तुम्हारे बिना अब कुछ भी पूरा नहीं लगता
"मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि तुम्हारे बिना जीना इतना अधूरा लगेगा..."
"रुचि, ज़रा वो लाल डिब्बा देना, माँ की दवाई रखी है उसमें।"
मैंने आवाज़ दी, पर कोई जवाब नहीं आया।
अब आदत सी हो गई है उसे बुलाने की, जैसे वो अब भी यहीं हो — मेरे साथ, मेरे घर में, मेरी ज़िन्दगी में...
4 साल हो गए उसे गए हुए, लेकिन मन आज भी वहीं अटका है, जहां उसने मेरा हाथ छोड़कर किसी और का दामन थाम लिया था।
🕰️ सब कुछ शुरू हुआ था कॉलेज के उन बेफिक्र दिनों से...
हम एक ही क्लास में थे — रुचि, हमेशा चुपचाप बैठने वाली, किताबों में खोई हुई लड़की।
मैं, अमित, कॉलेज का थोड़ा बहुत नामी लड़का, जो कभी-कभी बिना वजह ही मुस्कुराता था — खासकर उसे देखकर।
एक दिन जब उसने पहली बार मुझसे "थैंक यू" कहा, मुझे लगा जैसे किसी ने मेरी सांसों को कोई नया मकसद दे दिया हो।
धीरे-धीरे हम दोस्त बने, फिर दोस्ती ने इश्क़ का रंग लिया।
वो मेरी दुनिया बन गई थी, और मुझे यकीन था कि मैं भी उसकी दुनिया का हिस्सा बन चुका हूँ।
🌼 लेकिन मोहब्बत सिर्फ इरादों से नहीं चलती...
कॉलेज खत्म हुआ, उसने MBA कर ली और मैं अपने पिता की दुकान में लग गया।
मैं बस इतना चाहता था कि हम जल्दी से शादी कर लें, लेकिन रुचि का सपना था कि वो खुद को पहले साबित करे।
हमारे बीच बातें कम होने लगीं, मुलाकातें खत्म होने लगीं।
फिर एक दिन उसने कहा —
"अमित, मुझे लगता है हमें थोड़ा वक़्त लेना चाहिए।"
वो 'थोड़ा वक़्त' आज तक खत्म नहीं हुआ।
📩 उसकी शादी का कार्ड आया... और मेरी दुनिया वहीं रुक गई।
मैं मुस्कुरा नहीं पाया, रो नहीं पाया, बस चुपचाप कार्ड को निहारता रहा।
उसने किसी बड़े बिज़नेसमैन से शादी कर ली।
मैंने ना तो सवाल किया, ना कोई जवाब मांगा।
शायद कुछ प्यार, बस अधूरे ही अच्छे लगते हैं।
📅 आज 4 साल बाद, जब मैं अपने कमरे में बैठा उसकी तस्वीर देख रहा हूँ,
तो एक मैसेज आया —
"अमित, क्या तुम मुझसे एक बार मिल सकते हो?" – रुचि
मैं हिल गया। 4 साल बाद?
☕ हम एक कैफ़े में मिले...
वो वैसी ही थी — थोड़ी और परिपक्व, थोड़ी और शांत।
"कैसे हो?" उसने पूछा।
"ठीक हूँ," मैंने कहा, और मुस्कुराने की कोशिश की।
फिर उसने अपनी शादी की सारी सच्चाई बताई —
"मैं खुश नहीं हूँ अमित, कभी थी ही नहीं।"
उसने कहा कि उसकी शादी बस एक समझौता थी, एक फैसला जो उसने अकेलेपन के डर से लिया।
"मैंने सोचा था शायद वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा... लेकिन तुम्हारी यादें वक्त से तेज़ निकलीं।"
💔 मैंने सिर्फ इतना कहा...
"रुचि, तुम्हें खोकर मैंने खुद को भी खो दिया... पर अब दोबारा कुछ पाना मेरे बस में नहीं।"
वो चुप हो गई।
हम दोनों जानते थे कि अब कुछ नहीं बदलेगा, लेकिन एक मुलाकात... अधूरे ख्वाबों की तसल्ली बन गई।
📌 आज भी जब शाम को मैं छत पर अकेले बैठता हूँ...
तो वो यादें मेरे पास आ जाती हैं,
वो हँसी, वो बातें, और वो सपना —
जो कभी था, पर पूरा नहीं हुआ।
❝ और अब भी, जब कोई पूछता है कि ‘क्या तुम्हें उससे अब भी प्यार है?’
तो मैं बस मुस्कुरा कर कहता हूँ —
‘तुम्हारे बिना अब कुछ भी पूरा नहीं लगता...’ ❞
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