तलाश सुकून की थी ,
पता नहीं कब तुम मिल गए ...
वास्ता अपनों से ही रखा था ,
पता नहीं कब ,किस मुलाकात में तुम मिल गए ...
जरूरत सिर्फ अपनेपन की थी ,
पता नहीं कब तुम अपनोमे सामिल हो गए ...

-Dhoriya Daxa

Hindi Shayri by Dhoriya Daxa : 111806384

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now