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नदी – जीवन की दिशा
✍️ लेखक: विजय शर्मा एरी
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प्रस्तावना
गाँव "सूरजपुर" के पास बहती नदी "चंद्रिका" केवल पानी की धारा नहीं थी। वह गाँव की आत्मा थी। हर पीढ़ी ने उसे अपनी आँखों से देखा था और दिल से पूजा था।
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1. अर्जुन और नदी
अर्जुन अब किशोर था। उसके लिए नदी खेल का मैदान भी थी और शिक्षक भी।
वह नदी किनारे बैठकर पत्थर उछालता और लहरों से सवाल करता –
"माँ, तुम क्यों हर दिन नए रास्ते बनाती हो?"
नदी हँसती सी लगती और कहती –
"क्योंकि जीवन का असली मज़ा बदलते रास्तों में है, स्थिरता में नहीं।"
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2. किसान रामलाल
गाँव के किसान रामलाल सुबह-सुबह बैलों के साथ खेत जाते और नदी से पानी लेकर अपनी ज़मीन को सींचते।
वे अक्सर कहते –
"चंद्रिका तो हमारी भगवान है। अगर यह न हो तो हमारी मेहनत मिट्टी हो जाए।"
उनकी पत्नी गोमती जब मिट्टी से भीगे हाथों से रोटी बेलती, तो कहती –
"रामलाल, देखना! यह नदी हमारे बच्चों का पेट भर रही है।"
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3. मछुआरे रघु और उसकी पत्नी सुशीला
रघु नाव लेकर नदी में उतरता। जाल फेंकता और मछलियाँ पकड़ता। उसकी पत्नी सुशीला किनारे बैठकर गाना गाती –
"नदी की धारा रे, जीवन हमारा रे..."
उनका छोटा बेटा नदी में कंकड़ फेंकता और कहता –
"बाबा, ये मछलियाँ भी हमारे दोस्त हैं क्या?"
रघु हँसकर कहता –
"हाँ बेटा, ये दोस्त भी हैं और भोजन भी। यही तो नदी का वरदान है।"
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4. साधु और शिष्य
गाँव के किनारे एक साधु रहते थे। उनका नाम "आचार्य हरिदास" था।
वे अपने शिष्य मोहन को नदी के दर्शन कराते और कहते –
"देखो मोहन, यह नदी हमें धर्म का सच्चा पाठ पढ़ाती है।
जैसे नदी सबको समान पानी देती है, वैसे ही हमें भी सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए।
जैसे नदी रुकती नहीं, वैसे ही मनुष्य को भी कर्म करते रहना चाहिए।"
मोहन हर दिन नदी को प्रणाम करता और मन में ठानता कि जीवनभर कुछ अच्छा करेगा।
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5. दादी और नाती का रिश्ता
गाँव की वृद्ध दादी गंगा देवी हर शाम अपने नाती पिंकी और सोनू को नदी किनारे ले जातीं।
वह कहानी सुनातीं –
"बच्चो, यह नदी हमारी रक्षा करती है। जब हमारे पूर्वजों पर संकट आया, तब यही नदी हमारी ढाल बनी। इसने हमारी प्यास बुझाई, हमारी फसलें बचाईं।"
सोनू भोलेपन से पूछता –
"दादी, अगर नदी थक जाए तो?"
दादी मुस्कुरातीं –
"नदी कभी नहीं थकती बेटा, क्योंकि यह माँ है।"
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6. शहर से आया इंजीनियर
एक दिन शहर से एक इंजीनियर आया – श्रीकांत। वह बाँध बनाने का नक्शा लेकर आया।
उसने गाँववालों से कहा –
"अगर नदी पर बाँध बनेगा, तो बिजली बनेगी। आप लोग भी तरक्की करेंगे।"
कुछ गाँववाले खुश हुए, कुछ चुप रहे।
रामलाल बोला –
"बिजली से हमें क्या मिलेगा अगर हमारी फसलें ही सूख जाएँ?"
रघु बोला –
"और हमारी नाव? हम किस पर मछलियाँ पकड़ेंगे?"
पर श्रीकांत केवल कागज़ों पर अटका रहा।
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7. संघर्ष का समय
धीरे-धीरे काम शुरू हुआ। बड़ी मशीनें आईं।
गाँववालों ने देखा कि नदी की धारा कम होने लगी। खेत सूखने लगे।
रघु की नाव किनारे पर जकड़ गई। सुशीला के गीतों की जगह अब आहें सुनाई देने लगीं।
अर्जुन ने एक दिन नदी से कहा –
"माँ, क्या वे तुम्हें बाँध देंगे?"
नदी की लहरें भारी हो गईं और उसने जैसे फुसफुसाया –
"मनुष्य जब अपने लाभ में अंधा हो जाता है, तो वह माँ को भी बाँध देता है।"
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8. मोहन का विद्रोह
साधु का शिष्य मोहन युवा हो गया था। उसने गाँववालों को एकजुट कर कहा –
"नदी को रोकना, जीवन को रोकना है। हमें मिलकर विरोध करना होगा।"
गाँव की दादी ने भी कहा –
"बेटा, यह केवल तुम्हारी लड़ाई नहीं, हमारी पीढ़ियों की साँसों की लड़ाई है।"
सब लोग सड़कों पर उतरे, पर शहर की ताकत के सामने उनकी आवाज़ दब गई।
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9. परिणाम
कुछ सालों में बाँध बन गया।
खेत बंजर हो गए।
रघु ने नाव बेच दी और मजदूर बन गया।
गाँव के बच्चे नदी किनारे खेलना भूल गए।
दादी की आँखों से आँसू बहते रहे।
अर्जुन बड़ा होकर सोचता रहा –
"हमने अपनी माँ को बाँधकर खुद को ही बाँध लिया।"
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10. अर्जुन का संकल्प
एक दिन अर्जुन ने शहर में पढ़ाई पूरी की और वापस गाँव लौटा। उसने गाँववालों से कहा –
"हम नदी को आज़ाद नहीं कर सकते, लेकिन उसे बचा सकते हैं। हमें पेड़ लगाने होंगे, छोटे-छोटे तालाब बनाने होंगे, ताकि नदी फिर से सांस ले सके।"
गाँव के बच्चे, औरतें, बूढ़े सब उसके साथ हो गए।
धीरे-धीरे गाँव ने पर्यावरण की रक्षा करना सीखा।
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उपसंहार
नदी "चंद्रिका" फिर से थोड़ी बहने लगी।
उसकी लहरें अब भी अर्जुन से कहतीं –
"बेटा, जीवन का अर्थ है बहना, बाँधना नहीं। मनुष्य जब प्रकृति का सम्मान करेगा, तभी उसका भविष्य सुरक्षित होगा।"
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संदेश
यह कहानी हमें बताती है कि नदी केवल जलधारा नहीं, बल्कि जीवन का आधार है।
हर पात्र – अर्जुन, किसान, मछुआरा, साधु, दादी – अपने-अपने तरीके से यही समझाते हैं कि नदी को बचाना मतलब खुद को बचाना है।
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