🌕 1. अजनबी की मुस्कान
सुबह की हल्की धूप दरभंगा की हवेली पर पड़ी थी।
पंछियों की चहचहाहट हवा में गूंज रही थी, मगर हवेली के दरवाज़े पर जो खड़ी थी —
वो किसी और ही दुनिया से आई लग रही थी।
सुनहरी आँखें, बालों में गुलाब की हल्की खुशबू,
और गर्दन में वही ताबीज़ — जो कभी राज़ मल्होत्रा ने रूहनिशा को पहनाया था।
गाँव के लोग दूर-दूर से देखने आए।
कोई बोला — “अरे, ई त रूहिया लागऽता!”
तो कोई फुसफुसाया — “नै, ई त नया जनम होला...”
वो लड़की मुस्कुराई, और धीमे स्वर में बोली —
> “मेरा नाम रुमी है… शायद ये हवेली मुझे पहचानती है।”
उसकी आवाज़ में एक अजीब शांति थी,
जैसे हर शब्द के पीछे कोई अधूरी कहानी छुपी हो।
रमाकांत पंडित वहाँ पहुँचे। उन्होंने ताबीज़ देखा,
उनकी आँखें फैल गईं —
> “ये तो वही ताबीज़ है… जो तीन जन्मों से किसी की रूह ढूँढ रही थी।”
रुमी ने सिर झुकाया —
“शायद अब उस रूह को सुकून मिलेगा, पंडित जी।”
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🌘 2. हवेली का स्वागत
रुमी ने कदम हवेली के भीतर रखे —
और उसी पल हवेली की दीवारें हल्के नीले रंग में चमक उठीं।
जैसे हवेली ने अपने खोए हिस्से को पहचान लिया हो।
धूल जमीं पेंटिंग्स झिलमिलाने लगीं।
हर फ्रेम में राज़ और रूहनिशा के चेहरे उभरने लगे।
रुमी उन तस्वीरों के सामने खड़ी हो गई,
आँखों में नमी थी —
> “कितनी बार लौटे हो तुम, और कितनी बार मैं…”
वो बोली, तो हवेली की छत से एक पंखुड़ी नीचे गिरी।
गुलाब की वो पंखुड़ी उसकी हथेली पर टिक गई —
और उसी पल ताबीज़ चमक उठा।
ताबीज़ के भीतर एक हल्की धुन बजने लगी —
वो वही धुन थी जो राज़ हर रात रूहनिशा के लिए बंसी पर बजाया करता था।
रुमी की आँखें नम हो गईं।
“तो तुम अब भी साथ हो…”
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🌙 3. अतीत की परछाइयाँ
रात ढलने लगी थी।
हवेली के कमरे में रुमी अकेली बैठी थी।
दीवार पर लगी पुरानी घड़ी बारह बजा चुकी थी —
और उसी के साथ, कमरा नीली रौशनी से भर गया।
आईने में राज़ और रूहनिशा के साये उभर आए।
राज़ ने कहा —
> “हमारा वादा पूरा हुआ था… पर मोहब्बत अधूरी रही।”
रूहनिशा ने रुमी की ओर देखा —
> “तुम वही रुमानियत हो, जो हमारे इश्क़ का अंश लेकर जन्मी।
अब तुम्हारा मक़सद है — किसी और के दिल को उस इश्क़ से छूना,
जो कभी मिटा नहीं।”
रुमी बोली —
“पर किसके लिए?”
राज़ मुस्कुराया —
> “जिसे तेरा दिल पहचान लेगा… वही इस रुमानियत का हक़दार होगा।”
और वो दोनों परछाइयाँ हवा में घुल गईं।
रुमी की आँखों में आँसू थे, मगर होंठों पर मुस्कान —
> “तो अब मेरा इम्तिहान शुरू हुआ…”
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🔥 4. शहर से आया अजनबी
अगले ही दिन, हवेली के बाहर एक काली गाड़ी रुकी।
दरवाज़े से उतरा — अर्जुन राठौर।
दिल्ली का मशहूर रिस्टोरेशन आर्टिस्ट,
जो पुरानी हवेलियों को पुनर्जीवित करने का काम करता था।
उसकी आँखों में एक रहस्य था,
और चाल में वही अकड़ जो किसी ऐसे इंसान की होती है
जो अपनी ज़िन्दगी में बहुत कुछ खो चुका हो।
रमाकांत ने उसका स्वागत किया —
> “बाबूजी, ई हवेली तो अब फिर से जागी है।
अब आप आईं हैं, तो शायद कुछ नया हो।”
अर्जुन मुस्कुराया, मगर उसकी नज़र हवेली पर नहीं —
रुमी पर ठहर गई।
रुमी उस वक्त आँगन में खड़ी थी, गुलाब के पौधों को पानी दे रही थी।
धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी, और उसके बाल हवा में लहरा रहे थे।
अर्जुन ने अनजाने में ही फुसफुसाया —
> “कहीं देखा है तुम्हें…”
रुमी ने पलटकर देखा —
“शायद किसी और जन्म में…”
उनके बीच कुछ पल की चुप्पी रही,
फिर हवेली की दीवार से नीली रौशनी झिलमिला उठी।
दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा —
और उस पल जैसे वक़्त रुक गया।
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🌕 5. ताबीज़ का असर
रात को अर्जुन हवेली के पुराने स्टडी रूम में गया।
वहाँ किताबें बिखरी थीं, और दीवार पर वही दर्पण टंगा था
जिसने कभी रूह-ए-रुमानियत की परीक्षा ली थी।
जब अर्जुन उस दर्पण के सामने पहुँचा —
दर्पण की सतह हल्की-सी चमकने लगी।
उसके कंधे पर हाथ पड़ा।
पीछे रुमी थी।
> “इस दर्पण में वो सब है जो तुम्हारे दिल ने कभी चाहा था।”
अर्जुन बोला —
“और अगर मेरा दिल किसी गुनाह से भरा हो?”
रुमी मुस्कुराई —
> “तो शायद वो गुनाह ही तुम्हें मोहब्बत के करीब ले आए।”
दोनों कुछ देर खामोश रहे।
फिर अचानक, हवेली के भीतर हवा का तेज़ झोंका आया —
और ताबीज़ रुमी के गले से फिसलकर अर्जुन की हथेली में जा गिरा।
दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
ताबीज़ अब दो हिस्सों में बँट चुका था —
एक हिस्सा रुमी के पास, और दूसरा अर्जुन के पास।
रुमी बोली —
> “तो यही रिश्ता है हमारा — अधूरा, मगर रूहों से जुड़ा।”
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🌘 6. अगली रात का रहस्य
उस रात अर्जुन को सपना आया —
वो खुद राज़ बन चुका था, और उसके सामने रूहनिशा खड़ी थी।
वो रो रही थी, कह रही थी —
> “वादा निभाना अर्जुन… वरना मोहब्बत फिर अधूरी रह जाएगी।”
वो घबराकर उठा।
उसकी हथेली में ताबीज़ का निशान जल रहा था।
सुबह होते ही वो रुमी के पास पहुँचा।
“तुम कौन हो सच में?”
रुमी ने उसकी ओर देखा,
आँखों में वही पुरानी शांति थी —
> “मैं वही हूँ, जो हर जन्म में किसी इश्क़ को मुकम्मल करने आती है…
शायद इस बार तुम्हारे लिए।”
अर्जुन की आँखें काँप उठीं।
“तो क्या मैं राज़ हूँ?”
रुमी मुस्कुराई —
> “अगर तुम राज़ नहीं भी हो, तो तुम्हारे दिल में उसकी रूह ज़रूर बसती है।”
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🌙 7. अधूरी मोहब्बत का नया जन्म
साँझ की बेला थी।
हवेली की छत पर रुमी और अर्जुन खड़े थे।
आसमान में वही गुलाबी रोशनी फैली,
और ताबीज़ के दोनों हिस्से हवा में मिलकर फिर से जुड़ गए।
अर्जुन ने धीरे से कहा —
> “तो ये हमारी शुरुआत है?”
रुमी ने मुस्कुराकर जवाब दिया —
> “नहीं… ये हमारी पुरानी मोहब्बत का नया जन्म है।”
हवेली की दीवारों से वही गीत सुनाई देने लगा —
“रुमानियत ज़िंदा है…”
और हवाओं में फिर वही गुलाब की महक फैल गई।
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💫 एपिसोड 29 — हुक लाइन :
अगली सुबह हवेली के सामने किसी ने खून से लिखा एक वाक्य देखा —
> “रुमानियत को जो छूएगा, वो खुद रूह बन जाएगा…”
और हवेली की दहलीज़ पर अर्जुन की हथेली से ख़ून टपक रहा था। ❤️🔥