---
मेरी एक गलती
✍️ लेखक – Vijay Sharma Erry
---
प्रस्तावना
कभी-कभी ज़िंदगी एक पल में हमें ऐसी सीख दे जाती है, जिसे हम सारी उम्र नहीं भूल पाते। यह कहानी मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल की है। एक ऐसी गलती, जिसने मुझे मेरी सबसे सच्ची दोस्त और शायद मेरा पहला प्यार भी खो दिया। उसका नाम था—निकिता।
---
कॉलेज का पहला दिन
कॉलेज का पहला दिन मेरे लिए सपनों की तरह था। बड़ा कैंपस, सजे-धजे क्लासरूम, और हर तरफ़ नए चेहरे। मैं थोड़ा घबराया हुआ था। तभी पीछे से एक आवाज़ आई –
“हाय… क्या तुम भी नए हो?”
मैंने पलटकर देखा। एक लड़की थी, नीली सलवार-कमीज़ पहने हुए, हाथ में किताबें, और चेहरे पर मासूम मुस्कान।
“हाँ… मेरा पहला दिन है।” मैंने धीमे से कहा।
वो मुस्कुराई –
“ओह, मेरा भी। वैसे मेरा नाम निकिता है। तुम्हारा?”
“मैं अर्जुन।”
उसने हाथ आगे बढ़ाया –
“तो चलो अर्जुन, अब हम दोस्त हैं।”
मैंने भी हँसकर हाथ मिलाया। शायद मुझे अंदाज़ा भी नहीं था कि यह दोस्ती मेरी पूरी ज़िंदगी बदल देगी।
---
दोस्ती की उड़ान
दिन बीतते गए और हमारी दोस्ती गहरी होती गई। हम दोनों अक्सर लाइब्रेरी में साथ बैठते, कैंटीन में एक ही टेबल शेयर करते और कभी-कभी कैंपस की लंबी सैर करते।
क्लास में कोई नया प्रोजेक्ट आता, तो हम हमेशा पार्टनर बनते। निकिता बहुत होशियार थी, लेकिन उसका अंदाज़ बेहद सादगी भरा था।
एक दिन लाइब्रेरी में किताब पढ़ते-पढ़ते उसने मुझसे कहा –
“अर्जुन, तुम जानते हो? तुम्हारे साथ होने पर मुझे लगता है कि ज़िंदगी बहुत आसान है।”
मैंने हँसते हुए जवाब दिया –
“अरे, इतना ओवर कॉन्फिडेंस मत लो। एग्ज़ाम टाइम आने दो, फिर देखना ज़िंदगी कितनी आसान लगती है।”
वो खिलखिला कर हँस पड़ी। उस हँसी में एक मासूमियत थी, जो सीधे दिल को छू जाती।
---
छोटी-छोटी परवाहें
निकिता अक्सर मेरी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखती। अगर मुझे भूख लगी हो तो वो कैंटीन से मेरी पसंद का समोसा और चाय ले आती।
एक बार मुझे तेज़ बुखार हो गया। मैं हॉस्टल में अकेला था। दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई। खोलकर देखा तो निकिता खड़ी थी।
“ये सूप मैंने खुद बनाया है। पी लो, ठीक लगोगे।”
मैंने मुस्कुराकर कहा –
“तुम्हें इतना परेशान होने की ज़रूरत नहीं थी।”
उसकी आँखों में चिंता झलक रही थी।
“दोस्त को तकलीफ़ हो और मैं चुप बैठ जाऊँ, ये कैसे हो सकता है?”
उसकी वो देखभाल, वो अपनापन… शायद प्यार ही था। लेकिन मैं उस वक़्त समझ न पाया।
---
दोस्तों की चुहल
हमारे दोस्त अक्सर छेड़ते –
“ओए अर्जुन, ये सिर्फ़ दोस्ती नहीं लगती। मामला कुछ और है।”
मैं हँसकर कहता –
“अरे नहीं यार, निकिता बस मेरी दोस्त है।”
निकिता बस चुप होकर मुस्कुरा देती। शायद वो मेरे जवाब में छिपे इनकार को महसूस करती थी, लेकिन कभी जताती नहीं।
---
समीर का आगमन
हमारी क्लास में एक नया लड़का आया – समीर। स्मार्ट, स्टाइलिश और थोड़ा फ़्लर्टी। वो हर लड़की से जल्दी घुल-मिल जाता।
एक दिन मैंने देखा कि समीर और निकिता कैंटीन में साथ बैठे बातें कर रहे हैं। दोनों हँस रहे थे। मेरा दिल अचानक कसक उठा।
“तो यही सच है… निकिता को समीर पसंद है।”
मन ही मन मैंने नतीजा निकाल लिया।
उस दिन से मेरे बर्ताव में बदलाव आने लगा।
---
बढ़ती दूरी
निकिता ने महसूस किया कि मैं उससे दूर हो रहा हूँ।
“अर्जुन, तुम मुझसे पहले जैसे बात क्यों नहीं करते?”
मैंने ठंडे स्वर में कहा –
“ऐसा कुछ नहीं।”
लेकिन मेरा चेहरा सच बयां कर रहा था।
एक दिन उसने सीधे पूछा –
“क्या तुम्हें लगता है कि मैं समीर को पसंद करती हूँ?”
मैंने झुंझलाकर कहा –
“हाँ, और शायद तुम दोनों अच्छे लगते हो साथ में।”
उसकी आँखें नम हो गईं।
“अर्जुन, तुम्हें मुझ पर इतना भी भरोसा नहीं? मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताना चाहती थी… पर अब शायद देर हो चुकी है।”
मैंने उसकी बात को मज़ाक समझकर नज़रें फेर लीं।
---
आख़िरी दिन
फाइनल ईयर का आखिरी दिन था। कॉलेज हँसी-खुशी के माहौल से गूँज रहा था। सब दोस्त एक-दूसरे को गले लगा रहे थे।
निकिता मेरे पास आई। उसके हाथ में एक डायरी थी।
“अर्जुन, ये तुम्हारे लिए। जब भी मुझे याद करो, इसे पढ़ लेना।”
मैंने बिना खोले ही बैग में रख लिया। मेरे मन में अब भी वही ग़लतफ़हमी थी।
उसके बाद निकिता और मैं कभी नहीं मिले।
---
सालों बाद…
कई साल बाद, जब मैं नौकरी कर रहा था, एक दिन पुरानी किताबें निकाल रहा था। अचानक वही डायरी हाथ लगी।
काँपते हाथों से मैंने उसे खोला।
पहले पन्ने पर लिखा था –
“प्रिय अर्जुन,
तुम्हें कभी बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाई कि मैं तुम्हें सिर्फ़ अपना दोस्त नहीं, अपनी दुनिया मानती हूँ। तुम्हारी हर मुस्कान मेरी ताक़त है। जब तुमने मुझसे दूरी बनाई, मेरा दिल टूट गया। मैंने कभी समीर के बारे में नहीं सोचा, वो बस क्लासमेट था। लेकिन तुमने मुझ पर शक किया। शायद तुम मुझे कभी न समझ पाओ, पर मैंने तुम्हें पूरी ज़िंदगी चाहा है…”
मेरी आँखों से आँसू बह निकले। मैं कुर्सी पर बैठा रहा और सोचता रहा –
“क्यों नहीं मैंने उस दिन उसकी आँखों में सच्चाई पढ़ ली? क्यों मैंने ग़लतफ़हमी को सच मान लिया?”
---
अफ़सोस
मैंने दोस्तों से निकिता का पता लगाने की कोशिश की। तब पता चला कि उसका परिवार शहर छोड़कर कहीं और चला गया था। कोई नहीं जानता था कि वो अब कहाँ है।
आज भी जब मैं आईने में खुद को देखता हूँ, तो बस यही सोचता हूँ –
“अगर उस दिन मैंने उस पर भरोसा किया होता, तो आज मेरी ज़िंदगी बिल्कुल अलग होती। मैंने अपना प्यार, अपनी सबसे सच्ची दोस्त सिर्फ़ एक ग़लतफ़हमी के कारण खो दी।”
---
निष्कर्ष
ज़िंदगी हमें सिखाती है कि रिश्ते भरोसे से चलते हैं, शक से नहीं।
मेरी एक गलती—बस एक छोटी सी ग़लतफ़हमी—ने मुझे हमेशा के लिए अकेला कर दिया।
आज भी जब हवा में कोई पुराना गीत गूँजता है, तो लगता है निकिता पास बैठी है और कह रही है –
“अर्जुन, दोस्ती और प्यार दोनों में सिर्फ़ भरोसा चाहिए, और तुमने वही खो दिया।”
मैं आँखे बंद कर धीरे से कह देता हूँ –
“हाँ निकिता… ये मेरी सबसे बड़ी गलती थी।”
---
✍️ लेखक – Vijay Sharma Erry
---