कहानी: पानी की रक्षक – सान्वी
लेखक: विजय शर्मा ऐरी, अजनाला, अमृतसर
शब्द संख्या: लगभग 2200 शब्द
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प्रस्तावना
पानी, जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। परंतु आज के समय में, हम इसकी महत्ता को भूलते जा रहे हैं। हर साल गर्मियों में नदियाँ सूखती हैं, हैंडपंप काम करना बंद कर देते हैं और गांवों में पानी के लिए हाहाकार मच जाता है। ऐसी ही एक कहानी है सान्वी की – एक छोटी सी लड़की, जिसकी सोच ने पूरे गाँव को बदल डाला।
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1. गाँव की तस्वीर
पंजाब के एक छोटे से गाँव "सरस्वतीपुर" में सान्वी अपने माता-पिता और छोटे भाई के साथ रहती थी। उसका घर मिट्टी और ईंटों से बना हुआ था, आंगन में नीम का पेड़ और एक कोने में पुराना कुआँ था जो अब बहुत कम पानी देता था। गाँव में अधिकतर लोग किसान थे, जो बारिश और नदी के पानी पर निर्भर थे। लेकिन हर साल गर्मियों में जब बारिश नहीं होती, तो खेत सूख जाते और लोग परेशान हो जाते।
गाँव की गलियों में गड्ढे, टूटी पाइपलाइन और खुला नल आम बात थी। कोई भी पानी बचाने की चिंता नहीं करता था। सान्वी यह सब देखती और सोचती, "क्यों नहीं लोग समझते कि पानी खत्म हो रहा है?"
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2. सान्वी की चिंता
सान्वी आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। पढ़ने में तेज, समझदार और बहुत संवेदनशील। एक दिन स्कूल में उसकी प्रिय अध्यापिका, सीमा मैडम ने बताया –
“बच्चों, भारत में हर साल लाखों लीटर पानी बर्बाद होता है। अगर हमने अभी से पानी बचाना शुरू नहीं किया, तो आने वाले समय में पानी खरीदकर पीना पड़ेगा।”
सान्वी को ये बात बहुत चुभी। उसने उस दिन तय कर लिया कि वह कुछ ऐसा करेगी जिससे गाँव के लोग पानी की कीमत समझें। उसके मन में एक लक्ष्य था – "गाँव को जल संकट से बचाना।"
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3. पहला कदम
अगले दिन स्कूल में एक भाषण प्रतियोगिता थी – विषय था "जल ही जीवन है"। सान्वी मंच पर खड़ी हुई और पूरे आत्मविश्वास से बोली –
> “अगर आज हमने एक-एक बूंद बचाई, तो कल पूरा समंदर बन सकता है। नल खुला छोड़ देना या टूटी पाइप से रिसने वाले पानी को नजरअंदाज करना हमारी सबसे बड़ी गलती है। अगर हम सोचें कि एक इंसान क्या कर सकता है, तो बदलाव कभी नहीं आएगा। मगर अगर एक बच्चा भी ठान ले, तो वह पूरी दुनिया बदल सकता है।”
बच्चों ने तालियाँ बजाईं, अध्यापक मुस्कराए और सान्वी को प्रथम स्थान मिला। लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी।
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4. मिशन जल रक्षा की शुरुआत
सान्वी ने अपने दोस्तों – ऋषभ, पूजा, और करण – के साथ मिलकर ‘जल रक्षा समिति’ बनाई। उन्होंने पहले अपने स्कूल से शुरुआत की। हर कक्षा में जाकर बच्चों को बताया कि ब्रश करते वक्त नल बंद रखें, नहाने में बाल्टी का प्रयोग करें, बर्तन धोते समय पानी को बहने न दें।
फिर उन्होंने गाँव में रैली निकाली –
"पानी है अनमोल, इसे बचाना है हम सबका गोल!"
"ना खुला नल, ना बहता जल – बनो समझदार, बचाओ जल!"
रैली देखकर गाँव वाले हैरान थे। पहली बार बच्चों को इतना जागरूक देखा।
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5. सच्ची चुनौती
एक दिन गाँव की सरपंच, गुरप्रीत कौर जी ने सान्वी को बुलाया –
“बेटी, तुमने बहुत अच्छा काम शुरू किया है, लेकिन ये सब बच्चों का खेल नहीं है। बड़े लोग तुम्हारी बात सुनेंगे नहीं।”
सान्वी ने मुस्कराकर कहा,
“बड़ी बातों के लिए तो छोटे कदम उठाना जरूरी है, सरपंच जी। हम हार नहीं मानेंगे।”
अब सान्वी और उसकी टीम ने घर-घर जाकर लोगों से बात करना शुरू किया। उन्होंने अपने घरों के नल की जाँच की, जहां-जहां रिसाव था, वहाँ नोट किया और ग्राम पंचायत से ठीक करवाया।
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6. बदलाव की बयार
धीरे-धीरे गाँव में बदलाव दिखने लगा। लोग अपने बच्चों को डांटते थे –
“नल बंद कर! सान्वी दीदी ने कहा था, पानी बर्बाद नहीं करना है।”
गाँव की महिलाएं बरसात का पानी जमा करने लगीं। खेतों में ‘रेन वॉटर हार्वेस्टिंग’ का प्रयोग शुरू हुआ। पंचायत भवन में पानी संरक्षण पर एक चित्र प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें सान्वी ने सुंदर चित्र बनाए – एक चित्र में धरती सूखी हुई थी और दूसरी में हरियाली, पानी और खुशहाली।
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7. सम्मान और पुरस्कार
जिला स्तर पर जब स्कूलों के प्रोजेक्ट्स की प्रदर्शनी हुई, तो सरस्वतीपुर स्कूल का "जल रक्षा अभियान" सबसे आगे रहा। सान्वी को जिला कलेक्टर ने मंच पर बुलाकर ‘जल योद्धा अवार्ड’ से सम्मानित किया।
कलेक्टर साहब ने कहा,
“ये बच्ची हमारे समाज की मिसाल है। अगर हर गाँव में एक सान्वी हो जाए, तो देश में पानी की कमी नहीं रहेगी।”
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8. गाँव में जल क्रांति
अब गाँव की पहचान बदलने लगी थी। लोग दूसरे गाँव से आकर सरस्वतीपुर के बच्चों से सीखने लगे। गाँव में सरकारी योजना के तहत वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक बनाए गए, पुराने कुओं को फिर से उपयोगी बनाया गया, और टपक सिंचाई (Drip Irrigation) शुरू की गई।
गाँव में एक बोर्ड लगाया गया:
"यह जल सजग गाँव है – यहाँ हर बूंद की कद्र होती है।"
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9. एक छोटी कहानी
एक बार एक बूढ़ी दादी जी ने सान्वी से कहा,
“बेटी, हम तो सोचते थे कि पानी तो हमेशा रहेगा। लेकिन जब हमारे खेत सूखे, तब समझ आया। तुमने हमें समय रहते जगा दिया।”
सान्वी ने मुस्कराकर कहा,
“दादी जी, अगर आप लोग साथ न देते, तो मैं कुछ भी नहीं कर पाती।”
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10. बच्चों की प्रेरणा
गाँव के बच्चे अब सान्वी को आदर्श मानते थे। वे कहते –
"हमें भी जल रक्षक बनना है!"
"हम भी सान्वी दीदी की तरह जागरूकता फैलाएंगे।"
एक नन्हीं बच्ची, मीनाक्षी, ने अपने घर में बर्तन धोने के लिए बाल्टी रखनी शुरू की। उसने अपनी माँ से कहा –
“माँ, ये पानी हम बगीचे में डालेंगे, बेकार नहीं जाने देंगे।”
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11. सान्वी का सपना
सान्वी का सपना था कि वह बड़ी होकर पर्यावरण वैज्ञानिक बने और पूरे देश में जल संरक्षण के लिए काम करे। उसने एक डायरी बनाई थी, जिसमें वह रोज़ पानी बचाने के नए उपाय लिखती थी।
उसकी डायरी की एक लाइन थी –
> "हर घर, हर हाथ – एक जिम्मेदारी, पानी बचाने की हमारी तैयारी!"
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12. मीडिया की नज़र में
जल्द ही सान्वी और उसके गाँव की खबर स्थानीय अखबारों और टीवी चैनलों तक पहुँच गई। एक रिपोर्टर ने सान्वी से पूछा –
“आपको ये सब करने की प्रेरणा कहाँ से मिली?”
सान्वी ने मुस्कराकर जवाब दिया –
“पानी की बूंद जब धरती से गिरती है, तो जीवन उगता है। वही मुझे प्रेरणा देती है।”
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13. गाँव का उत्सव
एक साल बाद गाँव में जल उत्सव मनाया गया – एक ऐसा मेला जिसमें जल संरक्षण पर आधारित नाटक, गीत, चित्र प्रदर्शनी, और बच्चों द्वारा बनाए गए मॉडल प्रदर्शित हुए। सान्वी ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक नाटक लिखा –
"अगर पानी न होता..."
इसमें दिखाया गया कि पानी के बिना जीवन कैसा होता, स्कूल कैसे बंद होते, खेत कैसे उजड़ते, और लोग कैसे पलायन करने को मजबूर होते। नाटक देखकर सबकी आँखों में आँसू आ गए।
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14. अंतिम संदेश
कहानी के अंत में, गाँव की सरपंच गुरप्रीत कौर मंच पर आईं और कहा –
“हम गर्व से कहते हैं कि हमारे गाँव की बच्ची ने हमें पानी की कीमत समझाई। अब हम हर साल ‘सान्वी जल दिवस’ मनाएंगे।”
सान्वी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा –
> "दोस्तों, बदलाव की शुरुआत खुद से होती है। अगर हम आज से ठान लें कि हम पानी की हर बूंद बचाएंगे, तो कल हमारी धरती फिर से हरी-भरी हो सकती है।"
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निष्कर्ष
सान्वी की ये कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी बदलाव उम्र नहीं, सोच से आता है। एक छोटी बच्ची ने अपने गाँव की दिशा बदल दी, क्योंकि उसमें इच्छाशक्ति थी, समझ थी, और सबसे बड़ी बात – दूसरों को जागरूक करने की हिम्मत थी।
हर बच्चा सान्वी बन सकता है – बस एक कदम उठाने की देर है।
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