मुंबई गए लगभग 3 साल हो चुके है, लेकिन आज भी जब भी दफ्तर से दो दिनों की छुट्टी पर होता हूं मुंबई चले जाने का हिसाब लगाने बैठ जाता हूं कि कैसे बस दो दिनों मुंबई से आया जा सकता है? मुझे आज भी अपने शहर से मुंबई जाने वाली ट्रेन देखना रोमांचकारी कार्य लगता है।जीवन का सुंदर अतीत मुंबई की सड़कों व समुद्र किनारे बिखरा पड़ा है। संबध के खत्म होने बाद भी मुझे शहर उतना ही प्रेम रहा है। अपनी अंतिम यात्रा खुद को जुहू में घंटो लिखते हुए पाया था, लेकिन अतीत को जितना लिखने का प्रयास किया वह खत्म होने के बजाय और बढ़ता चला गया। अंतत: मैंने हार मान ली है। अब मुंबई पर लिखा पूरा खत्म कर लिया है, जिसे लिख नहीं पाया अब अतीत का घर बना चुका है। अब मुंबई जाऊंगा उस अतीत के साथ वक्त बिताकर लौट आऊंगा। वह अतीत हमेशा अब से मेरा नियमित घर बन चुका हूँ। आज फिर से मुंबई की यात्रा पर हूं, लेकिन इस बार मैंने ट्रेन में जाने का हिसाब छोड़कर आसमान से होकर जाने का सोचा है।

Hindi Story by Lalit Rathod : 111800259

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now