शीर्षक: “कालसर्प का श्राप”
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी
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रात के ग्यारह बजे थे। पहाड़ों के बीच बसा छोटा-सा गाँव देवलपुर काली चादर में लिपटा सो रहा था। लेकिन उस नींद भरी खामोशी के बीच, एक पुराना मंदिर जगमगा उठा—जैसे किसी ने भीतर कोई दीपक जला दिया हो।
मंदिर के पास से गुजरता चरवाहा रघु ठिठक गया।
“अरे! ये तो नागेश्वर मंदिर है… यहाँ तो बरसों से कोई नहीं आता!”
वो डरते-डरते पास पहुँचा, लेकिन अचानक ज़मीन में हल्का-सा कंपन हुआ। रघु के पैर के नीचे की मिट्टी काँपी और मंदिर से एक अजीब-सी नीली रोशनी निकली।
रघु ने भागने की कोशिश की, मगर तभी उसके सामने एक विशालकाय नाग फुफकारा—उसकी आँखें अंगारों-सी चमक रही थीं।
रघु चिल्लाया, “बचाओ… कोई है?”
पर जवाब में सिर्फ़ जंगल की हवा की सनसनाहट आई।
और फिर वो बेहोश होकर गिर पड़ा।
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पहला रहस्य – पुरानी कथा
अगले दिन गाँव में खबर फैल गई—“रघु को नाग ने काट लिया!”
पर जब लोग मंदिर पहुँचे, तो रघु ज़िंदा था। उसने बताया कि नाग ने उसे काटा नहीं, बल्कि चेतावनी दी थी—
“जो भी कालसर की मणि की खोज करेगा, वो अपने वंश का अन्त देखेगा!”
गाँव के बुजुर्ग पंडित गिरीधर ने सबको समझाया,
“बेटा, वो कोई साधारण मणि नहीं… कहा जाता है कि नागराज कालसर ने हज़ारों साल पहले देवताओं से वो मणि पाई थी। उस मणि की चमक से वो अमर हो गया। पर जब एक लोभी राजा ने उसे पाने की कोशिश की, नागराज ने श्राप दिया—‘जो भी इस मणि की खोज करेगा, उसका नाश निश्चित है।’ तब से वह मणि इस मंदिर के नीचे छिपी बताई जाती है।”
लेकिन रहस्य वहीं खत्म नहीं हुआ।
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दूसरा रहस्य – शहर से आया खोजी
एक हफ़्ते बाद, दिल्ली से एक पुरातत्व अधिकारी डॉ. आदित्य सेन गाँव पहुँचा। उसने सरकार की ओर से मंदिर की खुदाई की अनुमति ली।
गाँववाले डर गए—
“साहब, उस मंदिर में नागराज बसते हैं! मत छेड़िए उसे…”
आदित्य हँस पड़ा, “अरे भाई, ये सब अंधविश्वास है। वहाँ सिर्फ़ पुरानी मूर्तियाँ होंगी।”
उसकी सहायक रिया ने धीरे से कहा,
“लेकिन सर, जो रघु के साथ हुआ, वो तो किसी भ्रम जैसा नहीं था…”
“रिया! विज्ञान में डर की जगह नहीं,” आदित्य ने सख़्ती से कहा।
खुदाई शुरू हुई। पहले दिन कुछ नहीं मिला, दूसरे दिन भी बस टूटी हुई मूर्तियाँ।
लेकिन तीसरे दिन, रात में खुदाई स्थल से नीली रोशनी निकलने लगी।
रिया ने देखा कि ज़मीन से एक पत्थर-सी चीज़ चमक रही है—छोटी, मगर तेज़।
वो चौंकी, “सर! लगता है यही नाग मणि है!”
आदित्य ने उसे उठाया। मणि ने नीली लौ जैसी चमक दी, और आसपास की हवा ठंडी पड़ गई।
उसी पल मंदिर की घंटी अपने आप बज उठी।
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तीसरा रहस्य – मणि की शक्ति
उस रात आदित्य ने मणि को अपनी लैब में रखा। लेकिन जब भी वो उसे देखने जाता, मणि का रंग बदलता—कभी नीला, कभी लाल, कभी काला।
रिया ने डरते हुए कहा,
“सर, मुझे लगता है ये किसी ऊर्जा से जुड़ी हुई है।”
“हो सकता है… मगर ये ऊर्जा वैज्ञानिक है, दैवी नहीं,” आदित्य बोला।
तभी बिजली चली गई। अँधेरा छा गया। और कमरे के कोने में एक सर्पाकार परछाई उभर आई।
“आदित्य…”
एक फुफकारती आवाज़ गूंजी।
“जो मणि तुम्हारे हाथ में है, वो देवताओं की नहीं, कालसर की आत्मा है। उसे लौटा दो, वरना तुम और तुम्हारा वंश मिट जाएगा।”
आदित्य काँप उठा, पर बोला, “मैं डरने वाला नहीं!”
वो जैसे ही लाइट जलाने गया, परछाई गायब हो गई।
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चौथा रहस्य – रिया का सपना
अगली रात रिया ने सपना देखा—वो नागेश्वर मंदिर में है, और वहाँ एक दिव्य पुरुष खड़ा है, जिसके चारों ओर सर्प लिपटे हैं।
वो बोला,
“रिया, तुम्हारा मन पवित्र है। मणि को वापिस करो, वरना वह आग बनकर सब कुछ भस्म कर देगी। याद रखो, मणि सिर्फ़ नागवंश की रक्षा के लिए बनी थी, मनुष्यों के लोभ के लिए नहीं।”
रिया नींद से उठी, पसीने में भीगी हुई।
सुबह उसने आदित्य से कहा,
“सर, हमें ये मणि मंदिर में वापस रखनी होगी। यह विनाश लाएगी।”
आदित्य हँस पड़ा, “रिया, तुम्हें भी अंधविश्वास लग गया?”
लेकिन उस रात जब आदित्य की कार में मणि रखी थी, अचानक उसकी ब्रेक फेल हो गई।
गाड़ी गहरी खाई में गिर पड़ी।
लोगों ने अगले दिन देखा—गाड़ी जल चुकी थी, पर मणि एकदम सुरक्षित थी, चमकती हुई।
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पाँचवाँ रहस्य – रिया का निर्णय
रिया ने मणि को उठाया और मंदिर की ओर भागी।
मूसलाधार बारिश हो रही थी, बिजली कड़क रही थी।
वो मंदिर पहुँची, ज़मीन काँप रही थी।
अचानक वही आवाज़ गूंजी—
“रिया… मणि मुझे लौटा दो!”
उसने पुकारा, “नागराज कालसर! मैं इसे लौटाने आई हूँ। कृपा कर शांत हो जाइए।”
मंदिर के बीचोंबीच एक विशाल नाग प्रकट हुआ—उसकी आँखों से नीली ज्वाला निकल रही थी।
वो बोला,
“तुम्हारा हृदय निर्मल है, इसलिए तुम्हें जीवित रहने का वरदान देता हूँ। लेकिन मनुष्यों का लोभ कभी शांत नहीं होगा। याद रखना, यह मणि अब किसी को नहीं मिलेगी।”
नाग ने फुफकार मारी, और मणि जमीन में समा गई। धरती काँप उठी।
रिया बेहोश होकर गिर पड़ी।
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छठा रहस्य – अंत या आरंभ
सुबह जब गाँववाले पहुँचे, मंदिर पूरी तरह धँसा हुआ था। बस रिया बेहोश हालत में मिली।
जब वो होश में आई, तो बोली,
“मणि अब नहीं रही… नागराज ने उसे अपने साथ ले लिया।”
सब चुप रहे।
लेकिन उसी रात, जब रिया दिल्ली लौट रही थी, उसकी कार की शीशे पर एक हल्की-सी नीली चमक दिखाई दी—जैसे कोई आँखें उसे देख रही हों।
उसने नीचे देखा—कार के डैशबोर्ड पर एक छोटा-सा नीला पत्थर रखा था।
वो काँप उठी।
धीरे से पत्थर ने हल्की-सी फुफकार भरी—
“वापस मत आना… कालसर अब भी जाग रहा है।”
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उपसंहार
देवलपुर के लोग आज भी कहते हैं कि अमावस्या की रातों में नागेश्वर मंदिर के खंडहरों से नीली रोशनी उठती है।
कभी किसी बच्चे को साँप के निशान मिलते हैं, तो कभी किसी को फुसफुसाती आवाज़ सुनाई देती है।
पर कोई वहाँ जाता नहीं।
क्योंकि सब जानते हैं—“कालसर का श्राप” अब भी जीवित है।
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संदेश:
लोभ मनुष्य को विनाश की ओर ले जाता है। प्रकृति और उसकी शक्तियाँ हमारी नहीं, उनकी हैं। जो उन्हें छेड़ता है, वो स्वयं मिट जाता है।
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