डर...ख्वाब देखने से पहले ख्वाबों के टुट जाने का डर.... जितने से पहले हार जाने का डर.... सफ़र शुरू करने से पहले बिच राहों में भटक जाने का डर.... सफल होने से पहले असफल होने का डर.... किसी के हाथ थामने से पहले उसके हाथ छोड़ देने का डर..... कुछ भी करने से पहले कुछ भी ना करने का डर......इंसान को इतना कमजोर बना देता है की वो चाहकर भी जिंदगी में कुछ नही कर सकता और इस तरह के भय से लिप्त इंसान की खुदा भी मदद नही करता..
काश कि बात जितने सरल शब्दों में लिखी गई उतने ही सरल शब्दों में समझी जा सकती
#डर .....