बेदर्द पिया
लेखक: विजय शर्मा एरी
(यह एक काल्पनिक कहानी है, जो प्रेम, विश्वासघात और मानवीय कमजोरियों पर आधारित है। शब्द संख्या लगभग १५००।)
अध्याय १: मिलन की शाम
गंगा के तट पर बसे उस छोटे से कस्बे में, जहाँ हवा में हमेशा मिट्टी और फूलों की सुगंध घुली रहती थी, राधा का जन्म हुआ था। वह एक साधारण ब्राह्मण परिवार की बेटी थी, जिसकी आँखें काली घटाओं सी गहरी और चेहरा चाँदनी रात जैसा निष्कलंक। राधा को बचपन से ही कहानियाँ सुनने का शौक था—वे पुरानी कथाएँ, जहाँ प्रेमी पिया अपनी प्रिया के लिए जान दे देते थे। लेकिन राधा को क्या पता था कि उसकी अपनी कहानी इतनी कड़वी होगी।
एक शाम, जब सूरज गंगा में डूब रहा था, राधा मंदिर के पास बैठी भजन गा रही थी। तभी एक युवक आया। उसका नाम था विक्रम—एक धनी सेठ का बेटा, जो शहर से लौटा था। विक्रम की आँखें राधा पर ठहर गईं। वह लंबा, गोरा और आकर्षक था, लेकिन उसके चेहरे पर एक छाया हमेशा मंडराती रहती। "तुम्हारा गाना तो स्वर्ग की सीधी उतर आया लगता है," उसने मुस्कुराते हुए कहा। राधा शरमा गई, लेकिन उसकी मुस्कान ने विक्रम को बाँध लिया।
दिन बीतते गए। विक्रम रोज आता। कभी फूल लाता, कभी मीठे। राधा के पिता पंडित हरिशंकर को विक्रम पसंद आया। "बेटी, यह लड़का धर्मभीरु है, व्यापार में कुशल। हमारा घर संवर जाएगा," उन्होंने कहा। राधा का दिल कहता था—यह मेरा पिया है। वह बेदर्द नहीं, बल्कि सबसे दयालु होगा। शादी की बात पक्की हो गई। बारात आई, मंगल गीत गूँजे, और राधा विदा हो गई।
अध्याय २: सुख के पल
विक्रम का घर शहर के बीचों-बीच था—ऊँची दीवारें, संगमरमर के फर्श, और चारों तरफ नौकर। राधा को लगा, जैसे स्वर्ग मिल गया। विक्रम उसे रातें भर कहानियाँ सुनाता। "तुम मेरी जान हो, राधा। मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूँ," वह कहता। राधा की आँखों में चमक आ जाती। वह उसके लिए व्यंजन बनाती, उसके कपड़े सिलती। लेकिन धीरे-धीरे चीजें बदलने लगीं।
विक्रम का व्यापार बढ़ रहा था। वह देर रात लौटता। कभी-कभी शराब की महक आती। राधा चुप रहती। "पिया जी, आप थक जाते हैं। आराम कीजिए," वह कहती। विक्रम हँसता, "यह सब तुम्हारे लिए ही तो कर रहा हूँ।" लेकिन एक रात, जब विक्रम सो रहा था, राधा ने उसके कमरे में एक चिट्ठी देखी। वह किसी 'कांता' के नाम थी। राधा का दिल बैठ गया। कांता कौन? विक्रम की पुरानी सहेली? या कुछ और?
सुबह राधा ने पूछा। विक्रम गुस्सा हो गया। "ये क्या बकवास है? तुम्हें जलन होती है तो करो, लेकिन मेरी जिंदगी में दखल मत दो!" राधा रो पड़ी। वह सोचती, शायद गलतफहमी हो। लेकिन चिट्ठियाँ आती रहीं। विक्रम अब रातें घर पर कम बिताता। राधा अकेली रह जाती। गंगा किनारे जाकर वह रोती। "भगवान, मेरा पिया बेदर्द न हो जाए।"
अध्याय ३: विश्वासघात का साया
महीनों बीत गए। राधा गर्भवती हो गई। खुशखबरी सुनाकर विक्रम को गले लगाया। विक्रम ने मुस्कुराकर कहा, "हमारा बेटा होगा, राजकुमार।" लेकिन खुशी ज्यादा दिन न टिकी। एक दिन राधा बाजार गई तो देखा—विक्रम कांता के साथ हँस रहा था। कांता एक विधवा थी, जो शहर में नाच-गाने का धंधा करती। राधा का दिल टूट गया। घर लौटकर उसने विक्रम से सवाल किया।
"कौन है वह औरत? क्यों धोखा दे रहे हो?" राधा की आवाज काँप रही थी। विक्रम का चेहरा लाल हो गया। "तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम्हारा गुलाम हूँ? शादी तो मजबूरी में हुई थी। मेरे पिता ने कहा था, वरना व्यापार डूब जाएगा। कांता मेरी जिंदगी है, तुम सिर्फ नाम की बीवी!" उसके शब्द राधा के सीने में तीर की तरह चुभ गए।
राधा बेहोश हो गई। जब होश आया, विक्रम चला गया था। नौकरों ने बताया, "साहब कांता के पास हैं।" राधा का गर्भ ठहर गया था, लेकिन अब वह बोझ लगने लगा। वह सोचती, "मैंने क्या पाप किया? मेरा पिया इतना बेदर्द कैसे हो गया?" पिता को खबर दी तो वे आए। "बेटी, वापस चलो।" लेकिन राधा ने मना कर दिया। "मैं लौटूँगी तो क्या कहेंगी दुनिया? पिया को सुधारूँगी।"
अध्याय ४: संघर्ष की आग
राधा ने फैसला किया—वह लड़ेगी। उसने घर संभाला। विक्रम जब लौटता, खाना बनाती, लेकिन बात न करती। विक्रम को चुभता। "तुम्हारी चुप्पी मुझे मार रही है।" राधा कहती, "बेदर्द पिया, अगर प्रेम है तो क्यों दर्द देते हो?" विक्रम हँसता, लेकिन अंदर जलता। कांता ने कहा, "उसे छोड़ दो।" लेकिन विक्रम को राधा की याद सताने लगी।
एक रात तूफान आया। विक्रम शराब पीकर लौटा। राधा ने दरवाजा खोला। "पिया जी, अंदर आइए।" विक्रम गिर पड़ा। राधा ने सेवा की। सुबह विक्रम ने कहा, "माफ कर दो। कांता सिर्फ दोस्त थी।" लेकिन झूठ था। राधा जानती थी। फिर भी चुप रही। बच्चा पैदा हुआ—एक बेटी। नाम रखा—सीता। विक्रम खुश हुआ, लेकिन कांता की छाया न गई।
राधा ने सीखा—व्यापार। विक्रम के दफ्तर में मदद करने लगी। धीरे-धीरे उसकी समझ बढ़ी। एक दिन विक्रम का बड़ा सौदा फँस गया। कर्ज चढ़ा। कांता भाग गई, पैसे लेकर। विक्रम टूट गया। "राधा, मैं बर्बाद हूँ।" राधा ने कहा, "नहीं पिया, हम साथ हैं।" उसने अपना गहना बेचा, सौदा बचाया। विक्रम रो पड़ा। "तुम्हारी दया के आगे मैं बेदर्द हूँ।"
अध्याय ५: मोहब्बत की जंग
विक्रम बदलने लगा। कांता की यादें मिट गईं। राधा के धैर्य ने उसे जीत लिया। लेकिन अतीत का दर्द न भूला। एक शाम गंगा किनारे, विक्रम ने कहा, "राधा, मैंने तुम्हें दर्द दिया। क्यों?" राधा बोली, "प्रेम तो दर्द देता ही है, पिया। लेकिन बेदर्द बनना पाप है। मैंने तुम्हें माफ किया क्योंकि तुम मेरे हो।"
सीता बड़ी हो रही थी। राधा उसे कहानियाँ सुनाती—बेदर्द पिया की, जो प्रिया के प्रेम में लौट आया। विक्रम व्यापार में सफल हुआ। घर फिर खिल उठा। लेकिन राधा की आँखों में एक उदासी हमेशा रहती। वह जानती थी, प्रेम का मतलब विश्वास है, न कि बंधन।
एक दिन, जब सीता खेल रही थी, विक्रम ने राधा को गले लगाया। "तुम्हारे बिना मैं अधूरा था। धन्यवाद।" राधा मुस्कुराई। "बेदर्द न कहो खुद को, पिया। हम सब कमजोर हैं।"
अध्याय ६: अंतिम विदाई
समय बीता। विक्रम बूढ़ा हो गया। बीमारी ने घेर लिया। राधा ने सेवा की। अंतिम सांस में विक्रम ने कहा, "राधा, तुम्हारा प्रेम मुझे स्वर्ग देगा।" राधा रोई, लेकिन मजबूत रही। विक्रम चला गया। कस्बे में शोक की लहर दौड़ी। राधा अकेली हो गई, लेकिन सीता के साथ।
वह गंगा किनारे बैठी सोचती—मेरा पिया बेदर्द था, लेकिन प्रेम ने उसे दर्दी बना दिया। जीवन की कहानी यही है—दर्द से सीख, प्रेम से जीत। राधा की आँखें चमक उठीं। वह भजन गाने लगी, जैसे वह पहली शाम।
(शब्द संख्या: १४८७। यह कहानी प्रेम की जटिलताओं को दर्शाती है, जहाँ बेदर्दी अक्सर कमजोरी का मुखौटा होती है। विजय शर्मा एरी की कल्पना से रची गई।)