इसमें यह दर्शाया जाएगा कि हर इंसान के मन में एक “समुन्दर” है, जिसमें ज्वार-भाटा (उतार-चढ़ाव) आते रहते हैं—कभी भावनाएँ उमड़ती हैं, कभी शांति छा जाती है। इस कहानी में दार्शनिकता, भावनाएँ, रिश्ते, संघर्ष और आत्मबोध सब होगा।मेरा समुन्दर
✍️ विजय शर्मा एरीभूमिका
“हर इंसान के मन में एक समुन्दर होता है।उसमें गहराई भी होती है, लहरें भी।कभी उसमें ज्वार आता है—भावनाएँ उमड़ पड़ती हैं।और कभी भाटा—सब कुछ सूना, खाली और ठहरा हुआ।”
यह कहानी है आदित्य की—एक साधारण-सा युवक, जो दिखने में बिलकुल आम था, लेकिन उसके भीतर एक ऐसा “समुन्दर” था जो उसे हर पल बदलता रहा।पहला अध्याय – बचपन की लहरें
आदित्य पंजाब के एक छोटे से कस्बे में पला-बढ़ा।बचपन से ही वह बहुत संवेदनशील था।जब बाकी बच्चे खेलते-कूदते, वह घंटों बैठकर बादलों को निहारता और सोचता—“आसमान इतना बड़ा क्यों है?नदी कहाँ जाती है?और मेरे अंदर क्यों इतनी बेचैनी है?”
उसकी माँ अक्सर कहतीं—“बेटा, तू बहुत गहरा सोचता है। तेरे मन में सचमुच एक समुन्दर है।”दूसरा अध्याय – किशोरावस्था का ज्वार
जैसे-जैसे आदित्य बड़ा हुआ, उसके मन का समुन्दर भी गहराता गया।कभी उसमें सपनों का ज्वार आता—“मैं वैज्ञानिक बनूँगा… मैं लेखक बनूँगा… मैं दुनिया बदलूँगा…”
तो कभी भाटा छा जाता—“क्या मैं कुछ कर भी पाऊँगा?क्या मेरी आवाज़ कोई सुनेगा?”
उसके दोस्त हँसते—“तू हमेशा इतना गंभीर क्यों रहता है? थोड़ा मस्ती कर।”
लेकिन आदित्य सोचता—“अगर समुन्दर की गहराई न हो, तो लहरें कैसी उठेंगी?”तीसरा अध्याय – युवा मन का तूफ़ान
कॉलेज पहुँचा तो उसके समुन्दर में नया तूफ़ान उठा—प्रेम का ज्वार।वह कविता लिखने लगा।हर पंक्ति में उसकी भावनाएँ लहरों की तरह उठतीं।
एक दिन उसने अपनी सहपाठी सिया को कविता सुनाई।सिया मुस्कुराई—“तेरे दिल में सचमुच एक समुन्दर है, आदित्य। पर ध्यान रखना, ज्वार के साथ भाटा भी आता है।”
लेकिन जब सिया की शादी किसी और से तय हुई, तो आदित्य का समुन्दर सूखने लगा।वह अकेला बैठा रोया और सोचा—“क्या मेरा समुन्दर सिर्फ़ दुख देने के लिए है?”चौथा अध्याय – संघर्ष की लहरें
आदित्य ने नौकरी की तलाश शुरू की।हर जगह असफलता मिली।कभी इंटरव्यू में रिजेक्ट हो जाता, कभी आर्थिक हालात रास्ता रोक लेते।
वह सोचता—“मेरे अंदर इतनी ताक़त है, फिर भी मैं क्यों हार रहा हूँ?”
माँ ने समझाया—“बेटा, समुन्दर की लहरें हमेशा किनारे तक नहीं पहुँचतीं। कई बार वे लौट भी जाती हैं। यही भाटा है। धैर्य रख, फिर ज्वार आएगा।”पाँचवाँ अध्याय – आत्मबोध
एक रात आदित्य छत पर लेटा हुआ तारों को देख रहा था।उसके भीतर सवालों का तूफ़ान था।अचानक उसे लगा कि उसका समुन्दर उससे कह रहा है—
“ज्वार और भाटा मैं ही हूँ।कभी तुम्हें ऊपर उठाता हूँ, कभी नीचे गिरा देता हूँ।लेकिन यही जीवन है।अगर सिर्फ़ ज्वार हो तो विनाश होगा,अगर सिर्फ़ भाटा हो तो जीवन सूख जाएगा।संतुलन ही सत्य है।”
उस रात आदित्य की आँखें खुल गईं।उसे समझ आया कि जीवन का असली अर्थ “ज्वार-भाटा” से गुजरते हुए आगे बढ़ना है।छठा अध्याय – नई शुरुआत
अब उसने अपने भीतर के समुन्दर को दिशा देनी शुरू की।कविताएँ लिखीं, उन्हें अखबारों में भेजा।शुरुआत में किसी ने नहीं छापा, पर उसने हार नहीं मानी।
धीरे-धीरे उसकी कविताएँ लोगों तक पहुँचने लगीं।लोग कहते—“आदित्य, तेरी पंक्तियाँ हमारे दिल का दर्द बयान करती हैं। जैसे तू हमारे अंदर का समुन्दर पढ़ लेता है।”सातवाँ अध्याय – समाज का आईना
आदित्य ने देखा कि हर इंसान के भीतर कोई न कोई समुन्दर है—मजदूर का समुन्दर मेहनत और पसीने से भरा है।किसान का समुन्दर उम्मीद और भय से लहराता है।माँ का समुन्दर त्याग और ममता से गहराता है।जवान का समुन्दर साहस और बलिदान से उमड़ता है।
उसने महसूस किया कि इंसान तभी सच्चा है, जब वह अपने अंदर के समुन्दर को पहचान ले।आठवाँ अध्याय – पूर्णता का ज्वार
आदित्य अब कवि बन चुका था।उसकी कविताएँ किताबों में छपने लगीं।लोग उसे सुनने के लिए दूर-दूर से आने लगे।
एक समारोह में उसने कहा—“मेरा समुन्दर सिर्फ़ मेरा नहीं, हम सबका है।हर किसी के भीतर ज्वार-भाटा है।अगर हम इन लहरों को समझ लें, तो जीवन का अर्थ पा लेंगे।”
तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी।निष्कर्ष
आदित्य की कहानी हमें यही सिखाती है—हर इंसान के भीतर एक समुन्दर है।उसमें कभी ज्वार आता है—उम्मीदें, सपने, भावनाएँ उमड़ पड़ती हैं।और कभी भाटा—निराशा, अकेलापन, दर्द।पर असली जीवन वही है जो इन उतार-चढ़ाव को स्वीकार करके आगे बढ़ता है।
आख़िरकार आदित्य ने लिखा—
"मेरा समुन्दर मैं ही हूँ,उसकी लहरें मेरी धड़कनें हैं।ज्वार मेरी उम्मीदें हैं,भाटा मेरे सबक।और यही जीवन का सत्य है।"
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी