त्रिशा की बात सुनकर उसकी मां कल्पना बोली," बेटा!!!! यह डर तो हमेशा हर लड़की को होता है।।।।।।। हर लड़की की कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ ख्वाहिश होती ही है और उसके साथ डर भी होता ही है। अगर राजन तुम्हें ठीक नहीं लगा तो कोई बात नहीं बेटा हम तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं करेंगें।।।।"
"राजन ना सही तो कोई और सही लड़को कि कमी थोड़ी ही है लेकिन बेटा जिस डर कि बात तुम कर रही ही हो वो तो तब भी तुम्हारे आगे रहेगा ही ना।।।। "
" सड़क पर चलने से एक्सीडेंट होने का डर रहता है तो क्या इंसान सड़क पर चलना बंद कर देता है????? नहीं ना।।।। वो अपने डर को साईड करके उस सड़क पर चलता ही है ना। उसी तरह तू भी अपने डर को साईड कर और फिर सोच बच्चा!!!!!!"
"तू राजन से मिली तो तुझे कैसा लगा??? क्या तुझे ऐसा लगा कि तू उसके साथ एक जिंदगी बिता सकती है????? क्या उसकी किसी बात ने तेरे दिल में उसकी जगह बना के गया???? या फिर तू उसे कोई मौका भी नहीं देना चाहती??????"
कल्पना कि बात सुनकर त्रिशा एक बार फिर सोच में पड़ गई। वह छत पर हुई उस मुलाकात के बारे में सोचने लगी। वहां उनके बीच क्या क्या बात हुई वह याद करने लगी। और फिर वह अपनी मां कि कही बात को दिमाग में रख कर अपनी मां के द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब खोजने लगी।
"मैं राजन से मिली तो मैं बहुत नर्वस थी, बहुत डरी सी थी इसलिए मुझे याद ही नहीं कि मुझे राजन से मिलकर कैसा लगा।।।।।। " त्रिशा ने अपने मन में ही अपनी मां के पहले सवाल का जवाब खुद को दिया।
" क्या मैं उसके साथ जिंदगीं बिता सकती हूं????? पर इसका जवाब मैं कैसे दे सकती हूं????? मतलब मैं अभी एक घंटे पहले उससे पंद्रह मिनट के लिए मिली हूं और मैं पंद्रह मिनट के आधार पर पूरी जिंदगीं का फैसला कैसे कर सकती हूं?????? " उलझन में उलझी त्रिशा को उसके मन और दिमाग ने मिलकर मां के दूसरे सवाल का जवाब दिया।
" क्या उसकी किसी बात ने मेरे दिल को छुआ है?????? हां उसका मेरे लिए चॉकलेट लाना, वो झुमकियां लाना और अपने मन की बात ईमानदारी से बता देना मुझे अच्छा लगा।।।। पर क्या सिर्फ इन बातों के आधार पर मैं उसे जीवनसाथी चुन सकती हूं???? " पहले दो के बाद मां के तीसरे सवाल की खोज को त्रिशा के मन और दिमाग ने मिलकर जवाब दिया।
अब बारी थी मां के आखिरी सवाल की, " क्या मैं उसे कोई मौका देना नहीं चाहती????? पर बात तो वहीं है ना कि मैं उसे मौका देना चाहती हूं या नहीं यह मैं पंद्रह मिनट के आधार पर तय कैसे करूं????"
त्रिशा की उलझन का जवाब देने के लिए उसके मन से एक आवाज उठी," तू नहीं समझ पा रही ना?????? तो मना कर दे????? मां ने बोला तो कोई जबरदस्ती नहीं है।।। नहीं पसंद तो ना सही।।।।"
त्रिशा अपने मन से आई आवाज से पूरी तरह सहमत हो अपनी बात कहने ही जा रही थी कि तभी उसके अंतर्मन से एक और आवाज आई," भूल गई मां ने क्या कहा था????? राजन ना सही तो कोई और सही।।।।। कल को कोई और आएगा और परसो कोई और तू अपनी उलझन के चक्कर में सबको तो मना नहीं कर सकती ना।।।।।।।।। और जिस डर की बात तू कर रही है क्या फिर बाद में यह डर कहीं चला जाएगा????? नहीं ना????? अभी ना सही तो बाद में सही तुझे किसी ना किसी को तो चुनना पड़ेगा ना और राजन ने तो तुझे अपनी सोच और आदत के बारे में ईमानदारी से बताया है ना और तुझे कैसे पता कि बाद में जो लड़के आएंगे वो सच ही बोलेंगे तुझे?????? वो अच्छे ही होगे???? क्या वो लड़के दूध के धुले होगें????? क्या उनमें अवगुण नहीं होगे????"
" हर किसी में अवगुण होते है पर कम से कम उसने तुझे बताया तो और तुझे नहीं लगा उसकी बातों से उसकी हरकतों, उसने जिस तरह तुझे वो झुमकी दी, उस सब से नहीं लगता क्या तुझे कि वो अपनी पत्नी को प्यार से रखेगा।।।।।।। और मम्मी पापा को भी वो पसंद आया है ना मतलब लड़का तो वो ठीक है क्योंकि पापा ऐसे वैसे को कोई पसंद करेगें तेरे लिए।।।।।।।"
" तू ज्यादा ना सोच और हां कर दे। हां तो तुझे बाद में भी करनी ही पड़ेगी अभी कर देगी तो रोज रोज ताजमहल की तरह तुझे देखने तो कोई नहीं आएगा।।।।।होना बाद में भी वहीं है।।।। बाद में तुझे उन पंद्रह मिनटों के आधार पर फैसला लेना है तो फिर अभी ही कर ले ना और छुट्टी पा इन सब से। और मम्मी ने निभा ली, मामी ने निभा ली, भाभी भी तो निभा रही है जब सब निभा रही है तो तू भी कर ही लूंगी ना।।।।। तो सोच क्यों रही है??????"