काव्यांश......अंतिम पत्र-2..

स्वप्न वाली बात न हो,
प्रातः जीवन झंझवात न हो।
आशायें सभी रहें अपरिचित,
रहे मरघट निवास स्थान न हो।
जड़ रहें किसी में प्राण न हो,
दर्शा देना सद्भावों को।
रही शेष इच्छाओं को,
अतृप्त पड़ी तृष्णाओं को।
वर लेना मृत्यु सेज प्रिये,
संभवतः फिर से भेंट न हो।।
-क्रमशः.....✍️-
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Hindi Poem by सनातनी_जितेंद्र मन : 111761756

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