कहती है....!
जो बीतती है उसपे, ये मन क्या जाने??
अरे! कोई समझाओ ,उस पगली को...
कोसतीं ये खुद को..रोतीं हैं रातें, न सोती हैं ये आंखें..
इक उसके प्यार में, इक उसके इंतजार में।
फर्क बस इतना है....
उधर आंसू बहते हैं..
इधर शब्द बन ढहते हैं।
#सनातनी_जितेंद्र मन कहेन