Mere Ishq me Shamil Ruhaniyat he - 26 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 26

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मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 26

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💖 मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है
 
✨ एपिसोड 26 : “परछाई का पुनर्जन्म”
 
 
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🌘 1. हवेली में नई सांस
 
सुबह की धूप दरभंगा की हवेली के टूटे झरोखों से अंदर आ रही थी।
पर आज की धूप कुछ अलग थी — उसमें लालिमा कम, पर सुनहरापन ज़्यादा था।
जैसे किसी ने रात भर हवेली की आत्मा को शांति दी हो।
 
अनाया अब भी वही दीपक थामे बैठी थी।
उसकी आँखें थकी थीं, मगर उनमें एक सुकून था — जैसे किसी अंत ने उसे नई शुरुआत दी हो।
 
अचानक हवेली के अंदर हवा का एक झोंका आया।
दीपक की लौ हिलने लगी, पर बुझी नहीं।
फिर वही आवाज़ हवा में गूंजी —
 
> “अनाया… क्या तुम अगला रूप देखने के लिए तैयार हो?”
 
 
 
अनाया ने धीरे से सिर उठाया।
कमरे के कोने में धुंध जमा होने लगी थी।
वो धुंध धीरे-धीरे एक आकार लेने लगी — एक चेहरा, जो मुस्कुरा रहा था।
वो ना राज़ था, ना आर्यव… पर अजीब तरह से दोनों का प्रतिबिंब लगता था।
 
 
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🌫️ 2. अनोखा चेहरा
 
“तुम कौन हो?” अनाया की आवाज़ काँपी।
धुंध ने मुस्कुराकर जवाब दिया,
“मैं वही हूँ जो प्रेम की राख से जन्म लेता है…
जिसे नाम नहीं दिया जा सकता — क्योंकि मैं हर प्रेम का अगला जन्म हूँ।”
 
अनाया पीछे हटी, लेकिन उसकी नज़रें उस आत्मा से हटी नहीं।
“तुम राज़ हो? या आर्यव?” उसने पूछा।
 
आवाज़ आई,
“मैं वो नहीं, जो तुमने खोया।
मैं वो हूँ, जो तुम्हारे भीतर बचा है।”
 
अनाया की सांस रुक गई।
“मतलब… मैं ही अब प्रेम का अगला रूप हूँ?”
 
आत्मा ने कहा,
“नहीं अनाया… तुम ‘रूप’ नहीं, ‘माध्यम’ हो।
अब प्रेम तुम्हारे ज़रिए दुनिया को दिखाएगा — कि रूह भी इंसान बन सकती है।”
 
 
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🔥 3. हवेली की दीवारें बोल उठीं
 
उसी पल दीवारों पर फिर से सुनहरे अक्षर उभरने लगे।
हर शब्द चमक रहा था — “इश्क़”, “रूह”, “रौशनी”, “प्रतिज्ञा”।
 
और फिर एक नई पंक्ति उभरी —
 
> “हर प्रेम का अगला जन्म उसी दिल में होता है, जो जलने से नहीं डरता।”
 
 
 
अनाया ने हाथ बढ़ाया और दीवार को छुआ।
दीवार गर्म थी, जैसे किसी ने उसके भीतर आग जलाई हो।
फिर दीवार से एक हल्की रोशनी निकली, और कमरे के बीच एक दर्पण उभरा।
 
उस दर्पण में अनाया ने खुद को देखा —
पर यह उसका चेहरा नहीं था।
उसमें मिराया की आँखें थीं, राज़ की मुस्कान, और आर्यव का सुकून।
 
वो दर्पण जैसे कह रहा था —
 
> “अब तुम सबका संगम हो।”
 
 
 
 
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🌹 4. अनाया का निर्णय
 
उसने गहरी सांस ली।
“अगर मैं ही संगम हूँ, तो मुझे क्या करना होगा?”
 
हवा में फिर वो आवाज़ गूंजी —
“प्रेम को बाँटना, लेकिन खुद को खोए बिना।
हर आत्मा को उसका प्रतिबिंब दिखाना।”
 
अनाया की आँखों में चमक आ गई।
“मतलब, अब मुझे हवेली छोड़नी होगी…”
 
धुंध मुस्कुराई,
“हाँ। क्योंकि प्रेम जब अमर हो जाए, तो उसे सीमाओं में नहीं रखा जा सकता।”
 
अनाया ने दीपक उठाया।
लौ अब पूरी सुनहरी थी — बिल्कुल वैसी जैसी उसने कभी राज़ के साथ जलाई थी।
 
 
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🌾 5. दरभंगा की नई सुबह
 
गाँव के लोग हवेली के बाहर इकट्ठा थे।
अब हवेली डर नहीं, दुआओं का प्रतीक बन गई थी।
 
पंडित जी ने कहा,
“बिटिया अनाया, अब ये हवेली तुम्हारी वजह से पवित्र हो गई है।
यहाँ जो दीपक जलता है, वो लोगों के दिलों में भी रौशनी फैलाता है।”
 
अनाया मुस्कुरा दी।
“नहीं बाबा, वो दीपक मेरा नहीं… प्रेम का है।
और जब तक लोग प्रेम में यकीन रखेंगे, वो लौ जलती रहेगी।”
 
गाँव की औरतों ने उसके पैरों को छुआ।
किसी ने कहा —
“ये तो अब देवी बन गई है।”
अनाया ने तुरंत रोक दिया,
“नहीं… मैं सिर्फ़ एक इश्क़ की रूह हूँ — जिसे जीना आता है, पूजना नहीं।”
 
 
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💞 6. रुमानियत की विरासत
 
रात को अनाया हवेली की छत पर आई।
वो हवा में कुछ लिख रही थी — उँगलियों से, बिना काग़ज़ के।
 
हर अक्षर हवा में सुनहरी बनकर चमकने लगा।
वो लिख रही थी —
 
> “रुमानियत वो नहीं जो दो दिलों के बीच हो,
रुमानियत वो है जो वक़्त को भी ठहरा दे।”
 
 
 
तभी पीछे से वही हल्की आवाज़ आई —
“और जब रुमानियत खुद चलना सीख जाए…?”
 
अनाया ने बिना मुड़े कहा,
“तब वो अगला जन्म बन जाती है।”
 
पीछे मुड़ी — और देखा, वहाँ कोई नहीं था।
सिर्फ़ हवा में एक प्रतीक तैर रहा था —
काला, सुनहरा और लाल।
 
 
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🌙 7. अंत या शुरुआत
 
अगली सुबह अनाया ने दरभंगा की सीमा पार की।
पीछे मुड़कर देखा —
हवेली अब पहले जैसी नहीं रही।
वो सुनहरे फूलों से ढँकी थी, और हर खिड़की से रौशनी निकल रही थी।
 
वो धीमे से बोली,
“अब मेरी कहानी यहाँ खत्म नहीं होती…
अब मैं हर उस आत्मा में रहूँगी जो इश्क़ में डूबने से नहीं डरती।”
 
उसने दीपक को नदी में प्रवाहित किया।
लौ अब भी जल रही थी — लहरों के साथ तैरती, आसमान में मिलती हुई।
 
और तभी आसमान में वही आवाज़ गूंजी —
 
> “अनाया… अब तू रुमानियत नहीं, उसकी विरासत है।”
 
 
 
वो मुस्कुराई।
उसके चेहरे पर लाल-सुनहरी आभा चमक रही थी।
जैसे किसी प्रेम कथा ने अब खुद को अमर कर लिया हो।
 
 
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💫 8. समाप्ति दृश्य
 
रात फिर उतरी।
दरभंगा के गाँव में हवेली के ऊपर तारे वैसे ही टिमटिमा रहे थे।
पर एक तारा बाकी सबसे बड़ा और चमकीला था।
 
लोग कहते हैं —
वो तारा “अनाया” का है।
कहा जाता है कि जो भी सच्चे दिल से प्रेम करे,
वो तारा उसके लिए एक पल के लिए झिलमिला उठता है।
 
और उसी पल, हवेली की दीवारों पर फिर वही पंक्ति उभरती है —
 
> “हर रूह को उसका प्रतिबिंब ज़रूर मिलता है —
बस उसे देखने की हिम्मत चाहिए।”
 
 
 
 
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🌹 एपिसोड 25 – हुक लाइन:
रात की आख़िरी घड़ी में हवेली की छत पर एक नई छाया उभरी —
एक लड़की, जिसकी आँखें सुनहरी थीं…
और उसके होंठों पर वही नाम था —
 
> “राज़