! पेश है एक थ्रिलर हिंदी कहानी, शीर्षक "नींद की राह चलती मौत", जो एक सुंदर पर रहस्यमयी लड़की पर आधारित है, जो नींद में चलती है और रात में लड़कों की जान ले लेती है…
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नींद की राह चलती मौत
✍ लेखक: विजय शर्मा ऐरी
अध्याय 1: रहस्यमयी गांव की लड़की
उत्तराखंड के एक छोटे से पहाड़ी गांव "घनस्याली" में हर कोई एक नाम से डरता था — "माया"।
वो बेहद खूबसूरत थी — दूध सी गोरी रंगत, लहराते बाल, और बोलती आँखें। लेकिन रात में वो बदल जाती थी।
लोग कहते थे — "माया सोती नहीं... माया तो रात में चलती है... और जो उसका पीछा करता है, अगली सुबह उसका चेहरा नहीं पहचान पाते!"
पिछले 3 सालों में गांव के चार नौजवान रहस्यमयी तरीके से मारे जा चुके थे — उनके चेहरे नीले, आँखें खुली हुईं, और दिल मानो डर से फट गया हो।
अध्याय 2: नई नौकरी और नया रहस्य
शहर से एक नया टीचर गांव में आया — नाम था अर्जुन।
सीधा-साधा, पढ़ा-लिखा नौजवान, जो इन कहानियों को बस अंधविश्वास मानता था।
एक दिन स्कूल में उसने माया को देखा। वो कक्षा 12वीं की छात्रा थी — उम्र 18 साल, शांत और अलग-सी।
अर्जुन को पहली नज़र में ही कुछ अजीब-सा लगा। वो उसकी आँखों में झांकना चाहता था, मगर उनमें कोई गहराई नहीं थी — बस एक ठंडापन।
एक रात अर्जुन ने माया को स्कूल की तरफ जाते देखा — बिना चप्पल, नींद में चलती हुई।
उसे याद आया — गांव में कहा जाता था कि माया नींद में चलती है… और वही असली खतरा है।
अध्याय 3: पीछे करना मौत को बुलाना था
एक गांव वाला मनोज जो माया पर मोहित था, ने कहा, "मैं उसे फॉलो करूँगा… सबको बताऊँगा कि ये बस अफवाह है।"
उस रात अर्जुन ने मनोज को माया के पीछे जाते देखा।
सुबह — मनोज मरा पाया गया!
चेहरा नीला, नाखून काले, और उसकी आँखें खून से भरी हुईं।
डॉक्टर ने कहा, "कोई बाहरी चोट नहीं... पर मौत डर से हुई है... जैसे किसी आत्मा ने शरीर से जान खींच ली हो।"
अध्याय 4: नींद की बीमारी या कुछ और?
अर्जुन को यकीन हो चला कि कुछ तो है। उसने रिसर्च की — Somnambulism यानी Sleepwalking।
माया की माँ ने डरते हुए बताया —
"जब माया 10 साल की थी, तभी से नींद में चलने लगी थी। मगर उसके पापा की मौत के बाद ये बढ़ता गया।
अब तो वो सोते हुए बाहर निकल जाती है, और सुबह कुछ याद नहीं रहता।"
अर्जुन ने उससे एक दिन अकेले में पूछा,
"तुम्हें रात में कुछ याद रहता है?"
माया बोली — "नहीं सर, मुझे सिर्फ इतना याद है कि मैं कभी-कभी गाने गाती हूं… नींद में।"
अध्याय 5: रूह का राज
गांव के एक पुराने पुजारी ने अर्जुन को बुलाया —
"माया पर रूह का साया है, उसके पिता की मौत अचानक हुई थी... उन्होंने गांव के श्मशान की ज़मीन हड़प ली थी… और तबसे उस रूह ने शपथ ली कि उनके परिवार का हर पुरुष खत्म होगा!"
अर्जुन ने जब गाँव के पुराने रिकॉर्ड खंगाले, तो पाया कि —
माया के पिता की मौत भी रात में हुई थी… दिल का दौरा।
और उसके बाद माया के चाचा, भाई और अब जो भी लड़का उसके करीब आता था… मर जाता था।
अध्याय 6: एक रात्रि, एक प्रयोग
अर्जुन ने एक रात माया के घर के बाहर कैमरा लगाया और खुद छिप गया।
रात करीब 2 बजे — माया उठी। उसकी आंखें बंद थीं, मगर चाल सीधी और निश्चित थी।
वो बड़बड़ाते हुए बोल रही थी —
"जो मेरे करीब आएगा, वो जलेगा... जो मेरी आंखों में देखेगा, वो मरेगा..."
वो अचानक गांव की पहाड़ी की तरफ बढ़ी। अर्जुन भी उसके पीछे गया — लेकिन सुरक्षित दूरी से।
वहां जाकर माया एक चट्टान पर खड़ी हो गई और ज़ोर से चीख़ी —
"अब और नहीं… मैं मुक्त होना चाहती हूं!"
उसकी चीख सुन पूरी घाटी गूंज उठी।
अध्याय 7: नींद में ही हुआ तंत्र
अर्जुन ने तुरंत गांव के पुजारी को बुलाया।
पुजारी ने कहा, "अभी ही ‘नींद का तंत्र’ करना होगा… वरना अगली रात माया किसी और की जान ले लेगी!"
माया को मंदिर लाया गया।
वह अब भी सो रही थी — मगर उसके होठ हिल रहे थे… और वो किसी दूसरी भाषा में मंत्र बोल रही थी।
पुजारी ने हवन शुरू किया —
जैसे-जैसे मंत्र तेज़ हुए, माया की हालत खराब होने लगी।
वो ज़मीन पर गिर गई और अचानक उसकी आंखें खुल गईं —
"तू मुझे जगा नहीं सकता… मैं सज़ा दे रही हूं… ये पुरुष धोखेबाज़ हैं!"
अध्याय 8: सच सामने आया
पूजा के दौरान माया ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और बेहोश हो गई।
सुबह जब उसे होश आया, तो उसने जो बताया, उसने सभी को हिला दिया —
"मेरे पापा ने बचपन में मुझे तंत्र साधना के लिए किसी बाबा को सौंप दिया था… वहां मेरे साथ गलत हुआ… और उस दिन से मेरे अंदर एक दर्द दबा रह गया।"
"रात को मेरी आत्मा जाग जाती है… और वो हर उस लड़के को खत्म कर देती है जो मुझे चाहने की कोशिश करता है… क्योंकि मेरे अंदर वो डर, वो नफरत, वो घृणा आज भी ज़िंदा है।"
अध्याय 9: अंत... या एक नई शुरुआत?
अर्जुन ने उसे मनोचिकित्सक से इलाज दिलवाया।
6 महीने के थेरेपी और मेडिकेशन के बाद — माया पूरी तरह ठीक हो गई।
गांव में अब कोई मौत नहीं हुई… और माया अब एक सामाजिक कार्यकर्ता बन चुकी थी — जो लड़कियों को उनके दर्द से लड़ना सिखाती थी।
अर्जुन ने अपने आखिरी स्कूल में भाषण के दौरान कहा —
"हम जिसे पागलपन कहते हैं, वो कभी-कभी एक घाव होता है… जो दिखता नहीं, मगर अंदर से खून बहा रहा होता है। माया जैसी लड़कियाँ हमें सिखाती हैं कि दर्द को जिंदा रहने का ज़रिया बनाया जा सकता है।"
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समाप्त।