Magical water in Hindi Horror Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | जादुई पानी

Featured Books
  • એક દિવ્ય સોપાન - ભાગ 2

    ભાગ 2 : SK ની કંપની માં એક નવા યુગ ની શરૂઆત Queen દ્વારા થઇ...

  • રૂમ નંબર 208 - 1

    સવારના ૭ વાગ્યાનો સમય હતો અને મુંબઈ ના ગીચ વિસ્તારમાં આવેલી...

  • હુ તારી યાદમાં 2 - (ભાગ-૧૭)

    હું ચાલીને આગળ ગયો અને જોયું લોકો ગાડીવાળાને ઘેરીને ઊભા હતા...

  • નાઇટ ડ્યુટી - 2

    નાઇટ ડ્યુટી"એ ડાર્ક કોમેડી, એક્શન, થ્રીલર નોવેલ છે નોવેલમાં...

  • MH 370- 16

    16. દળી દળીને ઢાંકણી માં!એ આદિવાસી રાડ નાખતો પડ્યો એ સાથે મે...

Categories
Share

जादुई पानी

जादुई पानी 

गाँव का नाम था नारायणीपुर — खेतों की हरी चादर, मल्लाहों के बोले-गाने, और एक पुराना तालाब जो पूरे गाँव की पहचान था। तालाब के किनारे पेड़ों की साया, शाम की ठंडी हवा और बचपन की डुबकी—सब के सब यादें थीं। पर उसी तालाब के पीछे एक अजीब सा किस्सा भी जुड़ा हुआ था: बूढ़े कहते थे कि बरसात के मौसम में जब पानी गहरा और काला हो जाता है, तो वह ऐसा बदल जाता है कि लोग उसे 'शैतानी पानी' कहने लगे थे।

नीलम तब अपने शहर की नौकरी छोड़कर लौट आई। दस साल बाद पहली बार वह अपने पैतृक गाँव में आई—एक छोटी-सी सरकारी स्कूल में अध्यापिका बनकर। शहर की भागदौड़ और चमक-दमक से थक कर उसने सोचा था कि गाँव के ठहराव में जीना अच्छा होगा। नीलम ने गाँव की गली-गली से परिचय लिया, पर तालाब के बारे में पूछते ही लोगों के चेहरे पर झुर्रियाँ और चुप्पी समा जाती। कुछ लोग हँसकर टाल देते, कुछ आँखें जरा भयभीत हो जातीं।

“शैतानी पानी? ऐसी बातें अब भी?” नीलम ने पूछा, पर मन में curiosity थी।“कहते तो हैं। पर बस किस्से-परकिस्से। तू परेशान मत हो,” राघव ने कहा—नीलम का बचपन का दोस्त, जो अब गाँव में ही खेती करता था और उसे शहर की खबरें सुनाता था।

राघव धीरे-धीरे बड़ा हो चुका था—चेहरे पर धूप की लगी रेखाएँ थीं, पर आँखों में वही बचपन की चंचलता थी। नीलम को उससे मिलकर अच्छा लगा। पर तालाब का नाम आते ही राघव भी गंभीर हो गया।

“पिछली बार भाई, जब पानी ऐसा हुआ था, तो तीन लोगों ने बदला लिया और सब कुछ बिगड़ गया। किसी ने उसे 'शैतानी' कहा। गाँव में डर फैल गया।” राघव ने शब्दों को कसकर कहा।

नीलम ने सोचा—क्या यह बस लोगों के डर का नाम है? क्या विज्ञान नहीं समझा सकता? उसने स्कूल में बच्चों के लिए एक प्रोजेक्ट सोचा—तालाब और पानी का परीक्षण। पर गाँव के बुजुर्गों ने इसे नैतिकता और परंपरा का उल्लंघन मान लिया।

एक शाम नीलम अकेले तालाब के पास बैठी थी—हवा में मिट्टी की खुशबू थी और दूर खेतों की पोटली पर बिजली चमक रही थी। पानी पर चाँद की छाया बिखरी थी—पर उस रात तालाब के पानी में कुछ अजीब चमक थी, जैसे अंदर से कोई धीमा-धीमा लौ जली हो। नीलम ने मन ही मन कहा, “बस परिकल्पना... कुछ तो गड़बड़ है।”

अगले दिन गाँव में खबर फैली—एक बूढ़े मल्लाह, रघुनाथ, का व्यवहार अचानक बदल गया। वह जो कभी शांत था, अब लोगों से झगड़ रहा था; उसने भांति-भांति की बातें कर डाली—अपनी ही पत्नी से दूरी बना ली, बेटे को नीचा दिखाया। दूसरा मामला—गाँव के स्कूल के ही छात्र मनु, जो हँसमुख बच्चा था, रात में तालाब के पास गया और सुबह उसे अजीब चिल्लाहट के साथ गाँव वालों ने देखा। मनु ने कहा, “मुझे पानी ने बोलाया था”—आँखों में कुछ अलग सी चमक थी।

धीरे-धीरे और घटनाएँ जुड़ने लगीं। गाँव के लोग एक-दूसरे से झगड़ने लगे, पुराने दुश्मन अचानक फिर उठा दिए। किसी के घर के दरवाजे खुद-ब-खुद खुलते, किसी के खाट पर चोट के निशान मिलते। लोग डरने लगे और तालाब के किनारे जाने से बचने लगे। नीलम ने सोचा कि यह मानसिकता फैल रही है—पर कैसे?

नीलम ने वैज्ञानिक तरीके अपनाने का निश्चय किया। उसने कुछ बच्चे चुने और गाँव के एक छोटे प्रयोगशाला से किट मंगवाई—पानी की पीएच, धातु का स्तर, कीटनाशक, और अन्य परीक्षण। राघव ने चुपके से उसकी मदद की। वे दोनों रात में तालाब के पास छुपकर पानी के सैंपल लेने गए। पानी की गंध सामान्य से ज्यादा तेज थी—एक तरह की रासायनिक कड़वाहट। किट में कुछ संकेत मिले—कुछ विषैले रसायनों के संकेत। पर ये रसायन किसने डाले? गाँव में तो कोई फैक्टरी नहीं थी—या था?

राघव ने कहा, “पिछले साल तो गाँव के पास एक नई मिल बनी थी—पर वह आधी रात को नहीं दिखती। लोगों ने कहा कि वह काम बंद है, पर...”

नीलम ने तय किया कि वे पहचान करेंगे कि रसायन कहां से आ रहे हैं। पर तभी गाँव में एक और घटना घटी—गाँव का प्रधान बोला कि तालाब के पास रखे कुछ धनुर्विद्या (खेतों के पानी के पम्प) अचानक खराब हो गए, और कोई अजीब आवाजें सुनाई देने लगी। लोग कहते कि पानी बोल रहा था; कुछ ने कहा पानी ने उन्हें उनके खुद के पाप दिखा दिए।

नीलम ने महसूस किया कि यहाँ केवल रसायन नहीं—कुछ और भी है। उसने पुरानी किताबें खोजीं—गाँव के मंदिर में मिले पुराने रिकॉर्ड में लिखा था कि इस तालाब को एक राजा ने बनवाया था—एक समय जब नदी का रुख बदला था और गाँव में कभी भी पानी कम नहीं हुआ। पर साथ ही एक शासक की कहानी भी थी जिसने अपने राज को बचाने के लिए नदियों की राह बदली और जनता का दर्द नहीं जाना। कहा जाता था कि तालाब में राजा के आत्मा की खिन्नता है—पर यह सब राय-रिवाज ही था।

नीलम और राघव ने गाँव के बुज़ुर्ग बाबा श्यामा से मिलने का निश्चय किया। बाबा एकाकी रहते थे और सब कहावतें जानते थे। झुर्रियों भरे चेहरे पर बाबा ने कहा, “यह पानी खुद नहीं शैतानी होता—इंसान की हरकत, उसकी नीयत और प्रकृति की चोट मिलकर उसको शैतान बना देती हैं।” बाबा की बातें नीलम को थोड़ी अध्यात्मिक लगीं पर उन्होंने कहा, “तू विज्ञान से काम कर, और लोगों से भी बात कर। सबने जो छुपा रखा है, वह पानी पर आ जाएगा।”

नीलम ने गाँव में एक सभा आयोजित की—टीचर के रूप में उसने लोगों से कहा कि वे सामूहिक रूप से तालाब की सफाई करें और किसी भी तरह का रसायन नहीं डालें। पर सभा में कुछ लोग खामोश रहे—किसी ने खुलकर कहा कि तालाब के पास रात में कुछ ट्रक आते हैं और कुछ सामान डाला जाता है। पर किसने डाला, किसके कहने पर—किसी को याद नहीं। डर का माहौल था। फिर एक ज़ुबान खुली—श्रीवास्तव, जो गाँव के पास बनी मिल में काम करता था, ने बताया कि मिल के एक हिस्से का प्रबंधक गाँव के कुछ बड़े लोगों के साथ मिलीभगत कर रहा है। वह रात को यूं नहीं आता था कि बस पानी फेंक दे—वह पैसे के लिए गाँव के किसी पुराने कुएँ और चैनलों में कैसें मिला देता है जिससे पानी में बदलाव आता है।

यह सुनकर गाँव में गुस्सा और भय दोनों मिले। पर यह केवल व्यावसायिक लापरवाही नहीं थी—किसी ने इतनी हैरत से सोचा कि पानी ने लोगों को नहीं बदला; पानी में डाला गया मिला-जुला हुआ रसायन और गांववालों की गुप्त बातों ने मिलकर लोगों के अंदर के डर, हठ और ईर्ष्या को बाहर निकाल दिया। जब वातावरण में नीच चाहत और अपराध था, तो पानी ने उसे प्रतिबिंबित किया। यानी 'शैतान' पानी नहीं, वह एक दर्पण था—जो अंदर छुपे सच को बाहर लाता था।

पर कुछ लोगों ने इस व्याख्या को स्वीकार नहीं किया। एक रात, तालाब के पास एक बड़ा जश्न हुआ। कुछ युवकों ने पानी में कूदकर मस्ती की, पर उसी रात, पानी की लहरों ने एक युवक को गोद में उठा लिया—वह डूबा नहीं, पर उसकी आँखों में ऐसा सूखा भाव था—और उसने कहा, “पानी ने मुझे अपने पुराने पाप दिखाए। मैं डर गया।” गाँव में कई लोगों ने अपने-अपने गुप्त पापों का स्वीकार किया—और इससे गांव का सामाजिक ताना-बाना झकझोर गया।

नीलम ने महसूस किया कि केवल सफाई और कानून लागू करने से काम नहीं चलेगा। पानी तो साफ होगा पर लोग अपने भीतर के कोहरे को कैसे साफ करेंगे? उसने स्कूल के बच्चों के साथ एक मुहिम शुरू की—'जागरूकता और स्वच्छता'—पर साथ ही एक दूसरे पहल की ज़रूरत थी—मानवता और माफी की।

उसने गाँव के मंदिर में एक रात का सामूहिक ध्याय-पूजा और मनन आयोजित किया—जहाँ हर व्यक्ति को अपने अंदर झाँक कर, अपने छोटे-बड़े अपराध स्वीकारने थे। यह कठिन था—कई लोग डर रहे थे कि अगर उन्होंने सच कहा, तो उनके रिश्ते टूट जाएंगे; काम टूट जाएगा। पर नीलम ने कहा, “इंसान की सबसे बड़ी शक्ति उसकी इमानदारी है—यदि हम सच स्वीकार कर लें, तो पानी हमें शैतान नहीं बनेगा।”

वही रात जब गाँव वाले बैठ कर अपने-अपने दमन और अपराध की सूची पढ़ने लगे, वही रात तालाब का पानी धीमे-धीमे शांत हुआ। पर तभी अजीब घटना हुई—तालाब का मध्य भाग एक हल्की रोशनी से चमक उठा, और एक स्वर सा सुनाई दिया, जैसे पुरानी नदी का गीत। लोगों के सीने काँपे, पर वह गीत दुख और पछतावे से भरा था। राघव ने कहा, “शायद यह खेद की आवाज़ है—हमारी खुद की आवाज़।”

नीलम ने मन ही मन देखा कि कई लोग आँसुओं से भीगे थे—वे अपने किए पर पछताते थे। किसी ने कहा, “यदि मैं समय वापस लाकर कुछ बदल पाता...” और किसी ने कहा, “मैं माफ़ी माँगता हूँ।” धीरे-धीरे सामूहिक रूप से एक परिवर्तन देखने को मिला—लोग न केवल तालाब की सफाई में जुटे, बल्कि अपने-अपने घरों में भी बदलाव लाने लगे। कुछ ने जमी हुई जमीन की अपेक्षाएँ घटाईं, कुछ ने अपने रिश्तों में माफी माँगी। पानी की 'शैतानी' छवि धीरे-धीरे परचीन्हे में बदलने लगी—यह अब दंड नहीं, दर्पण था। जो अंदर अच्छा नहीं था, उसे लोगों ने देखा और सुधार की ओर चला।

पर कहानी यहाँ समाप्त नहीं हुई। कुछ लोग थे—जो माफ़ी नहीं चाहते थे। गाँव के कुछ प्रभावशाली लोग, जो मिल के मालिकों के जुड़े हुए थे, पानी के असल कारण को छुपाना चाहते थे। वे चाहते थे कि गाँव की परीक्षा जल्दी समाप्त हो, ताकि व्यवसाय अलग तरह से चल सके। उन्होंने नीलम और राघव की मुहिम को रोकने के लिए अलग बातें शुरू कीं—विभिन्न झूठ और अफवाहें फैलाईं। पर अब गाँव में जागरूकता थी—लोगों ने मिल के खंड के खिलाफ एक ठोस शिकायत की जो राज्य अधिकारियों तक पहुंँची।

जब अधिकारी आए तो वे देखकर चकित रह गए—पानी की जाँच रिपोर्ट में खतरनाक धातुओं का स्तर ऊँचा निकला। मिल पर जुर्माना और आदेश आया। पर इससे भी महत्वपूर्ण था गाँव का परिवर्तन—लोगों ने मिल पर दबाव डालकर उसे पर्यावरण के अनुरूप बनाने का फैसला करवाया। वहां के मालिकों ने—शुरू में जो नापसंद थे—समझौता किया तथा कुछ लोगों ने गाँव के साथ बैठ कर एक समझौता किया: मिल खर्च उठा कर साफ-सफाई का प्रबंध करेगी और तालाब की रक्षा की जिम्मेदारी साझा की जाएगी।

समय के साथ तालाब साफ हुआ—हरा-भरा घास उगा, मछलियाँ लौट आईं और पानी फिर से सुखदायक हो गया। लेकिन नीलम और राघव ने महसूस किया—कुछ निशान हमेशा रह जाते हैं। तालाब के तल में जो गहरे सिकुड़े हुए कंकाल या भूल-भुलैया जैसे पाप थे, वे साफ हुए पर वे सिखा गए थे कि प्रकृति और इंसान के बीच का तालमेल कितना नाज़ुक है।

किसी की यादों में एक रात हमेशा जड़ी रही—जब तालाब ने सबके अंदर का सच दिखाया। गाँव के बच्चे आज भी उस रात की बातें सुनते हैं—कभी डर के साथ, तो कभी आश्चर्य से। नीलम अक्सर तालाब किनारे बैठकर बच्चों को कहानी सुनाती—कि पानी को शैतान मानना गलत था; वह सिर्फ़ दर्पण था, और दर्पण में दिखा हर चेहरा सच्चा था। वह कहती—“अगर तुम्हारी सोच में अच्छाई होगी, तो पानी भी तुम्हें अच्छा दिखाएगा।”

एक दिन स्कूल के बच्चों ने नीलम के सामने एक नाटक रखा—'शैतानी पानी और हम'। नाटक में उन्होंने दिखाया कि कैसे नीयत बदलने से दुनिया बदलती है, और कैसे प्रकृति को सम्मान देना हमारा धर्म है। नीलम की आँखें भर आईं—उसने कहा, “तुम सब ने जो सीखा, वही असली शिक्षा है।”

समाप्ति में, तालाब आज भी है—पर अब गाँव वाले उसे प्यार से 'नारायणी ताल' कहते हैं। वह तालाब जो एक बार 'शैतानी पानी' कहलाया करता था, अब गाँव का दर्पण बन गया—जो उनकी अच्छाई और बुराई का आईना है। पर अब गाँव ने यह सीखा कि आईने को टूटने देना नहीं चाहिए; बल्कि आईने के सामने साफ होना चाहिए।

नीलम के मन में एक धारणा बनी रही—मानव जब प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठा लेता है, तब देवी-देवता भी खुश रहते हैं। पर जब लोगों ने अपनी चाहतों के लिए प्रकृति को चोट पहुँचाई, तब "शैतानी पानी" बनकर सच ने उसे झकझोर दिया। यह कहानी इसलिए भी खास थी क्योंकि यह केवल एक गाँव की कथा नहीं थी—यह हर इंसान और पूरी दुनिया का प्रतिबिंब थी।

अंतिम दृश्य में नीलम और राघव तालाब के किनारे चुपचाप खड़े थे। चाँद की रोशनी पानी पर फ़ैल रही थी और हल्की हवा में तालाब की बाहें धीरे-धीरे हिल रही थीं। राघव ने नीलम को देखा और मुस्कुराते हुए बोला, “देखना, अगर हम सच में ठीक रहें, तो 'शैतानी' और कुछ नहीं—बस हमारी परछाइयाँ होंगी।”

नीलम ने आँखें बंद कर जोर से कहा, “मैं चाहता हूँ कि हमारा अगला पीढ़ी ऐसे तालाब पाये जहाँ पानी से भय नहीं—शांति मिले।” उसने फिर नीचे झुककर तालाब की सतह पर हाथ रखा—पानी ठंडा और स्पष्ट था। अंदर से कोई पुरानी गूँज थी—अब वह गूँज दर्द की नहीं, सीख की थी।

और गाँव के छोटे बच्चों ने वही गूँज दोहराई—“हमें अपने पानी से प्यार है।” तालाब ने शांत मुस्कान दी। शैतानी पानी अब केवल एक नाम रह गया—एक चेतावनी, एक याद, और एक प्रेरणा कि कभी भी प्रकृति के साथ धोखा मत करना।

—लेखक: विजय शर्मा एरी