border guards in Hindi Motivational Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | सीमा के सिपाही

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सीमा के सिपाही

यह रही एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी, जो भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पंजाब सीमा के पास रहने वाले एक परिवार पर आधारित है। इसमें देशभक्ति, परिवार का प्रेम, संघर्ष और साहस की मिसाल दी गई है। लेखक का नाम शामिल कर दिया गया है: विजय शर्मा ऐरी।

शीर्षक: "सीमा के सिपाही"लेखक: विजय शर्मा ऐरी, अजनाला, अमृतसर

1. आरंभ – गाँव की सुबह

यह 1965 का साल था। अमृतसर से कुछ किलोमीटर दूर, भारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित गाँव धरमकोट में सुबह की धूप हल्के से सरका रही थी। खेतों में सरसों लहरा रही थी, और गाँव के लोग अपने-अपने काम में लगे थे। उसी गाँव में रहता था बलबीर सिंह का परिवार — एक ईमानदार किसान, उसकी पत्नी सरबजीत कौर, 16 साल का बेटा हरमन, और 13 साल की बेटी गुरप्रीत।

बलबीर का जीवन सीधा-सादा था। वह खेतों में मेहनत करता, देश के हालात को लेकर चिंतित रहता, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर देशभक्त बनाना उसका सपना था।

2. हवा में तनाव

सितंबर की शुरुआत थी। रेडियो पर अचानक खबर आई — "भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बढ़ गया है।" गाँव की हवा में बेचैनी भर गई। गाँववाले जानते थे कि युद्ध कभी भी शुरू हो सकता है। बलबीर ने गाँव के सरपंच की बैठक में कहा:

बलबीर:"अगर युद्ध हुआ, तो हम अपने देश की रक्षा में पीछे नहीं हटेंगे। हमारी सरहदें केवल फौज की जिम्मेदारी नहीं हैं, ये हमारी माँ की गोद हैं!"

गाँव के नौजवानों में एक नया जोश भर गया। लेकिन सरहद के इतने पास रहना अब खतरे से खाली नहीं था।

3. युद्ध की घोषणा

6 सितंबर को रेडियो पर ऐलान हुआ — "पाकिस्तान ने पंजाब की सीमा पर हमला कर दिया है।" अमृतसर, फिरोजपुर, और आसपास के गाँवों में अफरा-तफरी मच गई। भारतीय सेना मोर्चे पर पहुँच गई। गाँव खाली किए जा रहे थे।

बलबीर ने अपने परिवार को अमृतसर शहर भेजने की ठानी।

सरबजीत (रोते हुए):"मैं कैसे जाऊँ? तुझे यहाँ अकेला छोड़ दूँ?"

बलबीर:"सरबजीत, देश पहले है। मेरी चिंता मत कर, हरमन को संभालो और माँ-बाप की तरह उसे बड़ा करो।"

हरमन को युद्ध देखने की जिद थी। लेकिन बलबीर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा:

"बेटा, अभी पढ़ाई पूरी कर। अगली बार तू खुद फौज में जाएगा। अभी देश को किसान भी चाहिए।"

4. गाँव की रक्षा

सेना के पहुँचने से पहले ही, गाँव के लोग मिलकर बंकर बना रहे थे। बलबीर ने खेत की मिट्टी को अपने हाथों से खोदा, गाँव की औरतों ने रोटियाँ बनाईं। वो कहते थे:

"जब सैनिक गोली चलाते हैं, तो किसान अनाज चलाते हैं। दोनों ही देश के रक्षक हैं।"

गाँव के पास एक पुल था, जो अगर टूटता, तो दुश्मन की सेना सीधे गाँव में घुस सकती थी। बलबीर और उसके साथियों ने रात-रात जागकर उस पुल की निगरानी की।

5. पहली गोली

11 सितंबर की रात, गोलियों की आवाजें सुनाई दीं। एक पाकिस्तानी टुकड़ी ने गाँव में घुसने की कोशिश की। गाँववालों ने गाँव की सीमा पर सायरन बजा दिया। भारतीय सेना और गाँव के नौजवानों ने मोर्चा संभाला। गोलीबारी हुई।

बलबीर, हाथ में परंपरागत बंदूक लिए, गाँव के चौकीदार के साथ खड़ा था। उसने पहली बार गोली चलाई — न डर, न घबराहट — केवल मातृभूमि की रक्षा का जुनून।

6. बलिदान

अगली सुबह गाँववालों को पता चला कि गोलीबारी में गुरनाम सिंह, गाँव का एक नौजवान शहीद हो गया। पूरे गाँव ने उसका अंतिम संस्कार झंडे में लपेटकर किया।

बलबीर की आँखों में आँसू थे:

"वो मेरा बेटा नहीं था, पर आज हर गाँववाले का बेटा शहीद हुआ है।"

उसके बाद गाँव ने फैसला किया — अब डर कर नहीं, डट कर रहेंगे।

7. हरमन की जिद

हरमन अब चुप नहीं रह पा रहा था। उसने घर लौटकर पिता से कहा:

"पापा, आप तो सीमा पर खड़े हो, मैं पीछे क्यों रहूँ? मुझे भी देश की सेवा करनी है!"

बलबीर ने मुस्कराकर उसकी पीठ थपथपाई:

"अभी नहीं बेटा, लेकिन तू वादा कर, कि बड़ा होकर फौजी बनेगा। देश को तुझ जैसे बहादुरों की ज़रूरत है।"

हरमन ने वादा किया — और उसी दिन से उसने मेहनत शुरू कर दी।

8. युद्ध की समाप्ति

22 सितंबर को युद्धविराम हुआ। रेडियो पर खबर आई कि युद्ध में भारत ने साहसिक जीत हासिल की। अमृतसर की तरफ बढ़ती दुश्मन की फौज को पीछे धकेल दिया गया।

सेना गाँव में आई, और बलबीर जैसे ग्रामीणों को सलाम किया गया। सेना के एक अफसर ने कहा:

"आप जैसे किसानों के बिना हम अधूरे हैं। आपने न सिर्फ अनाज दिया, बल्कि हौसला भी दिया।"

गाँव में झंडा फहराया गया। बलबीर के घर के सामने एक तख्ती लगाई गई —"यहाँ रहते हैं ‘सीमा के सिपाही’ बलबीर सिंह, जिन्होंने खेत को भी मोर्चा बनाया।"

9. सालों बाद

समय बीत गया। 1971 का युद्ध आया और गया। अब हरमन बड़ा हो चुका था। NDA पास करके वह सेना में अफसर बना। उसकी पहली पोस्टिंग LOC के पास हुई।

हरमन ने अपनी पहली छुट्टी पर गाँव लौटकर पिता से कहा:"पापा, आज मैं आपकी जगह सीमा पर हूँ। जो वादा किया था, निभा रहा हूँ।"

बलबीर की आँखों में गर्व था। उसकी मिट्टी से निकले फूल ने अब देश की सरहद थामी थी।

10. अंतिम दृश्य

बलबीर अब बूढ़ा हो चला था। एक शाम वह अपने खेत में बैठा सूरज को देख रहा था। सरबजीत ने पूछा:

"अब चैन है?"

बलबीर मुस्कराया:

"हाँ, अब मेरे दोनों बेटे सीमा पर हैं — एक फौज में, दूसरा खेत में।"

और उसी क्षण रेडियो पर गाना बजा:

"ऐ वतन, ऐ वतन, हमको तेरी कसम,तेरे खातिर है जीना, तेरे खातिर है मरना..."

समाप्त– लेखक: विजय शर्मा ऐरी, अजनाला, अमृतसर