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अजीब बरसात
✍️ लेखक: विजय शर्मा एरी
गाँव रामपुरा हमेशा अपनी साधारणता के लिए मशहूर था। खेतों की हरियाली, बैलों की घंटियों की आवाज़ और बच्चों की किलकारियों से भरा हुआ। पर उस साल की बरसात ने जैसे पूरे गाँव का नक्शा ही बदल दिया। यह कोई साधारण बरसात नहीं थी, यह थी अजीब बरसात।
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पहला दिन
जुलाई की उमस भरी सुबह थी। लोग आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे थे। बादल काले थे लेकिन बरसते नहीं थे। किसान चिंतित थे — धान की बुआई का समय निकल रहा था। तभी अचानक तेज़ गर्जना हुई और मूसलधार बारिश शुरू हो गई।
पहले तो सब खुश हुए, बच्चे नाचने लगे, महिलाएँ छज्जों पर खड़ी होकर गुनगुनाने लगीं। लेकिन जल्द ही लोगों ने देखा कि इस पानी में कुछ अजीब है।
बरसते हुए पानी की बूँदें जब ज़मीन पर गिरतीं, तो मिट्टी की खुशबू नहीं आती, बल्कि सड़े लोहे जैसी गंध फैल जाती। बच्चे जो नाच रहे थे, वे अचानक खाँसने लगे। पानी का रंग भी हल्का पीला नज़र आता था।
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गाँव में हलचल
शाम होते-होते खबर पूरे गाँव में फैल गई —
“ये बारिश साधारण नहीं है।”
“पानी में ज़हर है शायद।”
“भगवान का कोप है यह।”
गाँव के बुज़ुर्ग पंडित गोपालदास ने कहा, “यह वर्षा अपशकुन है। हमें हवन करना होगा।”
दूसरी ओर मास्टर सुरेश, जो शहर से पढ़-लिख कर गाँव लौटे थे, बोले,
“नहीं पंडित जी, यह कोई प्राकृतिक बदलाव है। शायद कारखानों का धुआँ या रसायन आसमान तक पहुँच गया हो। हमें पानी की जाँच करनी चाहिए।”
दोनों की बातें सुनकर गाँव बँट गया — कुछ लोग इसे भगवान का गुस्सा मानने लगे, और कुछ इसे विज्ञान की देन।
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दूसरी रात की बरसात
अगली रात फिर बारिश हुई। लेकिन इस बार और अजीब नज़ारा था।
जब बूँदें गिरीं तो खेतों में छोटे-छोटे कीड़े निकलने लगे। हजारों की संख्या में काले कीड़े जैसे आसमान से बरस रहे हों। किसान घबरा गए।
“अरे ये तो फसल खा जाएँगे!”
“भगवान बचाओ!”
महिलाएँ बच्चों को घरों में बंद करने लगीं। पर बच्चे रो रहे थे कि वे बाहर खेलना चाहते हैं।
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तीसरा दिन – रहस्य और गहराया
बरसात अब हर रोज़ होने लगी थी और हर दिन उसका रंग बदलता। कभी पानी में नीली चमक होती, कभी उसमें से धुएँ जैसी भाप उठती।
गाँव के तालाब का पानी हरा पड़ गया। उसमें से मछलियाँ मर-मर कर सतह पर तैरने लगीं। यह देखकर सबके मन में डर घर करने लगा।
रामपुरा का यह पहला मौका था जब लोग पानी से डरने लगे थे।
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मास्टर सुरेश की कोशिश
सुरेश मास्टर ने शहर के अपने एक मित्र डॉक्टर जोशी को बुलाया। डॉक्टर ने आकर पानी की बोतल भर ली और बोला,
“यह पानी पीने योग्य नहीं है। इसमें भारी रसायन मिले हुए हैं। शायद पास के कस्बे की फैक्ट्री से निकलने वाला धुआँ और गंदगी आसमान में पहुँचकर बरसात का हिस्सा बन गई है।”
गाँव वालों ने सुना तो दंग रह गए।
“तो इसका मतलब भगवान नहीं, इंसान जिम्मेदार है?”
पंडित गोपालदास चुप हो गए।
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अजीब घटनाएँ
बरसात से सिर्फ खेत और तालाब ही नहीं बिगड़े, बल्कि लोगों की सेहत पर भी असर दिखने लगा।
कई लोग खाँसी और बुखार से पीड़ित हो गए। बच्चों की त्वचा पर लाल धब्बे उभर आए। दूध देने वाली गायें बीमार पड़ गईं।
“अगर ऐसे ही चलता रहा तो गाँव उजड़ जाएगा,” चौधरी रमेश ने पंचायत में कहा।
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पंचायत की बैठक
गाँव की चौपाल पर सब इकट्ठा हुए। कुछ लोग फैक्ट्री जाकर प्रदर्शन करने की बात करने लगे। कुछ बोले,
“हम सरकार को चिट्ठी लिखेंगे।”
लेकिन सुरेश मास्टर ने कहा,
“हमें खुद भी अपने गाँव को बचाना होगा। पेड़ लगाने होंगे, तालाब को साफ करना होगा, और इस बरसात का सामना मिलकर करना होगा।”
बच्चे भी बोले,
“हम भी मदद करेंगे मास्टर जी!”
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उम्मीद की किरण
बरसात अभी भी अजीब थी, पर अब गाँव वाले डरने के बजाय उपाय करने लगे। उन्होंने बारिश का पानी इकट्ठा कर उसे छानने के तरीके खोजे। कुएँ को ढक दिया ताकि गंदा पानी उसमें न जाए।
महिलाएँ घर-घर जाकर बच्चों को सावधानी सिखाने लगीं।
“बारिश में मत भीगना।”
“तालाब का पानी मत पीना।”
धीरे-धीरे लोग समझने लगे कि यह आपदा उन्हें जोड़ रही है।
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अंतिम मोड़
अगस्त का महीना आया। अचानक एक दिन आसमान साफ हो गया।
बादल छँट गए और हल्की, मीठी बारिश शुरू हुई। इस बार पानी में कोई गंध नहीं थी, बल्कि वही पुरानी मिट्टी की खुशबू आई, जिसका इंतज़ार सब कर रहे थे।
बच्चे फिर नाचने लगे। महिलाएँ गाना गाने लगीं। किसानों ने राहत की साँस ली।
लोग समझ गए कि यह अजीब बरसात एक चेतावनी थी — इंसान के लालच और लापरवाही का नतीजा। अगर समय रहते सावधानी न बरती जाए तो प्रकृति हमेशा बदला लेती है।
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अंत
उस दिन से रामपुरा के लोग प्रकृति के दोस्त बन गए। उन्होंने तय किया कि अब खेतों में सिर्फ प्राकृतिक खाद डालेंगे, गाँव के पास लगे जंगल की रक्षा करेंगे, और आने वाली पीढ़ी को यह कहानी सुनाएँगे —
“कभी एक अजीब बरसात हुई थी, जिसने हमें सिखाया कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ मत करो।”
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🖊️ लेखक: विजय शर्मा एरी
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