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शीर्षक: “तोते की गवाही”
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी
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भाग 1 – हवेली का सन्नाटा
शाम के छह बज रहे थे। शहर से दूर, घने जंगल के बीच स्थित पुरानी “मेहर चंद हवेली” में सन्नाटा पसरा हुआ था।
हवेली के बाहर एक बूढ़ा चौकीदार, रामलाल, लालटेन थामे पहरा दे रहा था। अंदर से अजीब आवाजें आती थीं — कभी झूमर हिलने की, कभी किसी के फुसफुसाने की।
रामलाल ने तम्बाकू मुँह में डाली ही थी कि भीतर से किसी औरत की चीख सुनाई दी —
“बचाओ... कोई है वहाँ... बचाओ!”
वो भागकर अंदर गया। कमरे में सब कुछ बिखरा पड़ा था — फर्श पर टूटा हुआ फूलदान, खुली खिड़की, और मेज पर एक सुनहरा पिंजरा जिसमें एक बोलने वाला तोता बैठा था।
तोता कांप रहा था और बार-बार वही शब्द दोहरा रहा था —
> “मत मारो... मत मारो... रक्त! रक्त!”
रामलाल के होश उड़ गए। उसने देखा, पास ही फर्श पर किसी औरत की लाश पड़ी थी — रानी मेहर, हवेली की मालकिन।
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भाग 2 – इंस्पेक्टर अजय की एंट्री
अगले दिन सुबह शहर से इंस्पेक्टर अजय राठौड़ केस संभालने पहुँचे।
चारों ओर मीडिया वालों की भीड़ थी। रिपोर्टर सवालों की बौछार कर रहे थे —
“क्या ये आत्महत्या है?”
“क्या किसी चोर ने हत्या की?”
अजय बस इतना बोले —
“सच बोलने के लिए किसी इंसान की जरूरत नहीं... कभी-कभी पक्षी भी गवाही देते हैं।”
उन्होंने पिंजरे की ओर देखा — वही तोता, जिसकी आंखों में डर और रहस्य दोनों थे।
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भाग 3 – तोते की अजीब बातें
अजय ने तोते का नाम जाना — “मोती”।
वो रानी मेहर के साथ पिछले दस साल से था और दर्जनों शब्द बोल सकता था।
जब अजय ने उसके पास जाकर धीरे से कहा,
“मोती, क्या हुआ उस रात?”
तोते ने पंख फड़फड़ाए और बोला —
> “मत मारो... नीलू... नीलू... खून!”
अजय चौंक गए — “नीलू कौन है?”
हवेली के नौकरों से पूछताछ में पता चला कि “नीलू” रानी मेहर की भतीजी थी, जो तीन दिन पहले दिल्ली लौटी थी और घटना वाली रात हवेली में थी।
लेकिन अब वो गायब थी।
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भाग 4 – रहस्य गहराता है
अजय ने हवेली की तलाशी ली।
रानी के कमरे से एक टूटा हुआ कंगन मिला — जिसमें “N” अक्षर जड़ा था।
ड्रेसिंग टेबल पर खून के धब्बे और एक अधजला पत्र पड़ा था —
> “मुझे सब पता चल गया है... अब ये राज ज़िंदा नहीं रह सकता...”
अजय ने कागज़ जोड़ा — “राज” शब्द किसी व्यक्ति का नाम लग रहा था।
अब कहानी में तीन नाम थे — रानी मेहर (मृत), नीलू (गायब), और राज (संदेहास्पद)।
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भाग 5 – तोते की दूसरी गवाही
रात को जब सब शांत हो गया, अजय अकेले कमरे में बैठकर नोट्स लिख रहे थे कि अचानक मोती तोता फिर बोला —
> “राज आया... झगड़ा हुआ... खून... खून... खिड़की...”
अजय ने टॉर्च उठाई और खिड़की के पास गए।
वहाँ नीचे बगीचे में पैरों के निशान थे जो हवेली की पिछली दीवार की तरफ जाते थे।
उन्होंने तुरंत टीम को बुलाया।
निशान दीवार के पास जाकर खत्म हो रहे थे, लेकिन दीवार के उस पार एक टूटी जाली मिली — जैसे किसी ने भागने की कोशिश की हो।
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भाग 6 – नीलू की वापसी
अगले दिन सुबह अचानक हवेली में हलचल मच गई — नीलू लौट आई थी।
वो सफेद सलवार सूट में थी, चेहरा थका हुआ और आँखों में आँसू।
उसने अजय से कहा,
“मैं दिल्ली गई थी इंटरव्यू देने... जब लौटकर आई तो मौसी मर चुकी थीं। मैं डर गई और भाग गई।”
अजय ने ठंडे स्वर में पूछा —
“नीलू, क्या तुम ‘राज’ नाम के किसी व्यक्ति को जानती हो?”
नीलू का चेहरा एक पल को सख्त हुआ, फिर बोली —
“हाँ... वो मेरा मंगेतर था... लेकिन अब हमारे बीच सब खत्म हो चुका है।”
अजय ने तोते की ओर देखा, जिसने जैसे जवाब दिया हो —
> “झूठ... झूठ... राज आया... राज आया...”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
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भाग 7 – छिपा हुआ सीसीटीवी
अजय को तोते की बातों पर भरोसा होने लगा था। उन्होंने हवेली के हर कोने में तलाश जारी रखी।
स्टोर रूम में पुराना पंखा हटाते समय दीवार के पीछे से एक छिपा हुआ सीसीटीवी कैमरा मिला।
हवेली में कोई चोरी नहीं, बल्कि प्लानिंग चल रही थी।
रिकॉर्डिंग चलाई गई। स्क्रीन पर दिखा —
रात 10:30 बजे रानी मेहर किसी से बहस कर रही थीं।
वो आदमी था — राज।
वीडियो में राज चिल्ला रहा था —
> “अगर तुमने पैसे नहीं दिए तो मैं तुम्हारे सारे राज खोल दूँगा!”
रानी ने जवाब दिया —
> “तूने मेरी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद की है, राज!”
इसके बाद झगड़ा, धक्का, और फिर रानी का गिरना...
राज भागता हुआ खिड़की से निकल गया।
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भाग 8 – राज की तलाश
अजय ने तुरंत राज के मोबाइल लोकेशन ट्रेस करवाई।
वो पास के गाँव “बेलनपुर” में छिपा था।
पुलिस ने उसे घेर लिया, पर राज भागते-भागते एक खेत में गिर पड़ा।
उसके पास वही “N” वाला कंगन था — जो रानी के कमरे में टूटा मिला था।
अजय ने ठंडे स्वर में पूछा,
“तुमने रानी मेहर की हत्या क्यों की?”
राज काँपते हुए बोला —
“मैं उन्हें डराना चाहता था, मारना नहीं... वो गिर पड़ीं और मर गईं... मैं डर गया... मैंने नीलू को फोन किया कि सब खत्म हो गया है।”
अजय बोला — “तोते ने जो देखा, वही बोला।”
राज हँस पड़ा — “तोता? अब अपराधी जानवरों की गवाही से पकड़ोगे?”
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भाग 9 – न्यायालय में तोते की गवाही
मुकदमे का दिन आया।
अदालत खचाखच भरी थी। जज ने पूछा —
“इंस्पेक्टर अजय, आपके पास क्या सबूत है?”
अजय ने कहा —
“मेहर चंद हवेली के तोते की गवाही।”
पूरा कोर्ट हँसी में डूब गया।
अजय ने पिंजरा खोला।
तोता बोला —
> “राज आया... झगड़ा हुआ... खून... खिड़की...”
फिर उसने वही आवाज़ निकाली, जैसी रानी मेहर की थी —
> “बचाओ... मत मारो... राज...!”
जज स्तब्ध रह गए।
अजय ने सीसीटीवी फुटेज पेश की, डीएनए रिपोर्ट दिखाई — सब राज की ओर इशारा कर रहे थे।
राज ने सिर झुका लिया —
“हाँ, मैं ही था... मगर वो हादसा था...”
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भाग 10 – सच्चाई का मोड़
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।
अजय को कुछ अजीब लगा —
सीसीटीवी कैमरा जो मिला था, वो बहुत पुराना था... उस रात किसी ने जानबूझकर उसे एक्टिव किया था।
जांच में खुलासा हुआ —
नीलू ने खुद कैमरा चालू किया था, क्योंकि उसे शक था कि राज उसकी मौसी को नुकसान पहुँचाएगा।
पर उसने खुद भी वीडियो एडिट किया था ताकि अपनी मौसी की बातों को “राज के खिलाफ” दिखा सके।
असल में, रानी ने अपनी वसीयत में सारा पैसा “नीलू” को नहीं, एक चैरिटी ट्रस्ट को देने का फैसला किया था।
नीलू चाहती थी कि राज उस पर शक करे, रानी डर जाए, और वो दोनों हवेली की दौलत पा लें।
मगर हादसे ने सब पलट दिया।
अजय ने मुस्कराकर कहा —
“तोता तो गवाही दे गया, लेकिन इंसान झूठ में डूब गया।”
नीलू की आँखों से आँसू बह निकले।
> “हाँ इंस्पेक्टर साहब, मैंने ही राज को बुलाया था... मैंने सब बर्बाद कर दिया।”
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भाग 11 – अंत का संदेश
नीलू और राज दोनों को सजा हुई।
हवेली अब सरकारी देखरेख में थी, और मोती तोता पुलिस की कस्टडी में।
हर सुबह वो वही शब्द बोलता —
> “सच बोलो... वरना सन्नाटा बोल देगा...”
इंस्पेक्टर अजय उसे देखकर सोचते —
“कभी-कभी ईश्वर आवाज़ इंसानों को नहीं, परिंदों को दे देता है — ताकि सच मर न जाए।”
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अंत
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✨ थीम:
मानव लालच, सच्चाई और अपराध के बीच संघर्ष।
कहानी सिखाती है कि सच चाहे कितनी भी गहराई में दबा हो, किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाता है।
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