🌙 एपिसोड 18 : “रूहानी का रहस्य – इश्क़ और धोखे की दहलीज़”
बारिश अब भी बाहर टप-टप गिर रही थी।
मंदिर की दीवारें हल्की-हल्की कांप रही थीं, और उस नीली रेखा की जगह अब बस लाल चिह्न धधक रहा था —
जिस पर लिखा था: “अगला इम्तिहान तुम्हारे अपने लोगों से होगा।”
विवान और अनाया उस दीवार को निहार ही रहे थे कि पीछे से कदमों की आहट आई।
धीरे-धीरे वो कदम पास आए… और धुंध के बीच से रूहानी का चेहरा उभरा।
उसकी आँखों में नीली चमक थी, पर इस बार उसमें मासूमियत नहीं, एक अजीब रहस्य छिपा था।
विवान ने ठंडी साँस ली —
“रूहानी… तुम यहाँ कैसे?”
रूहानी ने धीमे स्वर में कहा —
“शायद किस्मत ने बुलाया है… या वो रूह जिसने अभी-अभी तुम्हें मुक्त किया।”
अनाया ने उसके पास जाकर हाथ पकड़ना चाहा,
“रूहानी, हमें लगा तुम हवेली से जा चुकी हो—”
रूहानी ने हल्की मुस्कान दी, पर वो मुस्कान अजनबी थी।
“कभी-कभी जो दिखता है, वो होता नहीं… मैंने उस रूह की सच्चाई देखी है।
और अब वक्त है कि तुम दोनों मेरी सच्चाई जानो।”
विवान ने हैरानी से कहा —
“तुम्हारी सच्चाई?”
वो आगे बढ़ी, और मंदिर की मूर्ति के पास जाकर दीपक में हाथ डाल दिया।
नीली लपटें उसके चारों ओर घूमने लगीं — पर वो नहीं जली।
उसकी आँखें अब चमकने लगीं — नीले और सुनहरे रंग के मिश्रण में।
अनाया का दिल धड़क उठा —
“रूहानी… तुम्हें क्या हो रहा है?”
रूहानी ने पलटकर देखा, उसकी आवाज़ अब किसी और जैसी थी —
“मैं सिर्फ रूहानी नहीं हूँ… मैं उसी रूह का अंश हूँ जिसे तुमने अभी मुक्त किया है।”
मंदिर की घंटियाँ अपने आप बजने लगीं।
हवा में ठंडक बढ़ गई।
विवान ने आगे बढ़ते हुए कहा —
“क्या मतलब? तुम वही रूह हो?”
वो बोली —
“नहीं… मैं उसकी अधूरी रूह हूँ।
जब वो नफरत में जली, उसकी रूह दो हिस्सों में बँट गई थी — एक हिस्सा बदले में, दूसरा मोहब्बत में।
वो हिस्सा मैं हूँ… जो इंसान बनकर तुम्हारे आस-पास रही,
ताकि तुम्हारा प्यार देख सकूँ, उसे परख सकूँ।”
अनाया ने काँपते हुए कहा —
“मतलब… तू शुरू से ही हमें परख रही थी?”
रूहानी की आँखों में अब दर्द था —
“हाँ… क्योंकि मुझे खुद समझ नहीं आया कि इश्क़ सुकून है या धोखा।
हर जन्म में मैंने तुम्हें दोनों को देखा — टूटते, बिखरते, फिर जुड़ते।
पर हर बार कुछ अधूरा रह गया।”
विवान ने गंभीर आवाज़ में कहा —
“तो अब क्या चाहती हो?”
वो बोली —
“एक आख़िरी सच…
क्योंकि रूह तब तक मुक्त नहीं होती, जब तक वो अपने हिस्से की मोहब्बत को पहचान न ले।”
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🌹 रूहानी की यादों का द्वार
रूहानी ने मंदिर की दीवार को छुआ।
एक तेज़ नीली चमक फैली और हवा में पुराने दृश्य तैरने लगे —
एक राजमहल, जहाँ वही तीन रूहें मौजूद थीं — विवान, अनाया और रूहानी, पर नाम अलग थे।
वो समय था मगध साम्राज्य का।
विवान था एक योद्धा विहार,
अनाया थी राजकुमारी अमाया,
और रूहानी थी उसकी दासी रूहा — जो अपने मालिक से बेइंतेहा मोहब्बत करती थी।
रूहानी की आँखें भीग गईं —
“वो मैं थी… जो अपने मालिक की मोहब्बत में सब कुछ हार गई थी।
पर जब उसे अमाया से प्यार हुआ, मैंने अपनी नफरत में खुद को रूह बना लिया।
वो नफरत ही सदियों से मेरी सजा है।”
अनाया ने आँसू रोकते हुए कहा —
“तो अब क्या चाहती हो, रूहानी?
क्या फिर से हमें अलग करना?”
रूहानी ने सिर झुकाया —
“नहीं… अब अलग नहीं करना।
अब समझना चाहती हूँ — क्या सचमुच मोहब्बत मुझे भी मुक्त कर सकती है?”
विवान ने कहा —
“हर रूह का मुक्ति का रास्ता अलग होता है।
अगर तू अपने भीतर की नफरत को छोड़ दे, तो तेरी राह भी साफ़ हो जाएगी।”
वो मुस्कुराई,
“नफरत छोड़ना आसान नहीं होता…
क्योंकि कभी-कभी नफरत ही मोहब्बत की परछाई बन जाती है।”
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⚡ धोखे की आहट
अचानक मंदिर के बाहर तेज़ हवा चली।
दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
तीनों ने पीछे देखा — बाहर कोई था।
दीवार की परछाई में एक आदमी खड़ा था, जो धीरे-धीरे भीतर आया।
उसकी चाल शांत थी, मगर आँखों में तूफ़ान था —
वो राज़ मल्होत्रा था।
रूहानी के होंठ काँपे —
“राज़… तुम यहाँ?”
राज़ ने कहा —
“जहाँ तू होगी, मैं वहाँ रहूँगा, रूहानी।
पर आज मैं तेरे सच को जानने आया हूँ।”
विवान और अनाया पीछे हटे।
राज़ आगे बढ़ा और रूहानी की आँखों में देखा —
“क्या तू अब भी वही है… या कोई और बन चुकी है?”
रूहानी की आवाज़ टूटी —
“शायद अब मैं खुद भी नहीं जानती कि मैं कौन हूँ।”
राज़ ने उसकी बाँह पकड़ी —
“तो मैं तुझे याद दिलाऊँगा।
मैंने तुझे चाहा था, तेरी रूह को नहीं, तेरे दिल को।
अगर तू वही रूहानी है… तो मेरी मोहब्बत आज तुझे नफरत से आज़ाद करेगी।”
वो धीरे से उसके माथे को छूता है,
और एक सफ़ेद रोशनी फैलती है —
नीली और सुनहरी लपटें हवा में घुल जाती हैं।
रूहानी की साँसें भारी हो गईं।
वो काँपती हुई बोली —
“राज़… तेरी मोहब्बत ने मुझे छू लिया…
अब मुझे समझ आया कि इश्क़ रूह को जलाता नहीं, उसे रोशन करता है।”
वो धीरे-धीरे हवा में घुलने लगी।
उसके चेहरे पर अब सुकून था,
और एक आख़िरी वाक्य उसके होंठों से निकला —
“मोहब्बत का असली इम्तिहान… खुद को माफ़ करना होता है।”
वो रोशनी बनकर मंदिर की छत में समा गई।
सन्नाटा छा गया।
राज़ वहीं खड़ा रहा, आँखों में आँसू और होंठों पर एक मुस्कान।
अनाया ने धीरे से कहा —
“रूहानी अब सचमुच मुक्त हो गई।”
विवान ने उसकी ओर देखा —
“पर दीवार पर लिखा था — ‘अगला इम्तिहान अपने लोगों से होगा…’
तो क्या ये अंत है… या कोई नया आरंभ?”
राज़ ने शांत स्वर में कहा —
“कभी-कभी रूहें मरती नहीं…
वो बस नया रूप ले लेती हैं।”
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🌌 हुक लाइन (Suspense Ending)
मंदिर के पीछे की दीवार पर अब एक और प्रतीक उभरा —
इस बार वह सुनहरी था।
उस पर लिखा था —
> “रूह मुक्त हो गई, पर उसकी शक्ति अब किसी और में समा चुकी है।”
अचानक बाहर से एक घोड़े की टाप सुनाई दी,
और दरवाज़े पर एक स्त्री का साया दिखाई दिया —
काले लिबास में, हाथ में लाल माला लिए हुए।
वो बोली —
“रूहानी तो मुक्त हुई है…
पर जिसने उसे मुक्त किया, वही अब उसके श्राप का वारिस है।”
राज़ ने कदम पीछे खींचे —
“मतलब… वो मैं?”
वो साया हँसा —
“अब रूहानी की रूह तुझमें है, राज़…
और अब तेरे इश्क़ का इम्तिहान शुरू हुआ है।”
हवा में घंटियों की आवाज़ गूँजने लगी,
और आसमान से एक बूंद लाल रोशनी की उनके ऊपर गिरी।
राज़ की आँखें नीली चमकने लगीं…
✨ जारी रहेगा —
एपिसोड 18 : “राज़ का श्राप – मोहब्बत या महाशक्ति?”
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