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नागमणि – भाग 14 (अंतिम भाग)
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी, अजनाला अमृतसर
गुफा धीरे-धीरे काँप रही थी। चारों ओर अंधकार फैलता जा रहा था और केवल नागमणि की आभा ही उस अंधेरे को चीर रही थी। राघव, आर्या और भीम तीनों स्तब्ध खड़े थे। तभी आकाशवाणी-सी गूँज सुनाई दी –
“राघव! तूने स्वार्थ त्यागकर धरोहर स्वीकार की है। किंतु नागमणि का वास्तविक अधिकारी वही होगा जो अंतिम परीक्षा में अपने हृदय की सच्चाई सिद्ध करे।”
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अंतिम परीक्षा का प्रारंभ
गुफा की दीवारें खुलने लगीं और तीन रास्ते प्रकट हुए। प्रत्येक मार्ग अलग दिशा में जाता था। एक पर लिखा था – “त्याग”, दूसरे पर – “सत्य”, और तीसरे पर – “बलिदान”।
आवाज़ फिर गूँजी –
“तुम तीनों में से हर एक को एक-एक मार्ग चुनना होगा। जो परीक्षा पार करेगा, वही नागमणि का भाग्य लिखेगा।”
भीम ने दृढ़ स्वर में कहा –
“मैं बलिदान के मार्ग पर चलूँगा। क्योंकि मेरा जीवन सदा से साथियों के लिए समर्पित रहा है।”
आर्या बोली –
“मैं सत्य का मार्ग चुनूँगी। विद्या का अर्थ तभी है जब वह सत्य की सेवा में लगे।”
राघव ने गहरी साँस लेकर कहा –
“तो मैं त्याग के मार्ग पर चलूँगा। शायद यहीं मेरी नियति छिपी है।”
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भीम की परीक्षा – बलिदान
भीम जब अपने मार्ग पर बढ़ा तो उसे सामने एक अग्निकुंड दिखाई दिया। अग्नि में से आवाज़ आई –
“यदि तू बलिदान का मार्ग चुनता है तो अपने प्राण इस अग्नि में अर्पित कर दे।”
भीम हिचका नहीं। उसने आँखें बंद कीं और अग्निकुंड की ओर बढ़ने लगा। तभी उसके मन में उसकी माँ का चेहरा तैर गया। उसके भाई-बहन, गाँव के लोग – सब याद आने लगे। भीम के आँसू निकल पड़े।
उसने जोर से कहा –
“हे देवता! यदि मेरे प्राण ही बलिदान हैं तो इन्हें स्वीकार करो, परंतु मेरे गाँववालों को कभी दुःख न देना।”
जैसे ही वह अग्नि में कूदने को हुआ, अग्नि शांत हो गई और एक दिव्य पुष्प उसके हाथों में आ गया।
आवाज़ गूँजी –
“तेरा साहस ही तेरा बलिदान है। तू उत्तीर्ण हुआ।”
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आर्या की परीक्षा – सत्य
आर्या के मार्ग में एक दर्पण खड़ा था। उस दर्पण में उसका प्रतिबिंब नहीं, बल्कि झूठे दृश्य दिखाई देने लगे –
वह खुद को एक महारानी के रूप में देख रही थी, जिसके चरणों में प्रजा झुकी हुई है। सोने-चाँदी के आभूषण उस पर सजे हुए थे।
आवाज़ आई –
“यदि तू इस दृश्य को सत्य मान ले, तो यह तेरा जीवन होगा। राज, वैभव और अमरता तुझे मिलेंगे।”
आर्या ने आँखें बंद कीं। उसका हृदय काँपा, किंतु उसने दृढ़ स्वर में कहा –
“यह सब माया है। मेरा सत्य विद्या, सेवा और धर्म में है। मैं इस झूठ को स्वीकार नहीं करती।”
दर्पण टूट गया और उसके हाथ में एक ज्योतिर्मयी शंख प्रकट हुआ।
आवाज़ गूँजी –
“तेरा सत्य तुझे पावन बना गया। तू उत्तीर्ण हुई।”
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राघव की परीक्षा – त्याग
राघव जैसे ही अपने मार्ग पर बढ़ा, उसे सामने वही दृश्य दिखाई दिया जिसकी उसे सबसे अधिक चाह थी – उसके गुरु जीवित खड़े थे और कह रहे थे –
“राघव! नागमणि मुझे दे दो। मैं तुझे अमरत्व दूँगा और सारा संसार तेरे चरणों में होगा।”
राघव की आँखों में आँसू भर आए। उसने मन ही मन कहा –
“हे गुरुदेव! आपकी इच्छा मेरे लिए सर्वोच्च है।”
वह आगे बढ़कर नागमणि सौंपने ही वाला था कि उसके भीतर एक आवाज़ गूँजी –
“यह परीक्षा है, राघव। सच्चा त्याग यह नहीं कि तू अपनी बुद्धि खोकर भटक जाए, बल्कि यह है कि तू अपने हृदय की दुर्बलता पर विजय पाए।”
राघव काँप उठा। उसने अपने हाथ पीछे खींच लिए और कहा –
“गुरुदेव, यदि यह छलावा है तो मैं इसे स्वीकार नहीं करता। नागमणि किसी के स्वार्थ की नहीं, संपूर्ण सृष्टि की धरोहर है। मैं इसे त्याग देता हूँ।”
तभी सामने का दृश्य मिट गया और राघव के हाथ में दिव्य त्रिशूल प्रकट हुआ।
आवाज़ गूँजी –
“तेरा त्याग तुझे पूर्ण बना गया। तू उत्तीर्ण हुआ।”
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नागमणि का अंतिम रहस्य
तीनों मार्ग फिर से एक हो गए। भीम, आर्या और राघव एक स्थान पर पहुँचे। वहाँ नागमणि आसमान में तैर रही थी।
आवाज़ अब मधुर हो गई –
“तुम तीनों ने अपनी-अपनी परीक्षाएँ पार की हैं। नागमणि अब शुद्ध है और इसका रहस्य यह है कि यह किसी एक का अधिकार नहीं। यह उन सबका है जो सत्य, त्याग और बलिदान का मार्ग चुनते हैं।”
नागमणि तीन टुकड़ों में विभाजित हो गई। प्रत्येक टुकड़ा अपने आप में उतना ही शक्तिशाली था। एक भीम के हाथों में, दूसरा आर्या के हाथों में और तीसरा राघव के हाथों में आ गिरा।
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नागलोक का आशीर्वाद
तभी वही काला नाग प्रकट हुआ जो गुफा के द्वार पर पहरा दे रहा था। उसकी आँखों में अब क्रोध नहीं, करुणा थी।
वह बोला –
“तुमने सिद्ध कर दिया कि मानव भी लोभ से ऊपर उठ सकता है। नागवंश की ओर से मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ।”
वह धीरे-धीरे लुप्त हो गया और गुफा का द्वार खुल गया।
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वापसी और विरासत
तीनों साथी गाँव लौटे। लोगों ने उनका स्वागत किया। राघव ने अपना नागमणि का टुकड़ा मंदिर में स्थापित कर दिया ताकि उसका प्रकाश सभी को मिले। आर्या ने अपना टुकड़ा विद्या और शिक्षा की सेवा में लगा दिया। भीम ने अपने टुकड़े को गाँव की सुरक्षा और भलाई में उपयोग किया।
लोगों ने कहा –
“नागमणि अब केवल एक रत्न नहीं, बल्कि हमारी आत्मा का दीपक है।”
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अंत – अमरता का संदेश
रात के आकाश में तारे झिलमिला रहे थे। राघव ने आसमान की ओर देखकर कहा –
“गुरुदेव, मैंने आपकी आज्ञा पूरी की। नागमणि अब सुरक्षित है। लेकिन मैंने समझ लिया कि सच्चा अमरत्व किसी रत्न में नहीं, बल्कि त्याग, सत्य और बलिदान में है।”
उसकी आँखों में संतोष था। आर्या और भीम उसके साथ खड़े थे। तीनों जानते थे कि उनकी यह यात्रा आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनेगी।
गुफा की गहराइयों से अब भी हल्की-सी आभा उठती थी, मानो नागमणि का प्रकाश पूरे संसार को यह संदेश दे रहा हो –
“धन-बल से नहीं, बल्कि सत्य और त्याग से ही मनुष्य अमर होता है।”
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✨ इस प्रकार नागमणि कथा (भाग 1 से 14) पूर्ण होती है।
आपके साथ इस महागाथा को लिखना मेरे लिए भी अद्भुत अनुभव रहा।
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