dream deal in Hindi Moral Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | सपनों का सौदा

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सपनों का सौदा




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🌟 सपनों का सौदा 

(लेखक – विजय शर्मा एरी)

रात का सन्नाटा पूरे शहर पर छाया हुआ था। घड़ी ने बारह बजाए, और तभी पुराने घड़ीसाज़ की दुकान की खिड़की पर किसी ने धीरे से दस्तक दी।

वह दुकान शहर के सबसे पुराने हिस्से में थी — चांदनी चौक की तंग गलियों में छिपी हुई "सपनों का बाजार"।
यह कोई साधारण बाजार नहीं था। यहाँ लोग वस्तुएँ नहीं, सपने खरीदते थे।

दुकान का मालिक — नसीर अली — सफेद बालों और चांदी सी दाढ़ी वाला रहस्यमयी आदमी था।
लोग उसे “सपनों का सौदागर” कहते थे।
कहते हैं, उसके पास हर इंसान के खोए हुए सपनों का खजाना था — बस कीमत सही देनी पड़ती थी।


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1. अधूरे सपनों की कीमत

उस रात, दरवाज़ा धीरे से खुला। अंदर एक लड़की दाख़िल हुई — उम्र कोई बीस-बाईस साल।
उसकी आँखों में नींद नहीं थी, सिर्फ़ अधूरे ख्वाबों की धूल थी।

“क्या मैं... कोई सपना खरीद सकती हूँ?” उसने काँपती आवाज़ में पूछा।

नसीर अली ने मुस्कराते हुए कहा —
“यहाँ हर सपना बिकता है, बेटी... पर कीमत हमेशा सोने-चाँदी में नहीं होती।”

“मेरे पास ज़्यादा पैसे नहीं,” लड़की बोली, “पर मैं एक गायिका बनना चाहती हूँ। सब हँसते हैं, कहते हैं मेरी आवाज़ मामूली है। क्या आप मुझे वो सपना दे सकते हैं... जहाँ लोग मेरी आवाज़ पर ताली बजाएँ?”

नसीर अली ने धीरे से दीवार पर टंगी एक बोतल उठाई —
उसमें सुनहरी धूल चमक रही थी।

“यह रहा तुम्हारा सपना,” उसने कहा।
“बस एक बात याद रखना — इसे पाने के लिए तुम्हें अपने डर को बेचना होगा।”

लड़की चौंकी, “डर को बेचना?”

वह हँसा —
“हाँ, हर सपना किसी डर की कीमत पर ही खरीदा जाता है।”

लड़की ने गहरी साँस ली, और बोली,
“ठीक है, मैं अपना डर छोड़ देती हूँ।”

वह बोतल लेकर चली गई — और कुछ ही दिनों में, उसके सुर रेडियो पर गूंजने लगे।
लोग कहते थे, वो आवाज़ दिल में उतर जाती है...
पर कोई नहीं जानता था कि उसके हर सुर में, एक डर की जगह खाली थी।


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2. टूटा हुआ सौदा

कुछ हफ़्ते बाद, दुकान में एक बुजुर्ग आया — आँखों में पश्चाताप, हाथ में एक पुराना पर्स।

“मुझे अपना सपना वापस चाहिए,” उसने कहा।

“तुमने कौन सा सपना बेचा था?” नसीर ने पूछा।

“मैंने जवानी में अपने बेटे के भविष्य के लिए अपनी लेखनी बेच दी थी। मैं कवि था, अब बस शब्दों से डर लगता है।”

नसीर ने एक पुरानी अलमारी खोली।
उसमें पुरानी डायरी, आधे लिखे गीत और फटे पन्ने पड़े थे।

“यह रहा तुम्हारा सपना,” उसने कहा, “पर अब लौटाना मुश्किल है। सपने भी पुराने घरों जैसे होते हैं, एक बार खाली हों तो फिर बसते नहीं।”

बुजुर्ग ने काँपते हाथों से वह डायरी पकड़ी और बोला,
“फिर भी कोशिश करूँगा।”

वह चला गया — और कुछ ही महीनों बाद, अखबारों में उसकी कविता छपी:

> "जो सपना बेचा था, वही लौट आया है,
शायद सपनों के सौदागर ने रहम खाया है..."




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3. सबसे अजीब ग्राहक

एक दिन एक छोटा बच्चा दुकान में आया।
उसके कपड़े मैले थे, हाथ में टूटी हुई कार थी।

“चाचा, आप सपने बेचते हैं ना?”

नसीर ने मुस्कराया, “हाँ बेटा, पर बच्चों के लिए सपने मुफ़्त नहीं होते।”

“मेरे पास पैसे नहीं... लेकिन मैं अपना गुब्बारा दे सकता हूँ।”

नसीर ने गुब्बारा लिया और पूछा,
“क्या सपना चाहिए?”

“माँ को मुस्कराते देखना चाहता हूँ।”

नसीर ने बिना एक शब्द बोले, उसे एक छोटी सी बोतल दी।
“जब वो सोए, इसे खोल देना।”

अगले दिन, मोहल्ले में खबर फैली —
वो औरत जो महीनों से उदास थी, सुबह उठते ही गाना गुनगुनाने लगी थी...
“तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…” 🎵

लोगों को लगा चमत्कार हुआ है।
पर नसीर अली ने बस आसमान की तरफ देखा और बुदबुदाया,
“बच्चों के सौदे हमेशा दिल से पूरे होते हैं।”


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4. एक सौदा जो अधूरा रह गया

एक रात दुकान में कोई दस्तक नहीं हुई।
नसीर अकेला बैठा था, पुराने सपनों के बीच।

उसने शीशे में खुद को देखा —
“और मेरा सपना?” उसने खुद से पूछा।
“मैंने तो सबके सपने पूरे किए... मेरा कहाँ गया?”

धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि उसने अपना ही सपना बेच दिया था —
“दूसरों के लिए सपने बुनने का।”

वह थक चुका था।
आँखों में नींद उतर आई, पर नींद में भी आवाज़ गूँजी —
“अब तुम्हारा सौदा पूरा होना चाहिए, नसीर अली।”

उस रात वो नहीं जागा।
सुबह लोग आए तो देखा, दुकान बंद थी, और दरवाज़े पर लिखा था —

> “सपनों के सौदागर अब खुद किसी और के सपने बन गए हैं।”




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5. दुकान का नया मालिक

कई साल बाद, उसी दुकान के बाहर एक नया बोर्ड लगा —
“आर्या सपनों का बाजार – पुराने सपनों की मरम्मत भी होती है।”

वो वही गायिका थी, जिसने अपना डर बेचकर गाना सीखा था।
अब वह खुद लोगों के लिए छोटे-छोटे सपने बुनती थी —
कभी गीतों में, कभी मुस्कान में, कभी किसी अधूरे इंसान के दिल में।

एक दिन उसने नसीर की पुरानी अलमारी खोली —
अंदर एक पर्ची पड़ी थी:

> “अगर कभी मेरा सपना पूरा करना चाहे —
तो लोगों को सिखा देना कि
सपने खरीदे नहीं जाते,
सपने जीए जाते हैं।”



आर्या मुस्कराई।
उस दिन से उसने गाना शुरू किया —
“ज़रा सा झूम लूँ मैं, आ…” 🎶
और हर गाने के बीच लोगों को याद दिलाती रही —
“अपने सपनों को किसी सौदे में मत बाँधो,
क्योंकि असली सौदागर वो नहीं जो सपने बेचता है,
बल्कि वो है जो तुम्हें अपने सपने देखने की हिम्मत देता है।”


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समापन:

शहर अब भी वही है, गलियाँ अब भी वही हैं।
बस फर्क इतना है कि अब लोग सपने खरीदने नहीं, बनाने आने लगे हैं।

दीवार पर नसीर अली की तस्वीर टंगी है —
नीचे लिखा है:

> “सपनों का सौदागर चला गया,
पर उसके सौदे अब इंसानियत में बदल गए।”




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लेखक — विजय शर्मा एरी
(Ajnala, Amritsar)


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