मैं खुद के लिए ही एक पहेली सी हूं,
कभी तो बस एक खुली किताब सी हूं,
तो कभी किसी अनसुलझे ख्वाब सी।
कभी एक ठंडे हवा के झोंके सी,
कभी चिलचिलाती धूप सी.
कभी ओस की बूंद सी शांत हूं,
तो कभी कड़कड़ती बिजली के शोर की तरह गुस्सैल सी।
कभी तो इक पल में खिलखिला देती हूं,
तो कभी छोटी सी बात भी मुझे उदास कर देती हैं।
शब्द नहीं मिलते मुझे,
खुदको बया करने के लिए,
शायद इसिलिए आज तक खुदके लिए
भी अंजान सी हुं .....!!!!