Mere Ishq me Shamil Ruhaniyat he - 29 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 29

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मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 29

 
🌕 1. हवेली की सुबह — जब रूह ने आँखें खोलीं
 
सूरज की पहली किरण हवेली की टूटी खिड़की से भीतर आई,
और उस रोशनी ने धीरे-धीरे छत पर खड़ी उस परछाई को जगाया।
 
वो परछाई अब इंसानी आकार ले रही थी —
नीले और सुनहरे आभा से घिरी, उसकी आँखों में आग भी थी और करुणा भी।
 
वो रूह-ए-रुमानियत थी —
ना पूरी तरह इंसान, ना पूरी तरह आत्मा।
वो उस इश्क़ की देन थी, जो दो रूहों के मिलन से जन्मी थी — राज़ और रूहनिशा की।
 
उसने हवेली की ओर देखा और फुसफुसाई,
 
> “तो यही है वो जगह… जहाँ मोहब्बत ने खुद को अमर किया।”
 
 
 
फर्श पर पड़े गुलाब की पंखुड़ियाँ उसके कदमों के साथ उड़ने लगीं।
हर पंखुड़ी में राज़ और रूहनिशा की साँसों की याद थी।
 
पर उसके भीतर एक बेचैनी थी —
वो जानती थी कि उसका जन्म किसी अधूरे मकसद के लिए हुआ है।
 
 
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🌘 2. दरभंगा का बदलता आसमान
 
गाँव के लोग हैरान थे।
हवेली के ऊपर हर रात नीली रोशनी दिखाई देने लगी थी।
कुछ कहते — “रूह जाग गई है”,
तो कुछ कहते — “अब हवेली में कोई नई आत्मा बस गई है।”
 
रात को गाँव का बूढ़ा पंडित रमाकांत अपनी झोपड़ी में बोला —
 
> “तीन जन्मों का इश्क़ अब चौथे रूप में आया है…
पर अगर रूह-ए-रुमानियत ने अपना वादा पूरा न किया,
तो ये धरती उसकी चमक सह नहीं पाएगी।”
 
 
 
आसमान में हल्का भूकंप-सा कंपन हुआ।
दरभंगा की हवाओं में फिर वही महक घुली —
गुलाब और राख की।
 
 
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🌙 3. रूह-ए-रुमानियत की पहली पुकार
 
हवेली के भीतर, रूह-ए-रुमानियत ने पुरानी दीवारों पर हाथ रखा।
जगह-जगह नीली लकीरें उभर आईं —
जैसे दीवारें उसे पहचान रही हों।
 
“रूहनिशा…”
“राज़…”
 
दो आवाज़ें उसके भीतर गूँज उठीं —
एक नरम, दूसरी भारी।
उसने अपनी आँखें बंद कीं, और अचानक एक दृश्य उभरा —
 
वो खुद को अतीत में देख रही थी —
जहाँ रूहनिशा और राज़ हाथों में मशाल लिए तहखाने की ओर बढ़ रहे थे।
फिर वही तारा, वही रोशनी, और उनके मिलन का पल।
 
उसने फुसफुसाया,
 
> “तो मैं… उनका वादा हूँ।”
 
 
 
रूह-ए-रुमानियत अब समझ चुकी थी —
उसका अस्तित्व सिर्फ उनकी कहानी का अंत नहीं,
बल्कि एक नई शुरुआत है।
 
 
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🌒 4. “वादा” की खोज
 
हवेली के तहखाने में अब हल्की रोशनी फैली हुई थी।
वो नीचे उतरी, और देखा —
वो संगमरमर का तख़्त अब चमक रहा था।
तीसरी लकीर उस पर धीरे-धीरे उभर रही थी —
 
> “जिसने इश्क़ का वादा पूरा किया, वही रूह को सुकून देगा।”
 
 
 
रूह-ए-रुमानियत के कदम अपने आप आगे बढ़े।
उसने अपने हाथ से वो वाक्य छुआ,
और उसी पल दीवार खुली —
पीछे एक गुप्त गलियारा।
 
वहाँ हवा में संगीत तैर रहा था —
जैसे किसी ने मोहब्बत की धुन को पत्थर में कैद कर दिया हो।
 
वो अंदर बढ़ी,
और वहाँ एक पुरानी चिट्ठी रखी थी —
रूहनिशा की लिखावट में:
 
> “अगर कभी हमारी रूह किसी और रूप में जन्म ले,
तो वो इस पत्र को पढ़े —
इसमें लिखा है कि रुमानियत की विरासत अब उसके हाथों में है।”
 
 
 
रूह-ए-रुमानियत के होंठ काँपे।
“तो अब मुझे वो विरासत पूरी करनी है…”
 
 
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🔥 5. विरासत का इम्तिहान
 
अचानक गलियारे की दीवारें काँपने लगीं।
नीली रौशनी लाल में बदल गई।
एक भारी आवाज़ गूँजी —
 
> “रुमानियत की विरासत हर जन्म में आसान नहीं होती…
अब साबित करो कि तुम इश्क़ की हक़दार हो।”
 
 
 
सामने एक विशाल दर्पण उभर आया —
और उसमें राज़ और रूहनिशा दिखाई दिए,
मगर उनके चेहरे बुझ चुके थे।
 
राज़ बोला — “अगर तू हमारा अंश है,
तो बता… इश्क़ का असली मतलब क्या है?”
 
रूह-ए-रुमानियत ने आँखें बंद कीं,
और उसके आसपास हवा घूमने लगी।
वो बोली —
 
> “इश्क़ वो नहीं जो पूरा हो जाए,
इश्क़ वो है जो हर जन्म में नया रूप लेकर लौटे —
ताकि रूहें कभी तन्हा न रहें।”
 
 
 
इतना कहना था कि दर्पण की सतह सुनहरी हो गई,
और उस पर लिखा उभरा —
 
> “इम्तिहान पूरा हुआ।”
 
 
 
 
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🌕 6. नई रौशनी का जन्म
 
हवेली की छत से एक सुनहरी किरण निकली —
जो आसमान तक पहुँच गई।
दरभंगा का आसमान पहली बार गुलाबी चमक में नहा गया।
 
रूह-ए-रुमानियत ने हाथ फैलाए,
और हवेली की हर दरार में रौशनी समा गई।
पुराने श्राप मिटने लगे,
और हवेली की दीवारों से किसी के गीत की आवाज़ आने लगी —
“रुमानियत ज़िंदा है…”
 
रमाकांत ने दूर से देखा और काँप उठा —
 
> “अब समझ आया… ये इश्क़ इंसानों से नहीं,
खुद वक़्त से लड़ा है।”
 
 
 
 
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🌙 7. हवा में बसी मोहब्बत
 
रूह-ए-रुमानियत अब हवेली की दहलीज़ पर खड़ी थी।
उसकी आँखों में अब न कोई डर था, न दर्द।
सिर्फ एक मुस्कान — जो सुकून जैसी थी।
 
वो आसमान की ओर देखती है,
जहाँ वो तारा अब स्थिर चमक रहा था।
 
“रूहनिशा, राज़…
मैंने तुम्हारा वादा पूरा किया।
अब रुमानियत सिर्फ हवेली की नहीं,
हर दिल की कहानी है।”
 
वो हवा में विलीन होने लगी।
उसके साथ गुलाब की महक फैली,
और दीवारों पर आखिरी पंक्ति उभरी —
 
> “हर इश्क़ में एक रूह-ए-रुमानियत बसती है…”
 
 
 
 
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🌘 एपिसोड 28 – हुक लाइन :
अगले दिन गाँववालों ने हवेली के दरवाज़े पर एक अजनबी लड़की को खड़ा देखा —
उसकी आँखें सुनहरी थीं, और उसके गले में वही ताबीज़ झूल रहा था।
किसी ने पूछा, “तुम कौन हो?”
वो मुस्कुराई —
 
> “बस… एक अधूरी मोहब्बत का नया जन्म।” 🌹