़ती जनसंख्या के कारण गरीब और अमीर के बीच की खाई और गहरी हो गई है। संसाधनों पर अमीरों का कब्जा और गरीबों की संख्या में वृद्धि, इस विषमता को और भयावह बना रही है।

जहाँ एक ओर करोड़ों के बंगले बनते हैं, वहीं दूसरी ओर झुग्गियों में 10x10 फुट के कमरे में 10 लोग रहते हैं। क्या यह विकास है?8. कानून व्यवस्था पर दबाव

जनसंख्या बढ़ने से अपराध भी बढ़ते हैं। बेरोजगारी, गरीबी और संसाधनों की कमी के कारण युवा अपराध की ओर आकर्षित होते हैं। पुलिस बल की संख्या सीमित है लेकिन जनसंख्या बढ़ने से कानून-व्यवस्था बनाए रखना कठिन होता जा रहा है।9. दुश्मन पड़ोसी और सीमाएं

पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन पड़ोसी पहले से ही देश के लिए चिंता का विषय हैं। ऐसे में बढ़ती हुई जनसंख्या हमारे संसाधनों को भीतर से खा रही है, जिससे हमारी सुरक्षा तैयारियों पर भी असर पड़ता है। अधिक जनसंख्या का मतलब है कि अधिक संसाधन आंतरिक विकास में खर्च होंगे, जिससे रक्षा बजट पर दबाव बढ़ेगा।10. समाधान क्या है?

अब प्रश्न उठता है कि क्या इस समस्या का कोई समाधान है? बिल्कुल है। लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामाजिक जागरूकता और नागरिक जिम्मेदारी की आवश्यकता है।a. जनसंख्या नियंत्रण कानून:

सरकार को एक कठोर और प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना चाहिए, जिसमें दो बच्चों से अधिक पर सरकारी सुविधाएं बंद करने, सरकारी नौकरी से वंचित करने, चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध जैसी धाराएं शामिल हों।b. शिक्षा और जागरूकता:

जनसंख्या नियंत्रण के लिए लोगों को शिक्षित करना बेहद ज़रूरी है। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां बाल विवाह और अशिक्षा अधिक है, वहां जनसंख्या वृद्धि और भी अधिक देखी जाती है।c. महिलाओं को सशक्त बनाना:

जब महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर होंगी, तब ही वे निर्णय ले सकेंगी कि कब और कितने बच्चे हों। महिला सशक्तिकरण जनसंख्या नियंत्रण की कुंजी है।d. परिवार नियोजन को प्रोत्साहन:

सरकार को परिवार नियोजन के साधनों को सुलभ और मुफ्त बनाना चाहिए। इसके लिए विज्ञापन, टीवी, सोशल मीडिया और गाँव-गाँव में कैम्पेन चलाने चाहिए।e. धार्मिक और सामाजिक सहयोग:

जनसंख्या नियंत्रण को धार्मिक मुद्दा न बनाया जाए, क्योंकि यह देशहित का विषय है, न कि संप्रदाय का। सभी धर्मों के नेताओं को मिलकर इस विषय पर एकजुट होना चाहिए।11. भारत का भविष्य क्या हो सकता है?

यदि हम अभी भी नहीं जागे, तो आने वाले वर्षों में भारत की स्थिति अफ्रीकी देशों जैसी हो सकती है जहाँ भूख, गरीबी, बीमारी और अपराध ही जीवन का हिस्सा होंगे।

लेकिन अगर सही नीतियाँ अपनाई जाएं, तो भारत अपनी जनसंख्या को डेमोग्राफिक डिविडेंड में बदल सकता है—यानी इतनी बड़ी युवा शक्ति को प्रगति के लिए उपयोग कर सकता है।उपसंहार:

"जनसंख्या एक शक्ति है, लेकिन जब वह नियंत्रण से बाहर हो जाए तो विनाश भी बन जाती है।"

भारत को इस समय आत्मनिरीक्षण की ज़रूरत है। महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, शिक्षा, चिकित्सा, पर्यावरण—इन सभी समस्याओं का मूल कारण है—बढ़ती हुई जनसंख्या।

जब तक इस पर सख्ती से रोक नहीं लगाई जाती, तब तक हम किसी भी क्षेत्र में स्थायी विकास की कल्पना नहीं कर सकते।

समस्या विकराल है, लेकिन समाधान असंभव नहीं। जरूरत है जनभागीदारी, राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामाजिक जागरूकता की।

लेखक: विजय शर्मा ऐरीस्थान: अजनाला, अमृतसर।