ठीक है जी
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अस्पताल से मिली प्रेरणा
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी
1. दर्द की सुबह
अनुज 25 साल का एक युवा था। खेलकूद में तेज़, पढ़ाई में अच्छा और सपनों से भरा हुआ। लेकिन ज़िंदगी ने एक दिन अचानक करवट बदली। एक सड़क दुर्घटना में वह गंभीर रूप से घायल हो गया और उसे शहर के बड़े अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा।
जब होश आया तो सामने सफ़ेद दीवारें, छत से लटकता पंखा और चारों ओर इंजेक्शन, दवाइयों की महक थी। अनुज ने पहली बार सोचा –
“क्या मेरी ज़िंदगी यहीं चारदीवारी में सिमट जाएगी?”
2. अस्पताल की दुनिया
शुरुआती दिनों में अनुज बहुत परेशान रहा। कभी मशीनों की बीप-बीप की आवाज़, कभी मरीजों की कराह, कभी डॉक्टरों की व्यस्तता।
वह बिस्तर पर लेटे-लेटे सोचता –
“मैं क्यों? मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? अब मेरा क्या होगा?”
लेकिन धीरे-धीरे उसने नोटिस किया कि अस्पताल की दुनिया भी एक अलग किताब की तरह है। यहाँ हर चेहरा एक कहानी कहता है –
कोई कैंसर से जूझ रहा है पर मुस्कुरा रहा है।
कोई बूढ़ी अम्मा बेटे का हाथ पकड़ कर जीने की हिम्मत पा रही है।
कोई बच्चा दर्द में भी खिलौना देखकर हंस पड़ता है।
अनुज ने मन ही मन कहा –
“अगर ये लोग दर्द में भी मुस्कुरा सकते हैं तो मैं क्यों हार मानूँ?”
3. छोटी-सी प्रेरणा
एक दिन पास वाले बेड पर 12 साल का लड़का "अर्पित" आया, जिसकी किडनी खराब थी। फिर भी वह अनुज से कहता –
“भैया, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा ना तो डॉक्टर बनूँगा… ताकि सबको ठीक कर सकूँ।”
अनुज उस मासूम की मुस्कान देख कर चौंक गया।
वह सोचने लगा –
“मैं तो बड़ा होकर भी हार मानने की सोच रहा था और ये बच्चा अपनी ज़िंदगी की जंग जीतने के सपने देख रहा है।”
4. अनुज का बदलाव
धीरे-धीरे अनुज ने अस्पताल की दिनचर्या को बोझ नहीं, एक शिक्षा की तरह लेना शुरू किया।
उसने वार्ड के लोगों की कहानियाँ सुनीं।
मुस्कान बाँटना सीखा।
किताबें पढ़ीं और अपने सपनों को नया रंग दिया।
डॉक्टरों ने भी नोट किया कि अनुज अब पहले से जल्दी ठीक हो रहा है। क्योंकि उसका मन मज़बूत हो गया था।
5. नई सोच
डिस्चार्ज होने के दिन अनुज ने आईने में खुद को देखा और कहा –
“अस्पताल ने मुझे सिखाया है कि दर्द ज़िंदगी का अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत का संकेत है। यहाँ मैंने धैर्य, आशा और हिम्मत को पास से देखा है। अब मैं दूसरों के लिए जीऊँगा, उन्हें उम्मीद दूँगा।”
6. अस्पताल से बाहर, नई राह
बाहर निकलते ही उसने फैसला किया कि वह एक मोटिवेशनल स्पीकर बनेगा।
वह अपने अनुभव साझा करने लगा –
“दोस्तों, अस्पताल और मैं – ये कहानी सिर्फ मेरी नहीं, हर उस इंसान की है जो दर्द में भी मुस्कुराना सीख लेता है। ज़िंदगी हमें गिराती है ताकि हम और मज़बूती से उठ सकें।”
उसकी बातें सुनकर कई लोग प्रेरित हुए। अब अनुज हर सेमिनार में कहता –
“हार मत मानो। ज़िंदगी का असली अस्पताल तो वही है जहाँ इंसान की हिम्मत इलाज करती है।”
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संदेश
👉 यह कहानी हमें सिखाती है कि मुसीबतें अंत नहीं, बल्कि सीखने का मौका होती हैं।
👉 अस्पताल केवल इलाज की जगह नहीं, बल्कि आशा और धैर्य की पाठशाला भी है।
👉 और हीरो अनुज जैसा हर इंसान अपनी तकलीफ को जीत में बदल सकता है।