वो जिसे महसूस होता हैं वही कह सकता हैं,
यह भूख की बात हैं, भूखा ही कह सकता हैं।
ऊँचे-ऊँचे हवामहल, यें मोती गहरे पानी के,
पर हाँ, रोटी के बिना कोई नहीं रह सकता हैं।
नमक रोटी खाकर वो भूखी अम्मा सो जाती,
और चौराहे पर पकवानों का ढेर लगा रहता हैं।
बर्थ्डे-पार्टी लाख तमाशे, दिखलावे के पुतले,
ठंडी में थरथराता वो बच्चा नंगा रह जाता हैं।
ख़ूब तरक़्क़ी हम सबने की बधाई हों विनय,
शिक्षा का अक्षर आज अनपढ़ सा दिखता हैं।
Vinay Tiwari 
From “धूल से धूप तक”