उठते है सवाल मेरे अंदर से,
आती है आवाज मेरे अंदर से,
क्या मैं वही हूँ जो दिखता हूँ बाहर से ?
करता कुछ और हूँ चाहता कुछ और हूँ,
बोलता कुछ और हूँ समझता कुछ और हूँ,
सब एक जैसे हैं या मैं ही कुछ और हूँ,
जिंदगी को जो नजरिया दिया गया है,
जिंदगी वो नही है,
जैसे सोचते हैं हम,
ये तरीका वो नही है,
क्या सिर्फ हम ही सोचते हैं,
या सोचते कोई और हैं,
अगर नही समझ आया कुछ तो हम ही कुछ और हैं।