🌌 एपिसोड 34 — “मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है”
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🌙 1. रौशनी के बाद की खामोशी
दरभंगा की हवेली में रात उतर आई थी,
पर यह रात बाकी रातों जैसी नहीं थी —
यह सुकून में डूबी, रूहों की साँसों से महकती रात थी।
दीवारों पर अब कोई परछाईं नहीं,
बस सुनहरी लकीरों में घुली नीली चमक थी।
अर्जुन बरामदे में बैठा था।
उसके सामने वही पेंटिंग थी —
पर अब उसमें रुमी और रूहान दोनों मुस्कुरा रहे थे,
और उनके बीच अर्जुन की परछाई ठहर गई थी।
> “अब मैं अकेला नहीं हूँ…”
उसने हल्के से कहा,
“क्योंकि मेरे इश्क़ में अब रुमानियत भी शामिल है।”
हवा ने जैसे उसकी बात सुन ली —
एक नरम झोंका आया,
और कहीं पास से किसी ने गुनगुनाया —
> “रूहों का सफ़र अभी बाकी है…”
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🌕 2. हवेली में नया मेहमान
अगली सुबह दरवाज़े पर दस्तक हुई।
रमाकांत पंडित बाहर खड़े थे, उनके साथ एक अजनबी लड़की।
सफेद सूट, गले में नीला दुपट्टा,
और आँखों में वही जानी-पहचानी नर्मी।
> “नाम?” अर्जुन ने पूछा।
> “रूहाना…” उसने मुस्कुराकर कहा।
“माँ ने कहा था हवेली की तरफ़ खिंच जाओगी,
पता नहीं क्यों… पर कुछ मुझे यहाँ बुला रहा था।”
अर्जुन ठिठक गया —
रूहाना… नाम सुनते ही हवेली की दीवारों में हल्की सी गूंज उठी।
नीली रौशनी दीवार से निकल कर उसके चारों ओर घूमी —
जैसे रूहान की पहचान उसे छू रही हो।
> “तुम्हारी माँ का नाम क्या था?” अर्जुन ने काँपते स्वर में पूछा।
> “रुमी।”
रूहाना की आवाज़ हवा में तैर गई।
अर्जुन के हाथ से कप गिर पड़ा —
पानी ज़मीन पर गिरते ही सुनहरी रेखाएँ फैल गईं।
> “तो रुमानियत अब जन्म ले चुकी है…”
उसने खुद से कहा।
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🔥 3. अतीत का आईना
हवेली के पुराने कमरे में अर्जुन ने रूहाना को वही पेंटिंग दिखाई।
वो उसे देखते हुए बोली —
> “ये दोनों… यही तो मेरे सपनों में आते थे।”
अर्जुन की आँखों में नमी उतर आई।
> “रुमी तुम्हारी माँ थी, और रूहान…”
उसकी आवाज़ धीमी पड़ गई।
“तुम्हारे भीतर उनका हिस्सा अब भी सांस ले रहा है।”
रूहाना ने धीरे से पेंटिंग को छुआ —
नीली और सुनहरी रेखाएँ उसकी हथेली पर उतर आईं।
> “तो इसका मतलब… मेरा जन्म भी किसी रूह की पुकार पर हुआ?”
> “हाँ,” अर्जुन ने कहा।
“क्योंकि हर अधूरे इश्क़ को कोई न कोई पूरा करने आता है।”
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🌘 4. रुमानियत की विरासत
रूहाना हवेली में रहने लगी।
वो अर्जुन से कहानियाँ सुनती, पुराने कोनों में घूमती,
और अक्सर कहती —
> “यह हवेली साँस लेती है अर्जुन जी…
हर ईंट में किसी की याद अटकी है।”
अर्जुन मुस्कुरा देता, पर उसकी आँखों में अब भी बेचैनी थी।
एक रात जब वह अपनी मेज़ पर बैठा,
तो काग़ज़ पर खुद-ब-खुद शब्द उभरने लगे —
> “रूहें लौटती नहीं, वो बस नया रूप लेती हैं।”
और उसी पल, रूहाना दरवाज़े पर खड़ी थी।
उसके हाथ में वही डायरी थी, जिस पर लिखा था — “रूहान।”
> “यह अपने आप मेरे कमरे में आ गई,” उसने कहा।
“लगता है ये मुझसे कुछ कहना चाहती है…”
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🌒 5. डायरी का आख़िरी पन्ना
अर्जुन और रूहाना दोनों ने डायरी खोली —
अंदर लिखा था:
> “अगर ये पन्ना किसी नई रूह के हाथों में है,
तो समझो हमारी मोहब्बत ने जन्म ले लिया है।”
> “अर्जुन, अब रुमानियत तुम्हारे इश्क़ में शामिल हो चुकी है।”
रूहाना ने धीरे से कहा —
> “तो अब तुम्हारा सफ़र पूरा हुआ?”
अर्जुन ने उसकी ओर देखा,
फिर आसमान की ओर नज़र उठाई —
जहाँ नीली और सुनहरी रौशनी एक-दूसरे में घुल रही थी।
> “नहीं…” उसने मुस्कुराते हुए कहा।
“अब सफ़र शुरू हुआ है।”
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🌠 6. रूहों की अगली सुबह
सुबह दरभंगा की हवेली में फिर वही स्याही और धूप की महक थी।
रमाकांत ने देखा —
अब हवेली के दरवाज़े पर एक नई तख़्ती टंगी थी:
> “यहाँ रुमानियत और रूहानियत एक साथ सांस लेती हैं।”
और हवेली के अंदर, अर्जुन रूहाना को लिखना सिखा रहा था —
नीली स्याही, सुनहरी कलम, और दिल से निकले शब्द।
रूहाना मुस्कुराई —
> “आपकी कहानी अधूरी थी अर्जुन जी?”
> “अब नहीं,” उसने कहा।
“क्योंकि अब मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है…” ❤️🔥
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💫 एपिसोड 33 — हुक लाइन :
हवेली की छत से एक नीला दीया उड़ता हुआ आसमान में गया —
और वहाँ से आवाज़ आई —
> “इश्क़ जब रूह में उतर जाए,
तो वक्त भी उसे मिटा नहीं सकता…” 🌙