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🌅 एपिसोड 24 – “अधूरी लौ, अनाया की नई शुरुआत”
हवेली के दरवाज़े अब पूरी तरह खुल चुके थे।
सालों से जो जगह बंद थी, आज वहाँ धूप बेझिझक उतर आई थी।
अनाया ने पलटकर आख़िरी बार हवेली की ओर देखा —
वो अब किसी डरावने अतीत की नहीं, बल्कि उसके अपने प्रेम की पहचान थी।
वो धीरे-धीरे हवेली की चौखट पार करती है।
हर कदम के साथ उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई अदृश्य स्पर्श उसकी पीठ पर हल्के से हाथ फेर रहा हो —
राज़ की मौजूदगी का एहसास।
“अब मैं अकेली नहीं हूँ…”
उसने आसमान की ओर देखा, और हल्के से मुस्कुरा दी।
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🌾 दरभंगा का सवेरा
सूरज अब पूरा उग चुका था।
गाँव के लोग अब हवेली को देखकर डरते नहीं थे —
क्योंकि रात की वह काली परछाईं अब गायब हो चुकी थी।
गाँव की बूढ़ी औरतें मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी आपस में बात कर रही थीं —
“सुना है, वो लड़की… अनाया, उसने हवेली का श्राप तोड़ दिया।”
दूसरी ने कहा, “अब हवेली में चाँदनी आती है, रुदन नहीं।”
अनाया गाँव की पगडंडी से होते हुए मंदिर की ओर बढ़ी।
उसने पल्लू सिर पर लिया, और मंदिर के सामने हाथ जोड़े।
घंटी की ध्वनि के साथ हवा में वही ख़ुशबू घुली — चंदन और गुलाब की।
“राज़…” उसने मन ही मन कहा,
“अगर तुम सुन रहे हो, तो जान लो… मैं अब तुम्हारी अधूरी लौ नहीं, तुम्हारी रौशनी बन चुकी हूँ।”
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🌸 नए किरदार की दस्तक
मंदिर के पीछे से किसी ने आवाज़ दी —
“माफ़ कीजिए… क्या आप अनाया हैं?”
वो मुड़ी — एक अजनबी खड़ा था।
गहरे भूरे बाल, तीखी नज़रें, और हाथ में पुराना कैमरा।
उसने मुस्कुराकर कहा,
“मेरा नाम आर्यव है। मैं पुरानी हवेलियों और इतिहासों पर रिसर्च करता हूँ।
सुना है, आपकी हवेली में कोई ‘चमत्कार’ हुआ?”
अनाया ने चौंककर कहा,
“चमत्कार नहीं… एक अधूरी रूह को शांति मिली।”
आर्यव ने कैमरा उठाया,
“तो क्या मैं उस हवेली की तस्वीरें ले सकता हूँ? मैं उसकी कहानी दुनिया तक पहुँचाना चाहता हूँ।”
अनाया ने हल्की मुस्कान दी,
“कहानी नहीं… रूह की गवाही समझिए।”
आर्यव ने सिर झुकाया,
“शायद यही तो सच्चा इतिहास होता है — जहाँ किताबें चुप हो जाएँ और आत्माएँ बोलें।”
अनाया पहली बार किसी अजनबी से बात करते हुए सहज महसूस कर रही थी।
पर उसके भीतर कहीं एक हल्की सिहरन थी —
आर्यव की आँखों में वही अजीब सी गहराई थी जो कभी राज़ की आँखों में थी।
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🔥 हवेली की वापसी
दोनों हवेली की ओर लौटे।
आर्यव हर दीवार को ध्यान से देख रहा था।
वो एक जगह रुक गया — हवेली के “रुमानियत-द्वार” के सामने।
“ये निशान…” उसने फुसफुसाया,
“मैंने ये पहले भी देखा है। राजस्थान की एक पुरानी हवेली में भी ऐसा ही प्रतीक था —
काले और सुनहरे रंग का। कहते हैं, ये प्रतीक ‘प्रेम और श्राप’ के संगम का होता है।”
अनाया ने धीरे से कहा,
“अब ये श्राप नहीं रहा। ये वादा है।”
आर्यव मुस्कुराया,
“तो क्या मैं ये मान लूँ कि इस हवेली ने अपना वादा पूरा कर दिया?”
अनाया ने दीवार पर हाथ रखा।
दीवार से हल्की रौशनी फूटी — जैसे हवेली ने उसकी बात स्वीकार की हो।
आर्यव कुछ पल उसे देखता रहा।
उसकी आँखों में अचरज था —
“आपके स्पर्श से ये दीवार… जीवित हो गई।”
अनाया ने कहा,
“क्योंकि ये सिर्फ ईंटें नहीं… यादें हैं।”
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🌙 रात की अजीब पुकार
शाम होते-होते हवेली फिर शांत हो गई थी।
अनाया ने आर्यव को अतिथि कक्ष में ठहरने का कहा।
वो खुद बालकनी पर खड़ी होकर चाँद को देख रही थी।
तभी हवा में एक धीमी फुसफुसाहट गूंजी —
> “अनाया…”
वो मुस्कुराई,
“मुझे पता है, तुम यहीं हो राज़।”
पर इस बार आवाज़ राज़ की नहीं थी।
> “तुमने सोचा मैं मिट गया?
प्रेम की आग बुझती नहीं, वो बस रूप बदलती है…”
अनाया ने चौककर चारों ओर देखा।
खिड़की के शीशे पर हल्की आकृति उभरी —
आधा चेहरा सुनहरी, आधा काला।
वो चेहरा राज़ का नहीं था…
वो आर्यव जैसा लग रहा था।
“नहीं…” अनाया के मुँह से निकला,
“ये… असंभव है।”
शीशे पर वही आवाज़ गूंजी —
> “असंभव वही होता है, जो प्रेम से डर जाए…”
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🌑 रुमानियत की छाया
अगली सुबह जब अनाया उठी, आर्यव हवेली के आँगन में कैमरा लेकर खड़ा था।
वो मुस्कुरा रहा था, लेकिन उसकी परछाईं ज़मीन पर दो हिस्सों में बँटी थी —
एक सुनहरी, दूसरी काली।
“रात कैसी थी?” उसने पूछा।
अनाया ने उसकी ओर देखा,
“तुम्हें याद है तुमने कल मुझसे क्या कहा था?”
आर्यव ने भौंहें सिकोड़कर कहा,
“मैंने कुछ कहा था?”
अनाया ने कुछ नहीं कहा, बस धीमे से फुसफुसाई —
“राज़… क्या ये तुम हो?”
आर्यव ने सिर झुका लिया।
“कभी-कभी आत्माएँ अपने वादे निभाने के लिए किसी और का रूप ले लेती हैं।”
अनाया ने साँस रोकी।
“मतलब… तुम—?”
आर्यव ने मुस्कुराकर कहा,
“शायद मैं वही हूँ, या शायद सिर्फ़ तुम्हारे प्रेम का प्रतिबिंब।
पर अनाया, कहानी अभी पूरी नहीं हुई है।
इस हवेली का एक और द्वार है — जो अब तक नहीं खुला।”
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🕯️ अधूरी लौ
हवेली के पीछे का हिस्सा अब तक हमेशा बंद रहा था।
राज़ ने कभी उसे छुआ भी नहीं था।
आर्यव — या शायद राज़ — अब उस दिशा में बढ़ रहा था।
अनाया ने उसके साथ कदम बढ़ाया।
जैसे ही दोनों ने दरवाज़े को छुआ, काले धुएँ की लहर उठी।
दीवार पर एक पंक्ति उभरी —
> “जो प्रेम को सच्चा मान ले,
वो मृत्यु को भी झुका सकता है।”
दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला —
अंदर एक काँच का छोटा-सा कमरा था,
जहाँ बीच में एक दीपक जल रहा था — आधी सुनहरी, आधी काली लौ।
अनाया ने विस्मय से कहा,
“ये वही लौ है… जो मिराया के श्राप से पैदा हुई थी।”
आर्यव ने धीरे से कहा,
“और अब यही लौ तुम्हारा भविष्य तय करेगी।”
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💫 अंतिम दृश्य
हवेली के अंदर वो लौ अनाया की हथेली में झिलमिलाई।
उसके चेहरे पर आधी रौशनी, आधा साया था।
वो मुस्कुराई —
“अगर रौशनी और अंधेरा दोनों मेरे इश्क़ का हिस्सा हैं,
तो मैं दोनों को अपनाऊँगी।”
आर्यव ने कहा,
“फिर तैयार हो जाओ — क्योंकि प्रेम अब नया रूप लेने वाला है।”
अनाया ने कहा,
“चाहे वो रूप मौत का क्यों न हो…”
और उसी पल हवेली की छत से एक सुनहरी-काली आभा उठी —
धीरे-धीरे दोनों के चारों ओर घूमने लगी।
राज़ की आवाज़ फिर गूंजी —
> “रुमानियत कभी खत्म नहीं होती, अनाया… वो बस अपने अगले रूप की तलाश में रहती है।”
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🌙 हुक लाइन (Episode Ending)
रात ढलते-ढलते हवेली के बाहर वही प्रतीक फिर जल उठा —
लेकिन इस बार उसमें एक नया रंग था — लाल।
और दीवार पर हवा के झोंके से लिखा गया —
> “अगली बार, प्रेम सिर्फ़ रूह का नहीं… शरीर का भी इम्तिहान लेगा।”