that way in Hindi Thriller by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | वो रास्ता

Featured Books
Categories
Share

वो रास्ता



---

वो रास्ता 

लेखक – विजय शर्मा एरी


---

अध्याय 1 – खतरनाक मोड़

कार ने तेज़ी से एक नुकीले मोड़ को काटा और सामने से आती बस से बाल-बाल बच गई। टायर चीख पड़े, दिल धड़कने लगे, और कुछ क्षण के लिए समय थम-सा गया।

“ओए राघव! तेरी ड्राइविंग देखकर तो भगवान भी छुट्टी पर चला जाए,” समीर ने सीट पकड़ते हुए चिल्लाया।

राघव ने हँसते हुए कहा, “अरे यार, टेंशन मत लो… सब कंट्रोल में है।”

“कंट्रोल?” अनन्या ने आंखें तरेरीं, “अगर बस ड्राइवर ने ब्रेक ना मारा होता तो आज हमारी फोटो अखबार में छप रही होती।”

मीरा ने धीरे से कहा, “यात्रा की शुरुआत ही ऐसे हुई है, तो सोचो आगे क्या होगा।”

चारों दोस्त—राघव, समीर, अनन्या और मीरा—अपने कॉलेज के दिनों के वादे को पूरा करने निकले थे। हिमाचल की वादियों में एक रोड ट्रिप, जो उन्हें ज़िंदगी भर याद रहे।


---

अध्याय 2 – आज़ादी की खुशबू

मोड़ पार करते ही घाटियाँ खुल गईं। नीले आसमान में तैरते बादल, देवदार के पेड़ और ठंडी हवाएँ मानो उनका स्वागत कर रही थीं।

मीरा ने खिड़की नीचे की, बाल खुले छोड़ दिए।
“यार, यही है असली आज़ादी,” उसने आँखें बंद करके कहा।

समीर ने गाना लगा दिया—

“ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना… यहाँ कल क्या हो किसने जाना…”

चारों मिलकर गाने लगे, जैसे फिर से कॉलेज के दिनों में लौट आए हों।

रास्ते में एक ढाबा आया। तवे से उतरते पराठों और गरमा-गरम चाय की ख़ुशबू ने सबको रोक लिया। ढाबे वाले बूढ़े पहाड़ी ने मुस्कुराते हुए कहा—
“बच्चो, अगर असली रोमांच देखना है तो ये पुराना रास्ता पकड़ लो। अब वहाँ कोई नहीं जाता, लेकिन… मज़ा आएगा।”

राघव ने भौंहें उठाईं, “समीर! तेरे कान खड़े हो गए हैं।”

समीर हँस पड़ा, “भाई, adventure ke liye ही तो निकले हैं।”

अनन्या बोली, “पता नहीं, सुरक्षित रास्ता छोड़ना ठीक रहेगा?”

मीरा मुस्कुराई, “कभी-कभी रिस्क ही यादें बनाता है।”

सबने हामी भरी और कार मोड़ दी उस रहस्यमयी रास्ते की तरफ़।


---

अध्याय 3 – बारिश और डर

शुरुआत में रास्ता आसान लगा, फिर अचानक सड़क टूटी-फूटी कीचड़ भरी पगडंडी में बदल गई। तभी बादल गरजे और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।

एक ढलान पर गाड़ी फँस गई। टायर घूमते रहे, कार पीछे की ओर फिसलने लगी।

“राघव! ब्रेक दबा!” मीरा चिल्लाई।

“लगा रहा हूँ… काम ही नहीं कर रहा!” राघव हाँफते हुए बोला।

कार सीधे खाई की ओर सरकने लगी।

समीर झटके से बाहर कूदा, पत्थर उठाकर टायरों के पीछे फेंक दिए। कपड़े भीग गए, चेहरे पर कीचड़, पर जज़्बा अडिग।

कार रुक गई। सबने राहत की साँस ली।

अनन्या ने कांपते स्वर में कहा, “अगर समीर ना होता तो…”

समीर हँस पड़ा, “तो हमारी दोस्ती की कहानी यहीं खत्म हो जाती, और ऊपर भगवान के पास नई फिल्म शुरू हो जाती।”


---

अध्याय 4 – वीरान झोंपड़ी

आगे का रास्ता पूरी तरह बंद था। मजबूरन कार छोड़कर चारों पैदल निकल पड़े। जंगल की नमी, बारिश की बूँदें और खामोशी—सब दिल दहला रहे थे।

घंटों भटकने के बाद उन्हें एक पुरानी लकड़ी की झोंपड़ी मिली। छत टपक रही थी, पर पनाह दे सकती थी।

भीतर आग जलाई गई, बचे-खुचे बिस्कुट बाँटे गए।

राघव ने माहौल हल्का करने की कोशिश की, “Netflix को स्क्रिप्ट देनी चाहिए—चार पागल दोस्त, जंगल में फँसे!”

पर आधी रात को डरावनी आहटें सुनाई दीं। बाहर किसी के कदमों की आवाज़।

दरवाज़ा चर्र-चर्र की आवाज़ से खुला। एक ऊँचा आदमी लालटेन लिए खड़ा था।

सब डर के मारे सिहर गए।

फिर उसने मुस्कुरा कर कहा, “डरो मत, मैं यहीं का चरवाहा हूँ। रास्ता भूल गए लगते हो।”

राहत की साँस लेते हुए सबने सर हिलाया।

“सुबह मैं तुम्हें गाँव तक पहुँचा दूँगा,” उसने आश्वासन दिया।


---

अध्याय 5 – जान का पुल

सुबह वे चरवाहे के साथ चल पड़े। रास्ता कठिन था। अचानक उन्हें एक तेज़ नदी के ऊपर टूटा-फूटा लकड़ी का पुल पार करना पड़ा।

पुल हवा में डगमगा रहा था।

“ये टूट जाएगा!” अनन्या घबरा गई।

“डरो मत,” चरवाहे ने कहा, “बस एक-दूसरे पर भरोसा रखो।”

राघव पहले गया। मीरा उसके पीछे-पीछे। समीर मज़ाक करता रहा—“Hero की तरह चलो, पुल भी खुश हो जाएगा।”

बीच में पहुँचकर अनन्या जम गई।
“मैं नहीं जा सकती!” उसकी आँखों में आँसू थे।

राघव ने हाथ बढ़ाया, “अनन्या! मेरी तरफ देखो। कॉलेज में जब प्रेज़ेंटेशन से डरती थी, तब भी मैंने कहा था ‘तुम कर सकती हो’। आज भी वही कह रहा हूँ।”

कांपते कदमों से वह धीरे-धीरे आगे बढ़ी। जैसे ही किनारे पर पहुँची, वह राघव की बाहों में गिर गई।

“ज़िंदगी भर ये दिन याद रहेगा,” उसने धीरे से कहा।


---

अध्याय 6 – गुप्त गाँव

कई घंटों की थकान के बाद एक छिपा हुआ गाँव मिला। छोटे-छोटे घर, धुएँ की खुशबू और लोगों की आत्मीय मुस्कान।

गाँववालों ने गरमा-गरम राजमा-चावल खिलाए। बच्चे हँसते-खिलखिलाते उनके चारों ओर घूमते रहे।

शाम को आग जलाई गई, लोकगीत गाए गए। मीरा भी तालियाँ बजाते हुए शामिल हो गई।

समीर ने धीरे से कहा, “इतनी शांति… शायद शहरों में कभी नहीं मिलेगी।”

रात को चारों खुले आकाश के नीचे लेटे। सितारों की चमक, ठंडी हवा और दोस्ती की गरमी।

अनन्या गुनगुनाई—

“मुसाफ़िर हूँ यारों, न घर है न ठिकाना…”

बाकी तीनों भी सुर में सुर मिला बैठे।


---

अध्याय 7 – लौटने का सबक

कुछ दिनों बाद गाँववालों ने उन्हें मुख्य सड़क तक पहुँचा दिया। कार धूल में ढकी खड़ी थी, पर सही सलामत।

जब वही खतरनाक मोड़ सामने आया, राघव ने इस बार धीरे-धीरे गाड़ी मोड़ी।

“ज़िंदगी भी ऐसे ही है,” उसने कहा, “तेज़ी से चलोगे तो खतरा है। संभलकर चलोगे तो मंज़िल जरूर मिलेगी।”

समीर ने हँसते हुए कहा, “और अगर फिसल भी गए, तो दोस्त हमेशा बचा लेंगे।”

चारों ने ठहाका लगाया।

पहाड़ पीछे छूट गए, पर दिल में एक अमिट याद बन गई—दोस्ती, साहस और जीवन का सबसे रोमांचक सफ़र।


---