ठीक है 🙏
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चांद का दूसरा रूप
✍️ विजय शर्मा एरी
रात का सन्नाटा था। आँगन में बैठी नन्हीं परी—आन्या—आसमान की ओर देख रही थी। उसकी आँखों में चमक थी और होंठों पर मासूम सवाल।
“माँ, सबके पास खिलौने, किताबें, रंग-बिरंगी गुड़िया हैं... पर मेरा अपना क्या है? क्या मेरा भी कोई है, जो सिर्फ मेरा हो?”
उसकी माँ मुस्कुरा दी। उसने बेटी को गोद में लेकर कहा,
“तुम्हारा अपना चाँद है, आन्या। देखो, वह हर रात तुम्हें देखने आता है। कभी पूरा, कभी आधा, लेकिन हमेशा तुम्हारे साथ।”
आन्या की आँखें और फैल गईं। वह सचमुच सोचने लगी कि आसमान का चाँद सिर्फ उसी का है। उस दिन से जब भी वह अकेली होती, जब भी कोई दोस्त उसे छेड़ता, वह आसमान की ओर देख लेती और मन ही मन कहती—
“देखो, मेरा चाँद आ गया।”
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बचपन का सहारा
समय गुज़रता गया। आन्या बड़ी होने लगी। पिताजी का देहांत जल्दी हो गया था, माँ ने सिलाई-कढ़ाई करके घर चलाया। गरीबी थी, लेकिन माँ ने हमेशा हिम्मत दी।
कभी-कभी आन्या को लगता, “काश पापा होते तो शायद मेरी ज़िंदगी आसान होती।”
ऐसे में वह छत पर चली जाती और चाँद से बातें करती—
“तुम तो सबके हो, लेकिन मैं मान लेती हूँ कि तुम सिर्फ मेरे हो। मुझे हिम्मत दो न।”
चाँद उसकी तन्हाई का साथी बन चुका था।
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संघर्ष का दौर
स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ आन्या माँ की मदद करती। जब सहेलियाँ महंगे कपड़े पहनतीं, नये फोन दिखातीं, तो उसे थोड़ी कसक होती। पर फिर वह चाँद की ओर देखती और मन समझा लेती।
बारहवीं की परीक्षा में आन्या ने टॉप किया। अखबार में उसका नाम छपा। वह रात फिर छत पर बैठकर बोली—
“देखा, चाँद! मैं कर सकती हूँ। तुम्हें गर्व हुआ न?”
हवा में हल्की ठंडक थी, जैसे सचमुच चाँद ने सिर पर हाथ फेर दिया हो।
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सपनों की उड़ान
कॉलेज में दाख़िला मिला। अब नए सपनों का संसार था। लाइब्रेरी में किताबें पढ़ते हुए आन्या को महसूस होता कि दुनिया कितनी बड़ी है।
लेकिन रास्ता आसान कहाँ था? पैसों की कमी, समाज की ताने, रिश्तेदारों की कटाक्ष—सब झेलने पड़े।
रात को देर तक पढ़ाई करते-करते थक जाती, तो खिड़की से बाहर देखती। चाँद जैसे उसे ताकीद करता—
“रुको मत, आगे बढ़ो। तुम्हारा अपना उजाला पास ही है।”
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पहली हार, पहला सबक
एक बार प्रतियोगी परीक्षा में वह पास नहीं हो पाई। उसे लगा सब खत्म हो गया। रोते-रोते माँ से बोली—
“शायद मैं बड़ी नहीं बन पाऊँगी।”
माँ ने कहा—
“जिसका चाँद उसके साथ हो, उसका सपना कभी अधूरा नहीं रहता। बस कोशिश दोबारा करनी होगी।”
उस रात आसमान में बादल थे। चाँद नहीं दिख रहा था। आन्या का दिल और भारी हो गया। पर अचानक बादल हटे और चाँद झाँक पड़ा।
आन्या ने आँसू पोंछते हुए कहा—
“ठीक है, मैं हार नहीं मानूँगी।”
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जीत की सुबह
अगले साल उसने दुगुनी मेहनत की। किताबों के साथ-साथ उसने समय-प्रबंधन, आत्मविश्वास और धैर्य सीखा।
परीक्षा का रिज़ल्ट आया—उसका चयन हो गया। वह खुशी से दौड़कर माँ के गले लग गई। उस रात चाँद पूरा था, गोल और चमकदार।
आन्या ने कहा—
“आज सचमुच तुम मेरे हो। तुमने मुझे मेरा रास्ता दिखाया।”
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रिश्तों का चाँद
समय बीतता गया। नौकरी मिली, सम्मान मिला। माँ की आँखों में गर्व था। लेकिन दिल में कहीं एक खालीपन था।
फिर उसकी मुलाक़ात अर्नव से हुई—एक सरल, सच्चा और ईमानदार लड़का। उसने आन्या के संघर्ष को समझा, उसे सम्मान दिया।
शादी के बाद जब वे दोनों छत पर बैठे तो आन्या ने मुस्कराकर कहा—
“जानते हो, बचपन से मेरा एक अपना चाँद था। अब लगता है कि वह तुम्हारे रूप में ज़मीन पर उतर आया है।”
अर्नव हँस पड़ा—
“तो अब मुझे हर रात आसमान देखना होगा?”
आन्या बोली—
“नहीं, अब मुझे आसमान देखने की उतनी ज़रूरत नहीं। क्योंकि मेरा चाँद यहीं मेरे पास है।”
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जीवन का सच
वक़्त के साथ आन्या माँ भी बनी। जब उसकी छोटी बेटी ने पूछा—
“मम्मा, मेरा भी कोई अपना है?”
आन्या ने उसे गोद में लेकर वही कहा, जो उसकी माँ ने कभी उससे कहा था—
“हाँ बेटा, तुम्हारा अपना चाँद है। देखो, वह हर रात तुम्हारे लिए चमकता है।”
बेटी ने मासूमियत से आसमान देखा और मुस्कुरा दी।
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उपसंहार
आन्या जानती थी कि ज़िंदगी में कठिनाइयाँ आती रहेंगी, लेकिन अब वह अकेली नहीं थी। उसके पास उसका बचपन का चाँद, माँ का आशीर्वाद, अर्नव का साथ और बेटी की मुस्कान थी।
उसे समझ आ गया था—
“मेरा अपना चाँद कोई आसमान में ही नहीं, बल्कि उन सभी रिश्तों और सपनों में है, जो अंधेरे में भी उजाला देते हैं।”
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✨ शिक्षा:
हर इंसान के जीवन में एक “अपना चाँद” होता है—कभी एक सपना, कभी माँ का आशीर्वाद, कभी जीवनसाथी का साथ, तो कभी बच्चों की हँसी। ज़रूरत है तो सिर्फ उसे पहचानने और थामने की।
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