---
वो आख़िरी ख़त
✍️ विजय शर्मा एरी
---
अध्याय 1 – पहली मुलाक़ात
दिल्ली यूनिवर्सिटी का कैंपस, सर्दियों की मीठी धूप। बरगद के पेड़ के नीचे बैठी रीमा किताबों में डूबी थी। तभी आरव उसके पास जाकर बोला
हाय, मैं आरव हूँ।
रीमा ने किताब से नज़र उठाई, मुस्कराई और कहा
माफ़ करना, अभी नोट्स पूरे करने हैं।
आरव हल्के से हँसा
तो नोट्स पूरे होने के बाद थोड़ी दोस्ती कर लेना।
रीमा ने शरारत से कहा
अगर तुम बार-बार आकर परेशान करोगे तो नोट्स कभी पूरे ही नहीं होंगे।
दोनों हँस पड़े। यही हँसी उनकी दोस्ती की पहली सीढ़ी बनी।
---
अध्याय 2 – मोहब्बत का रंग
धीरे-धीरे उनकी बातें बढ़ीं। लाइब्रेरी से लेकर कैंटीन तक, कॉलेज फंक्शन से लेकर कैंपस की गलियों तक, हर जगह उनकी दोस्ती खिलने लगी।
आरव कहता
मोबाइल से मैसेज करना बहुत आसान है, लेकिन खत लिखना… उसमें दिल की धड़कनें उतर जाती हैं।
रीमा मुस्कराकर जवाब देती
तो फिर तुम्हारे खतों का कलेक्शन मैं अलमारी में संभालकर रखूँगी। एक दिन गिनवाऊँगी कि तुमने कितनी बार मुझे याद किया।
कैंपस के फंक्शन में जब गाना बजा –
पहला नशा, पहला खुमार…
तो दोनों की आँखें मिल गईं। बिना कुछ कहे दोनों समझ गए कि अब दोस्ती से आगे बढ़ चुका है रिश्ता।
---
अध्याय 3 – सपनों की बातें
एक शाम कैंटीन में बैठे-बैठे आरव बोला
सोचो रीमा, अगर हमारा छोटा-सा घर हो… जिसमें एक छोटा-सा गार्डन हो और तुम उसमें गुलाब लगाओ।
रीमा ने हँसते हुए कहा
और तुम रोज़ शाम को पानी देना भूल जाओगे, है ना?
आरव ने कहा
नहीं, मैं भूलूँगा नहीं। वैसे भी तुम्हारी हँसी के बिना तो पौधे भी सूख जाएँगे।
रीमा का चेहरा लाल हो गया। उसने किताब से चेहरा छिपा लिया।
---
अध्याय 4 – जुदाई की आहट
कॉलेज खत्म हुआ। ज़िंदगी की राहें बदलने लगीं। आरव को एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई।
जाते समय उसने कहा
रीमा, बस कुछ महीनों की दूरी है। लौटकर आऊँगा और हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।
रीमा ने आँखों में आँसू रोकते हुए कहा
आरव, वादा करो कि तुम खत लिखना बंद नहीं करोगे।
आरव ने उसका हाथ पकड़कर कहा
तुम्हें मेरे बिना रहना मुश्किल लगेगा, इसलिए हर खत के साथ अपनी धड़कन भेज दूँगा।
दूर जाते समय उसकी आवाज़ हवा में तैर रही थी
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…
---
अध्याय 5 – हादसा
कुछ महीने तक खतों का सिलसिला चलता रहा। हर खत में आरव के सपने थे, योजनाएँ थीं, और रीमा के लिए उसका प्यार।
फिर एक दिन खबर आई। जिस प्रोजेक्ट के लिए आरव बाहर गया था, वहाँ एक भयानक हादसा हो गया। कई लोग घायल हुए और कुछ लौटकर नहीं आए।
रीमा ने बार-बार फोन मिलाया, मगर कोई जवाब नहीं।
उसने अपने कमरे की दीवार पर कैलेंडर में हर दिन निशान लगाया, सोचते हुए
आज तो उसका खत आएगा…
लेकिन डाकिया खाली हाथ लौट जाता।
---
अध्याय 6 – वो आख़िरी ख़त
बरसों बाद…
रीमा शादी कर चुकी थी, मगर उसके दिल के किसी कोने में आरव की याद धड़कती रही।
एक दिन पुराने बक्से को साफ़ करते समय उसे एक पीला पड़ा हुआ लिफ़ाफ़ा मिला।
उस पर लिखा था
मेरे अपने के नाम… मेरा आख़िरी खत।
रीमा के हाथ काँप गए। उसने लिफ़ाफ़ा खोला और पढ़ना शुरू किया।
---
रीमा,
जब तुम ये खत पढ़ रही होगी, शायद मैं तुम्हारे पास न रहूँ। ज़िंदगी ने मुझसे वो वक़्त छीन लिया, जो मैं सिर्फ़ तुम्हारे साथ जीना चाहता था।
मुझे याद है तुम्हारी हँसी, तुम्हारी जिद, तुम्हारे वो खत… जिनमें तुम हमेशा कहती थी कि हमारा प्यार कभी अधूरा नहीं होगा।
रीमा, मैं चाहता था कि तुम्हारे साथ बूढ़ा हो जाऊँ, तुम्हारे बच्चों को कंधों पर झुलाऊँ। मगर अब ये ख्वाहिश अधूरी रह जाएगी।
मेरी बस एक दुआ है—
अगर कभी तुम्हें लगे कि मैं चला गया हूँ, तो मेरी यादों को बोझ मत बनाना। उन्हें अपनी मुस्कान बना लेना।
तुम्हारी हँसी में ही मेरी रूह को सुकून मिलेगा।
हमारा प्यार खत्म नहीं होगा… बस मेरी सूरत बदल जाएगी।
तुम्हारा
आरव
---
अध्याय 7 – अमर मोहब्बत
खत पर आँसुओं के धब्बे बन गए। रीमा ने कागज़ को सीने से लगा लिया और कहा
तुम गए नहीं आरव, तुम यहीं हो, मेरी धड़कनों में।
उसने उस खत को फ्रेम करवा कर अपने कमरे की दीवार पर लगा दिया।
हर रात सोने से पहले वो खत पढ़ती और महसूस करती कि आरव कहीं दूर नहीं, बस उसके पास है।
कभी खिड़की से आती हवा में उसे वही गीत सुनाई देता…
जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए… तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा…
और वो समझ जाती कि आरव ने अपना वादा निभाया है।
---
अंततः
वो आख़िरी खत कागज़ का एक टुकड़ा नहीं था।
वो अमर मोहब्बत की निशानी था।
जिसने रीमा को सिखा दिया कि असली प्यार कभी मरता नहीं, वो बस रूप बदल लेता है।
---