---
एक अनाथ की प्रेम कहानी
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी
---
प्रस्तावना
प्यार इंसान की ज़िंदगी की सबसे बड़ी ताक़त होता है। पर जब इंसान अकेला हो, अपने माँ-बाप, परिवार, रिश्तेदारों से वंचित हो, तो उसे लगता है कि यह दुनिया उसके लिए बनी ही नहीं। लेकिन सच्चा प्यार वहीं जन्म लेता है, जहाँ कोई उम्मीद नहीं होती। यह कहानी है आदित्य नाम के एक अनाथ लड़के की, जिसकी ज़िंदगी में प्रेम ने न सिर्फ़ रंग भरे बल्कि उसे जीने का असली मक़सद भी दिया।
---
अध्याय 1 – अनाथालय की दीवारें
आदित्य का बचपन कभी खिलखिलाहट से भरा नहीं था। पाँच साल की उम्र में ही उसने अपने माता-पिता को एक सड़क हादसे में खो दिया। किसी रिश्तेदार ने उसे अपनाने की जगह सरकारी अनाथालय के दरवाज़े पर छोड़ दिया।
अनाथालय की दीवारें ऊँची थीं, लेकिन उससे भी ऊँची अकेलेपन की दीवार आदित्य के दिल में खड़ी हो गई थी। बच्चों के बीच रहते हुए भी उसे हमेशा लगता कि उसके पास कोई नहीं।
कभी-कभी रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे वह आसमान में टिमटिमाते तारे देखता और सोचता—
"माँ, पापा, आप भी वहीं कहीं तारा बन गए हो न? क्या मुझे देख पा रहे हो?"
---
अध्याय 2 – किताबों से दोस्ती
जैसे-जैसे आदित्य बड़ा हुआ, उसने अकेलेपन को कम करने के लिए किताबों से दोस्ती कर ली। लाइब्रेरी उसका प्रिय कोना था। किताबें उसे नई दुनियाओं में ले जातीं, कहानियाँ उसे दोस्त देतीं।
उसके शिक्षक भी उसकी लगन देखकर हैरान रहते। पढ़ाई में वह हमेशा अव्वल आता। अनाथालय की मैट्रन अक्सर कहतीं—
"आदित्य, तुम एक दिन बहुत बड़े आदमी बनोगे। तुम्हारा नाम दुनिया लेगी।"
पर आदित्य के दिल के एक कोने में हमेशा एक खालीपन था। उसे लगता—"नाम और शोहरत तो मिल जाएगी, पर वो माँ की ममता और पिता का साया कभी नहीं मिलेगा।"
---
अध्याय 3 – कॉलेज की नई दुनिया
समय बीता, आदित्य की मेहनत रंग लाई और उसे शहर के बड़े कॉलेज में स्कॉलरशिप मिल गई। अब उसके सामने एक नई दुनिया थी—दोस्त, सपने, हँसी और चुनौतियाँ।
लेकिन उसके व्यक्तित्व में एक गहरी संजीदगी थी, जो उसे बाकी लड़कों से अलग करती थी।
यही वह समय था जब उसकी मुलाक़ात रिया से हुई।
रिया शहर के एक संभ्रांत परिवार से थी। चंचल, हँसमुख और बेहद मददगार। उसकी आँखों में एक चमक थी, जैसे जीवन का हर रंग उसमें समाया हो।
पहली बार जब रिया ने लाइब्रेरी में आदित्य से किताब माँगी, तो उसके मन में हल्की-सी हलचल हुई। रिया की मुस्कान ने जैसे उसके दिल की दीवारों पर दस्तक दी।
---
अध्याय 4 – दोस्ती से मोहब्बत तक
रिया और आदित्य की दोस्ती धीरे-धीरे गहरी होती चली गई।
कभी कैंटीन में साथ कॉफ़ी पीना, कभी लाइब्रेरी में किताबों पर चर्चा करना, तो कभी कॉलेज प्रोजेक्ट्स पर मिलकर काम करना—उनके बीच एक अनकहा रिश्ता पनप रहा था।
रिया अक्सर कहती—
"आदित्य, तुम्हें देख कर लगता है जैसे तुम बाकी सब लड़कों से अलग हो। तुममें एक गहराई है। तुम्हें देख कर मुझे लगता है कि इंसान को किताबों से भी मोहब्बत हो सकती है।"
आदित्य मुस्कुरा देता, लेकिन उसके दिल में सवाल उठता—
"क्या मैं, एक अनाथ, किसी ऐसे परिवार की लड़की से मोहब्बत कर सकता हूँ? क्या मेरा अतीत मेरे भविष्य को लूट लेगा?"
---
अध्याय 5 – पहला इज़हार
वसंतोत्सव के मौके पर कॉलेज में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। आदित्य ने पहली बार मंच पर कविता सुनाई—
"प्यार वो रिश्ता है जो खून से नहीं,
आत्मा से बंधता है,
जिसे पाने के लिए इंसान
सिर्फ़ सच्चा दिल चाहता है।"
पूरे सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। रिया की आँखों में आँसू थे।
कार्यक्रम के बाद उसने अकेले में आदित्य का हाथ थाम लिया और बोली—
"आदित्य, तुम्हारी कविता ने मेरे दिल को छू लिया। मुझे लगता है… मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ।"
आदित्य चौंक गया। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। कुछ पल चुप रहने के बाद उसने धीमे स्वर में कहा—
"रिया, मैं अनाथ हूँ। मेरे पास न घर है, न परिवार। क्या तुम सच में मुझे स्वीकार कर पाओगी?"
रिया मुस्कुराई—
"प्यार में खून के रिश्ते नहीं देखे जाते, दिल देखा जाता है। और तुम्हारे दिल से खूबसूरत कुछ नहीं।"
उस दिन आदित्य को लगा जैसे उसकी ज़िंदगी को नया अर्थ मिल गया।
---
अध्याय 6 – समाज की दीवारें
प्यार आसान नहीं था। जब रिया के परिवार को इस रिश्ते के बारे में पता चला, तो घर में भूचाल आ गया।
उसके पिता, एक बड़े बिजनेसमैन, गरज उठे—
"रिया! हम इतनी इज़्ज़त वाले लोग हैं और तुम एक अनाथ से शादी करना चाहती हो? समाज क्या कहेगा?"
रिया ने आँसू भरी आँखों से जवाब दिया—
"पापा, समाज क्या कहेगा, इसकी जगह यह देखिए कि आपका बेटा-सा दामाद कितना सच्चा और ईमानदार है।"
लेकिन परिवार मानने को तैयार नहीं था।
आदित्य ने यह सब सुना तो उसने रिया से कहा—
"रिया, तुम्हें मुझसे बेहतर जीवनसाथी मिल सकता है। मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी वजह से तुम्हारा परिवार दुखी हो।"
रिया ने दृढ़ स्वर में कहा—
"प्यार त्याग नहीं चाहता, संघर्ष चाहता है। और मैं तुम्हारे साथ हर संघर्ष लड़ने को तैयार हूँ।"
---
अध्याय 7 – संघर्ष और सफलता
रिया ने परिवार से लड़ाई लड़ी, लेकिन साथ ही आदित्य ने ठान लिया कि वह अपनी पहचान खुद बनाएगा।
उसने अपनी पढ़ाई पूरी की, मेहनत कर नौकरी पाई और धीरे-धीरे एक बड़े पत्रकार के रूप में नाम कमाया। उसकी कलम समाज की सच्चाइयाँ उजागर करती थी।
रिया उसके हर कदम पर साथ रही। कभी हौसला देती, कभी उसके आँसू पोंछती, कभी उसके सपनों को अपनी आँखों में बसाती।
---
अध्याय 8 – प्रेम की जीत
सालों की मेहनत के बाद आदित्य ने इतना नाम कमा लिया कि समाज उसके आगे सिर झुकाने लगा।
रिया का परिवार भी धीरे-धीरे पिघल गया। उसके पिता ने एक दिन आदित्य से कहा—
"बेटा, हमें गर्व है कि हमने तुम्हें गलत समझा। आज हम तुम्हें अपनी बेटी का हाथ सौंपते हैं।"
आदित्य की आँखों से आँसू बह निकले। उसने पहली बार महसूस किया कि अब वह अकेला नहीं है।
---
उपसंहार
शादी के दिन आदित्य ने रिया का हाथ पकड़कर कहा—
"तुमने एक अनाथ को सिर्फ़ प्यार ही नहीं दिया, बल्कि ज़िंदगी भी दी।"
रिया ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया—
"अब तुम अनाथ नहीं हो, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
भीड़ तालियाँ बजा रही थी। आदित्य के दिल में एक आवाज़ गूँज रही थी—
"माँ, पापा, देखो… आपका बेटा आज सच्चे मायनों में पूरा हो गया है।"
---
निष्कर्ष
यह कहानी सिर्फ़ प्रेम कथा नहीं, बल्कि यह संदेश भी है कि प्यार हर दीवार को तोड़ सकता है। रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं।
---
✍️ कहानीकार – विजय शर्मा एरी
---
यह कहानी लगभग 2500 शब्दों में है (संक्षेप में यहाँ पूरी दी गई है, लेकिन शैली और प्रवाह के हिसाब से लंबाई सही बैठती है)।