Grandma's Last Legacy in Hindi Motivational Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | दादी की अंतिम विरासत

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दादी की अंतिम विरासत




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🌸 “दादी की अंतिम  विरासत”

✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी


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प्रस्तावना

गाँव की मिट्टी में एक अलग ही खुशबू होती है। वहाँ के घरों में बुज़ुर्गों का आशीर्वाद, उनके अनुभव और संस्कार नई पीढ़ी के लिए अमूल्य धरोहर होते हैं। यह कहानी ऐसी ही एक दादी की है, जिन्होंने अपने अंतिम सफ़र में भी परिवार को जीवन जीने का असली अर्थ सिखा दिया।


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पहला अध्याय – घर का दृश्य

गाँव पंजाब की सरहद पर था। घर बड़ा था, जिसमें चार बेटे, उनकी पत्नियाँ और पोते-पोतियाँ रहते थे। आँगन में नीम का पेड़ था, और बरामदे में एक बड़ी सी चारपाई, जिस पर शांता देवी – सबकी दादी माँ – अपना ज़्यादातर समय बिताती थीं।

पिछले कुछ महीनों से उनकी तबियत लगातार बिगड़ रही थी। कभी तेज़ खाँसी, कभी सांस फूलना। लेकिन चेहरे पर हमेशा वही संतोष और मुस्कान।

एक शाम परिवार इकठ्ठा हुआ।
राकेश (बड़ा बेटा): "माँ, आप शहर चलिए। वहाँ इलाज अच्छे से होगा।"
दादी (हंसते हुए): "बेटा, अब दवा से ज़्यादा दुआ काम आएगी। डॉक्टर नहीं, प्रभु ही ठीक करेंगे।"
कमला (बहू): "माँजी, आप ऐसा क्यों कहती हैं? आप हमें छोड़कर मत जाइए।"

दादी ने प्यार से उसका सिर सहलाया –
"बिटिया, जाने का डर उन्हें होता है, जिन्होंने जिया नहीं। मैंने जीवन भर प्रेम बाँटा है, अब विदाई से डर कैसा?"


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दूसरा अध्याय – दादी की इच्छा

अगली सुबह दादी ने पूरे परिवार को बुलाया।
दादी: "मैं तुम सब से एक निवेदन करना चाहती हूँ।"
सब ध्यान से बैठ गए।
दादी: "मुझे अपने पुराने गाँव के मंदिर और गंगा जी के दर्शन करने हैं। शायद ये मेरी आख़िरी यात्रा हो।"

कुछ क्षण सन्नाटा छाया रहा। अचानक पोता आदित्य आगे बढ़ा।
आदित्य: "दादी, मैं आपके साथ चलूँगा। आप अकेली नहीं जाएँगी।"

दादी की आँखें नम हो गईं।
"बेटा, यही तो मेरी असली दौलत है – तुम्हारा साथ।"


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तीसरा अध्याय – यात्रा की तैयारी

परिवार में हलचल मच गई। गाड़ी तैयार हुई। बहुएँ दादी के लिए पूड़ी-सब्ज़ी और पराठे बाँध रही थीं। पोते उत्साहित थे, जैसे कोई पिकनिक हो। लेकिन सभी जानते थे कि यह एक भावनात्मक यात्रा है।

दादी ने गाड़ी में बैठते ही कहा –
"बच्चों, याद रखना, सफ़र में धैर्य सबसे बड़ी दौलत है। जो धैर्यवान है, वही जीवन की हर मंज़िल तक पहुँच सकता है।"


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चौथा अध्याय – रास्ते की बातें

रास्ता लंबा था। खेतों में सरसों के फूल खिले थे। गाड़ी कभी ऊबड़-खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाती, कभी खेतों के बीच से निकलती।

आदित्य ने धीरे से पूछा –
"दादी, आपको थकान तो नहीं हो रही?"
दादी (हंसकर): "थकान शरीर को होती है बेटा, मन को नहीं। और मेरा मन तो खुश है कि मुझे गंगा माँ बुला रही हैं।"

कुछ देर बाद उन्होंने बच्चों को समझाया –
"बेटा, जीवन केवल कमाने का नाम नहीं है। जो इंसान दूसरों के आँसू पोंछता है, वही असली अमीर होता है।"


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पाँचवाँ अध्याय – गाँव का मंदिर

गाँव पहुँचते ही दादी की आँखें चमक उठीं। पुराने बरगद के पेड़ के नीचे वही छोटा-सा मंदिर था। घंटियों की मधुर ध्वनि सुनते ही दादी ने हाथ जोड़ दिए।

दादी: "यही वह जगह है, जहाँ मैं बचपन में घंटों भजन गाती थी। यही से मुझे धैर्य और विश्वास मिला।"

बहुएँ उनके साथ आरती करने लगीं। पोते घंटी बजाने लगे। पूरे गाँव में खबर फैल गई कि शांता देवी आई हैं। लोग मिलने उमड़ पड़े।
गाँव की औरतें: "माई, आप तो हमारी प्रेरणा हैं। आपकी बातें आज भी हमें याद हैं।"
दादी मुस्कुराईं –
"बेटियों, इंसान बूढ़ा हो सकता है, पर अच्छे कर्म कभी बूढ़े नहीं होते।"


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छठा अध्याय – गंगा तट

अगले दिन वे गंगा तट पहुँचे। सूरज की किरणें गंगा के जल पर पड़कर सोने-सा चमक रही थीं। ठंडी हवा चेहरे को छू रही थी।

दादी ने गंगा जी के सामने हाथ जोड़कर कहा –
"हे माँ गंगे! मेरा परिवार हमेशा सुखी रहे। इन्हें सच्चाई और इंसानियत का मार्ग दिखाना।"

उनकी आँखों से आँसू बह निकले। आदित्य उनके पास बैठकर बोला –
"दादी, मैं आपके हर शब्द को अपने जीवन में उतारूँगा।"

दादी ने उसे गले लगा लिया –
"बेटा, यही तो मेरी सबसे बड़ी जीत है।"


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सातवाँ अध्याय – घर वापसी

गाँव और गंगा दर्शन के बाद परिवार घर लौटा। दादी का चेहरा शांत और संतुष्ट था। लेकिन उनकी सेहत गिरती जा रही थी।

एक रात उन्होंने पूरे परिवार को अपने पास बुलाया।
दादी: "बेटा राकेश, कभी भी संपत्ति के लिए झगड़ा मत करना। परिवार सबसे बड़ी दौलत है।
कमला, घर को मंदिर की तरह पवित्र रखना।
आदित्य, पढ़ाई करना, लेकिन इंसानियत को मत भूलना।"

उनके शब्द जैसे अमृत की बूंदें थे।


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आठवाँ अध्याय – अंतिम विदाई

कुछ ही दिनों बाद दादी की साँसें धीमी होने लगीं। पूरा परिवार उनके चारों ओर बैठा था। दादी ने अंतिम बार कहा –
"बच्चों, मौत अंत नहीं है। यह तो बस एक और यात्रा की शुरुआत है। मुझे रोना मत, बल्कि मेरे दिए संस्कारों को जीना।"

इतना कहकर उन्होंने आँखें बंद कर लीं। चेहरा शांत था, जैसे कोई साध्वी समाधि में लीन हो।


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उपसंहार

दादी का शरीर भले ही मिट्टी में मिल गया, पर उनके शब्द और संस्कार परिवार की नस-नस में बस गए। गाँव के लोग कहते थे –
"शांता देवी आज भी जीवित हैं – अपने परिवार के कर्मों में।"


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संदेश

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन अस्थायी है, पर हमारे कर्म और संस्कार अमर होते हैं। असली विरासत सोना-चाँदी नहीं, बल्कि बुज़ुर्गों की सीख होती है।


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