A journey of dreams in Hindi Motivational Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | एक सफर हो सपनों का

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एक सफर हो सपनों का



एक  सफर हो  सपनों का 
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 लेखक: विजय शर्मा एरी


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प्रस्तावना

ज़िंदगी हर किसी को एक कहानी देती है। कुछ लोग हालातों से हार मानकर वहीँ ठहर जाते हैं और कुछ अपने सपनों को पंख लगाकर उन्हें आसमान तक उड़ाते हैं। यह कहानी अर्जुन की है, जो एक छोटे से कस्बे से बड़े-बड़े सपनों को देखने की हिम्मत करता है और अपने संघर्ष से उन्हें सच भी कर दिखाता है।


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अध्याय 1 – मासूम ख्वाब

अर्जुन पंजाब के एक छोटे कस्बे में पैदा हुआ। मिट्टी की खुशबू, खेतों की हरियाली और छोटी-सी दुनिया में पले-बढ़े अर्जुन की आँखों में हमेशा एक चमक रहती थी।

वह अकसर गाँव की छत पर लेटकर तारों को निहारता और माँ से कहता—

अर्जुन:
“माँ, ये तारे कितने चमकते हैं न? एक दिन मैं भी ऐसा चमकूँगा, सब मुझे देखेंगे।”

माँ (मुस्कुराकर):
“बेटा, तारे बनने के लिए आसमान की ऊँचाई तक पहुँचना पड़ता है। मेहनत करनी होगी।”

अर्जुन के पिता खेती-बाड़ी में लगे रहते। घर का खर्च बहुत मुश्किल से चलता। पढ़ाई के लिए साधन कम थे, लेकिन अर्जुन की लगन ज़्यादा थी। स्कूल में जब टीचर पूछते कि—
“बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?”
तो सब बच्चे कहते—डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर।
लेकिन अर्जुन हमेशा कहता—
“मैं बड़ा आदमी बनूँगा। ऐसा आदमी, जो अपने सपनों से दूसरों का रास्ता रोशन करेगा।”


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अध्याय 2 – संघर्ष की शुरुआत

कॉलेज तक पहुँचते-पहुँचते अर्जुन को समझ आ गया कि सपने सिर्फ़ कहने से पूरे नहीं होते। पढ़ाई के लिए किताबें खरीदनी थीं, लेकिन पैसों की कमी थी। वह अकसर पुरानी किताबों से काम चलाता।

एक दिन उसका दोस्त राजेश बोला—
“यार अर्जुन, तू इतने पुराने नोट्स से क्या कर लेगा? नए जमाने में सबको स्मार्टफोन, कोचिंग चाहिए। तेरे पास तो कुछ भी नहीं।”

अर्जुन ने मुस्कुराकर जवाब दिया—
“मेहनत और लगन से बड़ा कोई साधन नहीं होता। मेरी किताबें भले पुरानी हैं, लेकिन मेरे सपने नए हैं।”

वह दिन-रात पढ़ाई करता, गाँव की लाइब्रेरी में घंटों बैठा रहता। गाँव वाले कहते—“ये लड़का पागल है, कुछ नहीं कर पाएगा।” लेकिन अर्जुन जानता था कि लोग वही बोलते हैं जो खुद कभी कोशिश नहीं करते।


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अध्याय 3 – पहला बड़ा कदम

कॉलेज खत्म होने के बाद अर्जुन को दिल्ली में जॉब का ऑफ़र मिला। यह उसके सपनों की पहली सीढ़ी थी। लेकिन गाँव से दिल्ली जाना आसान नहीं था। माँ रोते हुए बोलीं—
“बेटा, ये शहर बड़ा है, लोग अजनबी हैं। कैसे रह पाएगा तू वहाँ?”

अर्जुन ने माँ का हाथ पकड़कर कहा—
“माँ, डर से भागकर मंज़िल नहीं मिलती। मैं वादा करता हूँ, एक दिन आपको मुझ पर गर्व होगा।”

दिल्ली का सफ़र शुरू हुआ। छोटा-सा बैग, थोड़े पैसे और दिल में बड़े सपने।


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अध्याय 4 – शहर की सच्चाई

दिल्ली पहुँचते ही अर्जुन को लगा जैसे वह किसी दूसरी दुनिया में आ गया हो। ऊँची-ऊँची इमारतें, चमकती रोशनी, भीड़ में भागते लोग।

पहले कुछ महीने मुश्किल थे। किराए का कमरा छोटा और तंग था। खाने को बस दाल-चावल। कभी-कभी तो पेट भरने के लिए बिस्कुट से काम चलाना पड़ता।

ऑफ़िस में भी आसान नहीं था। वहाँ के लोग उसकी साधारण बोली और कपड़ों का मज़ाक उड़ाते।
“गाँव से आया है, यहाँ क्या कर लेगा?” वे कहते।

लेकिन अर्जुन चुप रहता और मन ही मन दोहराता—
“आज वो हँसते हैं, कल तालियाँ बजाएँगे।”


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अध्याय 5 – ठोकरें और सबक

एक दिन ऑफिस में बड़ी मीटिंग थी। अर्जुन ने पूरी तैयारी की थी। लेकिन प्रेजेंटेशन देते समय अंग्रेज़ी में गलती हो गई। सब हँस पड़े।

उस रात अर्जुन अकेला कमरे में बैठा रोया। लगा कि सपने बहुत बड़े हैं और वह बहुत छोटा।
लेकिन तभी माँ का कहा एक वाक्य याद आया—
“बेटा, ठोकरें गिराने के लिए नहीं, सिखाने के लिए होती हैं।”

अगले ही दिन से अर्जुन ने अपनी अंग्रेज़ी सुधारने की ठान ली। वह देर रात तक पढ़ाई करता, हर दिन नए शब्द लिखता। धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास लौट आया।


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अध्याय 6 – मेहनत का रंग

कुछ महीनों बाद अर्जुन ने वही प्रेजेंटेशन दोबारा दिया। इस बार सब दंग रह गए। बॉस ने कहा—
“अर्जुन, तुम्हारी मेहनत ही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है। यही तुम्हें आगे ले जाएगी।”

उस दिन अर्जुन ने महसूस किया कि सफलता एक दिन में नहीं आती, बल्कि रोज़-रोज़ की कोशिशों से बनती है।


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अध्याय 7 – सपनों का सच होना

धीरे-धीरे अर्जुन का काम मशहूर होने लगा। उसे नई-नई ज़िम्मेदारियाँ मिलने लगीं। प्रमोशन हुआ, सैलरी बढ़ी। लेकिन उसने कभी अहंकार नहीं किया।

एक दिन उसने सोचा—
“मेरे सपनों का असली मतलब सिर्फ़ खुद का सफल होना नहीं है, बल्कि औरों के लिए रास्ता बनाना है।”

उसने गाँव के बच्चों के लिए किताबें और छात्रवृत्ति भेजनी शुरू की। गाँव के लोग हैरान थे। वही अर्जुन, जिसके पास कभी खुद किताबें खरीदने के पैसे नहीं थे, आज दूसरों की मदद कर रहा था।


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अध्याय 8 – गाँव की वापसी

कई साल बाद अर्जुन गाँव लौटा। स्टेशन पर भीड़ जमा थी। लोग उसे देखने के लिए उत्सुक थे।

बचपन के दोस्त ने कहा—
“अर्जुन, तू तो सचमुच आसमान छू आया।”

अर्जुन मुस्कुराया और बोला—
“नहीं दोस्त, मैंने बस अपने सपनों का सफ़र तय किया। आसमान अभी भी बड़ा है।”

उसने गाँव के बच्चों को इकट्ठा किया और कहा—
“बच्चों, सपनों से कभी मत डरना। हालात चाहे जैसे हों, मेहनत और हिम्मत से हर सपना पूरा होता है। याद रखना, सपनों का सफ़र लंबा होता है, लेकिन मंज़िल मीठी होती है।”


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उपसंहार

अर्जुन की कहानी हमें सिखाती है कि—

सपने देखने में कभी शर्म नहीं करनी चाहिए।

हालात चाहे कितने भी कठिन क्यों न हों, हिम्मत और मेहनत से रास्ता बनता है।

असली सफलता वही है, जो सिर्फ़ हमें नहीं, बल्कि समाज को भी रोशनी दे।



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🌟 संदेश:
“सपनों का सफ़र आसान नहीं होता, लेकिन जब दिल में विश्वास और कदमों में दृढ़ता हो, तो मंज़िल खुद रास्ता दिखा देती है